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Friendship Day पर भगवान श्रीकृष्ण से सीखिए दोस्ती निभाने के सही मायने

  • Edited By neetu,
  • Updated: 01 Aug, 2021 10:30 AM
Friendship Day पर भगवान श्रीकृष्ण से सीखिए दोस्ती निभाने के सही मायने

दोस्ती को दुनिया में बेहद ही पवित्र रिश्ता माना जाता है। ऐसे में इस खास रिश्ते को मनाने के लिए भारत में हर साल अगस्त के पहले रविवार को फ्रेंडशिप डे यानि दोस्तों का दिन मनाया जाता है। इस साल यह दिन 1 अगस्त यानि आज पड़ रहा है। मगर क्या आप जानते हैं कि सच्ची दोस्ती निभाने, दोस्तों को बराबरी का सम्मान देना आदि निभाने का रिवाज युगों से चल रहा है?

 

जी हां, द्वापरयुग के भगवान श्रीकृष्ण व उनकी दोस्ती आज तक सभी को याद है। उन्होंने अपने हर रिश्ते के साथ दोस्ती को भी बिना किसी स्वार्थ के निभाया। वहीं आज के युग में तो लोग अपनों से भी कुछ गलत करने से चूकते नहीं है। ऐसे में हमें श्रीकृष्ण के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। चलिए आज हम आपको भगवान श्रीकृष्ण के ऐसे 4 मित्रों के बारे में बताते हैं, जिनकी भगवान ने मदद करने के साथ जीवनभर पूरा सम्मान भी दिया।

कृष्ण-सुदामा

श्रीकृष्ण के मित्रता में उनके मित्र सुदामा को सबसे पहले याद किया जाता है। वे भगवान श्रीकृष्ण के बचपन के सखा यानि दोस्त थे। मगर श्रीकृष्ण महलों में रहने वाले राजा थे और सुधामा एक गरीब ब्राह्माण था। मगर फिर भी श्रीकृष्ण अपनी दोस्ती से बढ़कर कुछ नहीं समझते थे। तभी तो जब उसके दोस्त उनसे आर्थिक सहायता मांगने के लिए द्वाारका उनके महल पहुंचे थे तो उन्हें संशय था कि भगवान श्रीकृष्ण उन्हें पहचानेंगे नहीं। मगर असल में सुदामा का नाम सुनते ही भगवान नंगे पैस दौड़ते हुए उनसे भेंट करने गए। इतना ही नहीं वे पूरे आदर से सुदामा को महल लेकर गए और उनकी हालत देखकर भावुक होकर रो पड़े। एक गरीब ब्राह्माण के स्नेह में भगवान श्रीकृष्ण को रोता हुआ देखकर उनकी रानियां व प्रजा भी हैरान रह गई थी। इसके साथ सुदामा द्वारा भेंट स्वरुप लाए कच्चे चावल श्रीकृष्ण ऐसे प्रेमपूर्वक खाए जैसे वो उनके लिए विशेष पकवान लेकर आए हो। वे अपने बचपन के मित्र सुदामा को देखते ही उनकी सभी चिंताएं समझ गए और उनके बिना मांगे ही उन्होंने सुदामा को महल, धन आदि सब कुछ दे दिया।

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श्रीकृष्ण-अर्जुन

कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन रिश्ते में भाई लगते थे। मगर श्रीकृष्ण उन्हें अपना दोस्त ही समझते या मानते थे। कुरूक्षेत्र युद्धस्थल पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन का सारथी बनकर रथ चलाया था। साथ ही उन्हें सच्चाई के मार्ग पर चलाने के लिए न्याययुद्ध का पाठ पढ़ाया था। साथ ही रणभूमि पर अर्जुन के कमजोर पड़ने पर उसे प्रोत्साहित करते थे। ऐसे में श्रीकृष्ण का साथ और मार्गदर्शन पाकर अर्जुन ने अधर्म के विरुद्ध युद्ध किया। साथ ही जीत हासिल की।

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श्रीकृष्ण-द्रोपदी

पांडव पत्नी द्रौपदी श्रीकृष्ण को अपना भाई व दोस्त मानती थी। वहीं जब द्रोपदी का चीरहरण हो रहा था तब उन्होंने श्रीकृष्ण को याद कर उनसे मदद की गुहार की थी। तब श्रीकृष्ण ने भी उनकी पुकार सुनकर मदद की और चीरहरण से रक्षा की थी। इससे हमें सीख मिलती है कि मित्र के मुसीबत में होने पर उसकी मदद करने को हमेशा तैयार रहना चाहिए।

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श्रीकृष्ण-अक्रूर

अक्रूर जी रिश्ते में भगवान श्रीकृष्ण के चाचा थे। मगर वे उनके अनन्य भक्तों में से एक थे। अक्रूर द्वारा ही श्रीकृष्ण और उनके भाई बलराम वृन्दावन से मथुरा आए थे। मथुरा जाते समय रास्ते में भगवान श्रीकृष्ण ने अक्रूर को अपने वास्तविक स्वरूप के दर्शन दिए थे। तब परमात्मा के दर्शन करके अक्रूर जी ने अपने आपको उनको समर्पित कर दिया था। वहीं भगवान और भक्त का संबंध होने पर भी श्रीकृष्ण ने इसे दोस्ती की तरह निभाया। ऐसे में आज के इस दौर में इन्हें देखकर यह कहा जा सकता है कि मन साफ और पवित्र हो तो भगवान और भक्त में भी सच्ची दोस्ती का रिश्ता हो सकता है।

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