थम सी गई है जिंदगी। क्रिकेट की गेंद की तरह बचपन की गेंद भी बच्चों के हाथों से ऐसी उछली कि टकटकी लगाए उसे हाथों में वापस लाने को बेताब हैं। कोरोना महामारी ने बचपन को घरों के अंदर कैद कर दिया है। हंसी ठिठोली, साइकिल पर पार्क की फेरी, गोलगप्पे की रेहड़ी ये सब जैसे मोबाइल की मीम्स तक ही सीमित रह गया है। ऐसे में बचपन की नाज़ुक दहलीज़ पर बच्चों का हाथ थामकर उनके बचपन को जीवंत बनाया जा सकता है। घर में मौजूद बड़े सदस्यों को चाहिए कि जितना हो सके बच्चों को नकारात्मकता से दूर रखें। उन्हें यह महसूस करवाएं कि इस समय में आप उनके साथ हैं और यही इस समय की पॉजिटिव बात है। उनके मन को खंगालें, उनसे उसी तरह बतियाएं जैसे आप उनके सखा सहेली हों।
इंडोर गेम
उनकी रुचि के अनुसार उनके साथ समय बिताने का अच्छा साधन है कैरम, लूडो, शतरंज हल्के-फुल्के ताश के पत्तों के रंगों में आप
उनके जीवन में घरों में रहते हुए भी रंग भर सकते हैं।
गार्डनिंग
बच्चों का मन मिट्टी जैसा होता है। उसे जैसा आकार दो वैसा ही बन जाता है। बागवानी में उनसे सहायता लीजिए। नन्हे-नन्हें हाथ जब पौधों को रोंपते हैं और सींचते हैं तो यकीन मानिए उनके मन में अंदरूनी खुशी भर देते हैं। और फिर उन्हीं पौधों को पनपते देखना उनमें एक उत्साह भर देता है इससे न केवल उनको खुशी बल्कि जीवन मूल्यों की समझ भी मिलती है। प्रकृति से प्यार उनके मन को खुशबू से भर देता है। कभी-कभार गमलों को ब्रश से रंग करने को कहिए, देखें कैसे खुशी से झूम उठेंगे सारे बच्चे।
कहानी संसार
‘मुझको यकीन है सच कहती थी जो भी अम्मी कहती थी, जब मेरे बचपन के दिन थे चांद पर परियां रहती थीं।’ ये बातें महज शायर की कल्पना ही नहीं उसके बचपन की यादों का संसार है तो आप भी अपने नन्हे मुन्ने के मन को कल्पना और कहानी की यादों से भर दीजिए। और हां, कभी-कभी उन्हें भी कहानी कहने का मौका दीजिए देखिए उनका नन्हा मन कल्पना की ऐसी लंबी उड़ान भरेगा कि आपकी बहुत सी परेशानियां भी ले उड़ेगा। साथ-साथ आपके भी बचपन के दिन लौट आएंगे।
गैजेट से दूरी
वैसे तो बचपन को गैजेट से जितना दूर रखा जाए बेहतर है। आजकल के दौर में तो यह और भी जरूरी हो जाता है क्योंकि ऑनलाइन स्टडीज के कारण पहले ही स्क्रीन टाइम 5 से 6 घंटे का हो चुका है। ऐसे में इससे अतिरिक्त समय बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर गलत प्रभाव डाल सकता है।
रंगों और ब्रश का सहारा
रंग और ब्रश बेहतरीन ढंग है बच्चों को व्यस्त रखने का। मानसिक मजबूती देने में मनोवैज्ञानिक भी रंगों का सहारा लेते हैं। इस समय में स्कूल भी अपनी सशक्त अहम भूमिका निभा रहे हैं। जैसे कुछ एक स्कूलों में एक्टिविटी प्रोजैक्ट आदि करवाए जाते हैं, ऑनलाइन एक्टिविटीज करवाई जाती हैं। इन दिनों ऑनलाइन ग्रुप भी बहुत एक्टिव हैं और अच्छी भूमिका निभा रहे हैं। पेंटिंग प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही हैं। इससे यह तो पता चलता है कि हर वर्ग बच्चों के कोमल मन में सपनों को संजोने में कार्यरत हैं और यूं ही मिलजुलकर हम उनका खोया हुआ बचपन लौटा सकते हैं। बेफिक्र हो मन जहां बचपन को वो उड़ान दे, आओ बच्चे बन जाएं, बचपन को यूं संवार दें।
-सीमा पुंज पाहवा