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भारत का एकलौता मंदिर, जहां जाने के लिए पुरुष करते हैं महिलाओं की तरह श्रृंगार

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 05 Apr, 2022 01:09 PM
भारत का एकलौता मंदिर, जहां जाने के लिए पुरुष करते हैं महिलाओं की तरह श्रृंगार

देवी-देवताओं की पावन धरती भारत को ही कहा जाता है। यहां हर त्योहार को दिल से और पूरे रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। त्योहारो को लेकर लोगों में बहुत ही श्रद्धा-भाव देखने को मिलता है। दीवाली से लेकर दशहरे तक सारे पर्व धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ही मनाए जाते हैं। रीति-रिवाजों को ध्यान में रखते हुए कुछ नियम बनाए गए हैं। जिसके चलते महिलाओं को भी मंदिरों में जाने की अनुमति नहीं दी जाती। वहीं दूसरी ओर पुरुषों को जाने के लिए  भी कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। तो चलिए बताते हैं एक ऐसे ही मंदिर के बार में...

आखिर क्या है मंदिर की मान्यता 

यह अनोखा मंदिर केरल राज्य के कौल्लूम जिले में मौजूद है। इस प्राचीन मंदिर में पुरुषों  को तब ही प्रवेश मिलता है जब वह महिलाओं की तरह साज-श्रृंगार करते हैं। मंदिर का नाम कोट्ंटकुलंगार देवी है। यह इस मंदिर की मान्यता है इसमें सिर्फ महिलाएं ही पूजा कर सकती हैं। यदि पुरुषों को इस मंगिर में प्रवेश चाहिए तो उन्हें महिलाओं की तरह वस्त्र धारण करने होंगे। 

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एक रिवाज के चलते करते हैं सोलह श्रृंगार

ऐसा माना जाता है कि महिलाओं का रुप धारण करने से उनके धन, नौकरी और संपत्ति की प्राप्ति होती है। यहां पर चमयाविलक्कू नाम का पर्व मनाया जाता है। जिसके चलते पुरुष महिलाओं की तरह साज श्रृंगार करके तैयार होते हैं। इस पर्व के चलते महिलाओं और किन्नरों के प्रवेश पर कोई पाबंदी नहीं है लेकिन पुरुषों को 16 श्रृंगार करके ही जाना पड़ता है। मां की अराधना करके पुरुष अच्छी पत्नी और नौकरी का आर्शीवाद प्राप्त करते हैं। 

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रिवाज के पीछे की पौराणिक कथा क्या है

पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुछ चरवाहों ने जंगल में गिरे हुए नारियल को उठाकर पत्थर पर मारने की कोशिश की, पत्थर से खून टपकने लगा और वह सब डर गए। उन्होंने सारी घटना के बारे में गांवो वालों का बताया। ज्योतिषों को बुलाया गया तो उन्होंने बताया कि पत्थर में वनदेवी का स्वरुप विराजमान है। यहां पर तुरंत मंदिर बनवाकर पूजा की जानी चाहिए।जिन चरावाहों को पत्थर मिला था। उन्होंने महिलाओं का रुप धारण कर माता की पूजा-अर्चना शुरु कर दी। जिसके बाद यह परंपरा शुरु हो गई। मान्यताओं के अनुसार, मंदिर में माता की प्रतिमा हर साल कुछ इंच बढ़ जाती है। 

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