महामारी के दौरान जहां बीमारी ने लोगों को घरों में बंद कर दिया वहीं इस वायरस के अलावा देश में बेरोजगारी भी फैल गई। इतना ही नहीं कई दिहाड़ी दार लोगों को भूखा तक सोना पड़ा। लेकिन इसी बीच कई लोगों ने ऐसी मिसाल दी जिससे यह साबित होता है कि चाहे कितना भी संकट या दुख क्यों न हो अपनी मेहनत और इच्छाशक्ति से जिदंगी को फिर से शुरू किया जा सकता है।
इसी तरह भुवनेश्वर की एक टीचर ने मिसाल दी है। महामारी के दौरान भुवनेश्वर की एक टीचर की जब नौकरी चली गई तो घर चलाने के लिए वह म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में ड्राइवर बन गई।
भुवनेश्वर की रहने वाली इस महिला का नाम स्मृतिरेखा बेहरा है। महामारी से पहले स्मृतिरेखा शहर के चेकिसैनी क्षेत्र में प्राइमरी क्लास के बच्चों को पढ़ाती थीं। लॉकडाउन के चलते जब स्कूल बंद हो गया तो 29 वर्षीय इस महिला ने अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ड्राइवर बनना मंजूर किया।
घर का खर्च चलाने के लिए घर-घर जाती हैं कचरा इकट्ठा करने-
घर परिवार को किसी चीज की कमी न हो इसलिए स्मृतिरेखा नगर निगम का कचरा इकट्ठा करने के लिए गाड़ी से घर-घर जाती हैं। उसके पति एक प्रायवेट फर्म में काम करते हैं जिनकी सैलरी महामारी के चलते आधी हो गई। ऐसे में इस कपल के लिए घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया। पिछले साल इस महिला की परेशानी उस वक्त बढ़ी जब पिता का निधन हो गया और मां को कैंसर हो गया।
मैं पढ़ी-लिखी थी, इसलिए आसानी से काम मिल गया-
इस गंभीर संकट में भी स्मृतिरेखा ने हौंसला नहीं छोड़ा और मेहनत करती गई। स्मृतिरेखा का कहना है कि भाग्य ने हमेशा उनका साथ दिया। मैं पढ़ी-लिखी थी, इसलिए आसानी से काम मिल गया क्योंकि मैं हर हाल में आग बढ़ना चाहती थी।
पति का साथ देने के लिए ड्राइवर बनीं स्मृतिरेखा
महर्षि कॉलेज ऑफ नैचुरल लॉ से पॉलिटिकल साइंस में पढ़ाई करने वाली स्मृतिरेखा ने 2019 में द सेंटर फॉर यूथ एंड सोशल डेवलपमेंट ने हमारी झुग्गी में 15 महिलाओं के लिए ड्राइविंग ट्रेनिंग कोर्स का आयोजन किया था। इस ट्रेनिंग के पूरा करने के बाद उन्हें ड्राइविंग की नौकरी मिली। स्मृतिरेखा का पति अपनी पत्नी की तारीफ करते नहीं थकता जिसने मुश्किल वक्त में पति का साथ देने के लिए ड्राइविंग करना भी मंजूर किया।