भारत में अलग-अलग धर्म व जाति के लोग रहते हैं। ऐसे में आज यानि 16 अगस्त को पारसी समुदाय का नव वर्ष है। इस दिन को पारसी लोग बड़े ही धूपधाम से मनाते हैं। अपनी परंपराओं से जुड़े पारसी लोग आज के दिन नवरोज मनाते हैं। नवरोज एक फारसी शब्द है जो नव यानि नया और सोज यानि रोज के मेल से बना है। ऐसे में इसका अर्थ हुआ कि "एक नया दिन"। चलिए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से...
साल में दो मनाते हैं नया साल
पारसियों का यह खास साल में 2 बार मनाया जाता है। ये लोग इसे एक बार 16 अगस्त और दूसरी बात 21 मार्च को मनाते हैं।
दुनियाभर में करीब 300 मिलियन से ज्यादा लोग मनाते है नवरोज
पारसियों की आस्था से जुड़े इस पर्व को विश्वभर में 300 मिलियन से ज्यादा लोग मनाते हैं। इसे खास दिन को लोग एक-दूसरे को बधाई देने के साथ बड़ी खुशी व उत्साह से मनाते हैं। इस त्योहार को नवरोज के साथ नजमशेदी नवरोज, पतेती और खोरदाद साल के नाम से भी मनाया जाता है। वहीं ईरान में इस पर्व को ऐदे नवरोज के नाम से सेलिब्रेट किया जाता है।
नवरोज मनाने का इतिहास
आज से करीब 3 हजार साल पहले ईरान के राजा शाह जमदेश ने इसी दिन सिंहासन पर बैठे थे। उस दिन पारसी समुदाय के लोगों ने नवरोज कहा। उसके बाद इस दिन को जरथुस्त्र वंशियों द्वारा नए वर्ष के पहले दिन के रूप में सेलिब्रेट किया लगा। इसके साथ ही दुनिया के कई देशों जैसे कि ईरान, पाकिस्तान, भारत, ताजिकिस्तान, इराक, लेबनान, बहरीन में रहने वाले पारसी नववर्ष को नवरोज के रूप में मनाते हैं।
नवरोज मनाने की परंपरा
पारसी लोगों में इस पर्व को मनाने की परंपरा कई सालों से चल रही है। ये लोग आज के दिन जरथुस्त्र की तस्वीर, मोमबत्ती, कांच, सुगंधित अगरबत्ती, शक्कर, सिक्के जैसी पवित्र चीजें एक जगह रखते हैं। पारसी समुदाय की मान्यता है मुताबिक इससे घर-परिवार में सुख-समद्धि का वास होता है। लोग परिवार के साथ मिलकर उपासना स्थल फायर टेंपल जाते हैं। नवरोज के पावन दिन पर अग्नि में चंदन की लकड़ी अर्पित करने की भी परंपरा है। लोग अग्नि में चंदन की लड़की अर्पित करके एक-दूसरे को नवरोज की बधाई देते हैं। इसके साथ ही घरों में मोरी दार, पटरानी मच्छी, हलीम, अकूरी, फालूदा, धनसक, रवो और केसर पुलाव जैसी पारंपरिक डिशेज बनाई जाती है।