जगन्नाथ पुरी को चार धामों में एक माना जाता है। वहीं जगन्नाथ रथ यात्रा का बेहद ही महत्व है। हर साल लाखों की गिनती में भक्त ओडिशा के पुरी शहर में इस रथ यात्रा के लिए इकट्ठे होते हैं। यह यात्रा आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया तिथि को शुरु होती है। यह रथ यात्रा 9 दिनों तक चलती है। इस साल यह यात्रा आज यानि 12 जुलाई को निकाली जाएगी। मगर बीते साल की तरह इस बार भी कोरोना के कारण भक्तों को यात्रा में शामिल होने में मनाही है। मगर आप आज हम आपको भगवान जगन्नाथ की इस महायात्रा से जुड़ी कुछ खास व रोचक बातें बताते हैं...
महापर्व की तरह रथयात्रा का आयोजन
हिंदू मान्यता के अनुसार, भगवान जगन्नाथ मूल रुप से श्रीहरि के अवतार माने जाते हैं। वहीं यह रथयात्रा महापर्व की तरह आयोजित की जाती है। ऐसे में दूर-दूर से लोग भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने आते है।
कई महीनों पहले से तैयारी
इस महापर्व को मनाने के लिए कई महीने पहले से ही तैयारियां होती है। कहा जाता है कि रथ बनाने के लिए लड़की बसंत पंचमी के दिन चुनी जाती है। इसके बाद अक्षय तृतीया से रथ को बनाने का काम शुरु हो जाता है। इस साल रथनिर्माण 15 मई 2021 को शुरु किया गया था।
नीम की लड़की से रथ का निर्माण
इन रथ को बनाने के लिए नीम पेड़ की खास किस्म की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए शुभ पेड़ों को चुना और साथ ही पुराने रथों को तोड़ दिया जाता है। बात इन रथों के निर्माण की करें तो यह भोईसेवायतगण यानि श्रीमंदिर से जुड़े बढ़ई द्वारा ही किया जाता है।
रथ बनाने में पांच तत्वों का इस्तेमाल
हर कोई जानता है कि मानव शरीर पांच तत्वों के मेल से बना है। ठीक उसी तरह जगन्नाथ जी के रथ का निर्माण करने के लिए लकड़ी, धातु, परिधान, रंग व सजावट के सामान का इस्तेमाल किया जाता है। इस पवित्र को बनाने के लिए कील या किसी भी तरह की कांटेदार चीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
332 टुकड़ों से रथ का निर्माण
इस रथ में 16 पहिए होते हैं। पूरे रथ को लाल व पीले रंग से सजाया जाता है। इसके साथ ही इसे तैयार करने में 332 टुकड़ो इस्तेमाल किे जाते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ बाकी के दोनों रथों से आकार में बड़ा होता है।
3 अलग-अलग बनते हैं रथ
इस महापर्व में भगवान कृष्ण अपने अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ रथ यात्रा करते हैं। इस दौरान तीन अलग-अलग रथ तैयार किए जाते हैं। इसके साथ यात्रा में सबसे आगे भाई बलराम, उनके पीछे बहन सुभद्रा और सबसे आखिर यानि पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है।
भगवान जी की मूर्तियों में हाथ-पैर नहीं
भगवान जगन्नाथ व उनके भाई-बहन की इस मूर्तियों के हाथ, पैर व पंजे नहीं है। पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में मूर्तियां बनाने के लिए विश्वकर्मा जी ने शर्त रखी थी कि काम पूरा होने से कोई भी उस कमरे में ना आए। मगर किसी कारण राजा ने उनके कमरे का दरवाजा खोल दिया था। ऐसे में विश्वकर्मा ने मूर्तियों का निर्माण वहीं छोड़ दिया था। ऐसे में भगवान व उनके भाई-बहन की अधूरी मूर्तियों की पूजा की जाती है।
7 दिनों तक भगवान अपनी मौसी के यहां करते हैं विश्राम
यह भव्य यात्रा पुरी के मंदिर से आरंभ होकर भगवान के मौसी के घर यानि गुण्डीचा मंदिर में जाकर रुकती है। फिर भगवान जगन्नाथ यहां पर करीब 7 दिनों तक विश्राम करते हैं। मान्यता है कि इस समय गुण्डिचा मंदिर में सारे तीर्थ आते हैं। ऐसे में कहा जाता है कि इस रथयात्रा में भाग लेने वालों को 100 यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है।
रथ यात्रा के तीसरे दिन माता लक्ष्मी रथ का पहिया तोड़ती है
कहा जाता है कि रथ यात्रा के तीसरे दिन देवी लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ जी (विष्णु जी) को यहां ढूंढ़ने आती है। मगर पुजारियों द्वारा मंदिर का द्वार बंद कर देने से देवी मां नाराज होकर रथ का पहिया तोड़कर वापस मुड़ जाती है। फिर जगन्नाथ भगवान उन्हें स्वयं उन्हें मनाने को जाते हैं।