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Nari

"पागल ही जाते हैं Psychiatrist के पास..." आप भी सोचते हैं ऐसा तो आज ही दूर कर दो अपनी ये गलतफहमी

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 06 Apr, 2025 12:01 PM

नारी डेस्क: 7 अप्रैल को हर साल विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करना और यह समझाना है कि स्वास्थ्य एक मौलिक अधिकार है, न कि कोई विशेषाधिकार। आज हम मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे लेकर  समाज में कई तरह की गलत धारणाएं फैली हुई हैं। इन्हें तोड़ना बेहद ज़रूरी है ताकि लोग खुलकर अपने मन की बात कह सकें और समय रहते सही इलाज और सहायता प्राप्त कर सकें।


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 मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मिथक और तथ्य

मिथक 1: "मानसिक बीमारियां सिर्फ कमजोर लोगों को होती हैं।"

तथ्य: मानसिक बीमारी किसी को भी हो सकती हैचाहे वह शारीरिक रूप से मजबूत हो या कमजोर। यह एक मेडिकल कंडीशन है, न कि कमजोरी का संकेत।


 मिथक 2: "अगर कोई व्यक्ति खुश दिखता है, तो वो मानसिक रूप से स्वस्थ है।"

तथ्य: हर मुस्कुराता चेहरा अंदर से खुश नहीं होता। कई लोग डिप्रेशन या एंग्जायटी जैसी समस्याओं से जूझते हुए भी बाहर से सामान्य लग सकते हैं।
 

 मिथक 3: "मानसिक बीमारियां इलाज से ठीक नहीं होतीं।"

तथ्य: ज्यादातर मानसिक बीमारियां इलाज, काउंसलिंग, मेडिटेशन और सपोर्ट से पूरी तरह ठीक हो सकती हैं या काफी हद तक नियंत्रित की जा सकती हैं।


 मिथक 4: "सिर्फ पागल लोग ही साइकियाट्रिस्ट के पास जाते हैं।"

तथ्य: साइकियाट्रिस्ट या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ के पास जाना साहस और समझदारी की निशानी है, न कि पागलपन की।
 

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मिथक 5: "बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य की समस्या नहीं हो सकती।"

तथ्य: बच्चे भी डिप्रेशन, स्ट्रेस, एंग्जायटी जैसी मानसिक समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं। उनकी बातों को हल्के में न लें।
 

मिथक 6: "जो आत्महत्या के बारे में बात करता है, वह कभी करता नहीं है।"

तथ्य: आत्महत्या की बात को हमेशा गंभीरता से लेना चाहिए। यह किसी व्यक्ति के दर्द और परेशानी का संकेत हो सकता है।
 

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मिथक 7: "धार्मिक आस्था या पूजा-पाठ से मानसिक बीमारी ठीक हो जाएगी।"

तथ्य: आध्यात्मिकता से मन को शांति मिल सकती है, लेकिन मानसिक बीमारी के लिए पेशेवर इलाज जरूरी होता है। केवल पूजा-पाठ से बीमारी ठीक नहीं होती।
 

 मिथक 8: "अगर कोई व्यक्ति मानसिक बीमारी से ठीक हो गया है, तो उसे फिर से ये नहीं होगी।"

तथ्य: जैसे शारीरिक बीमारियां दोबारा हो सकती हैं, वैसे ही मानसिक बीमारियाँ भी कभी-कभी दोबारा हो सकती हैं। नियमित देखभाल और जागरूकता जरूरी है।

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