दांपत्य का सुख तभी तक है जब तक पति-पत्नी के बीच एक अच्छी समझ हो तथा वे एक-दूसरे के विचारों का आदर करते हुए उसके अनुरूप ढलने की कोशिश करें लेकिन आज स्थिति यह है कि छोटी-मोटी बातें, जिन्हें आसानी से नजरअंदाज किया जा सकता है को लेकर पति-पत्नी के बीच तकरार उत्पन्न होने लगती है और रिश्तों की मिठास खत्म होने लगती है। चलिए बताते हैं रिश्तों को मधुर बनाने के कुछ टिप्स।
धैर्य और सहनशीलता की कमी से होती है लड़ाई
पति-पत्नी के बीच विवादों की कोई ठोस वजह होना जरूरी नहीं है। मुद्दा कुछ भी हो सकता है। बाहर घूमने कहां जाएं या दीवारों पर कौन सा रंग करवाएं तुम्हारी फलां आदत अच्छी नहीं है, ससुराली रिश्तेदार की किसी बात को लेकर या बच्चों में अनुशासन को लेकर भी तनाव पैदा हो जाता है और बहस शुरू हो जाती है। यदि पति-पत्नी दोनों में धैर्य और सहनशीलता की कमी है तो बहस और लड़ाई थमने का नाम नहीं लेती।
हठ भी बनता है विवाद का कारण
पति-पत्नी के बीच तू-तू मैं-मैं परिवार की प्रतिष्ठा को धूमिल करती है तथा घर से बाहर कदम रखते ही लोग तरह-तरह की बातें करने लगते हैं। कोई पति को दोष देता है तो कोई पत्नी को। तुनक मिजाज दंपतियों की आपस में निभ नहीं सकती। एक का अहम और दूसरे का हठ उनके रिश्तों के बीच एक दीवार बनकर खड़ा हो जाता है। वे रहते तो एक छत के नीचे हैं लेकिन एक-दूसरे को बर्दाश्त नहीं कर पाते। इनमें से कुछ दंपतियों के बीच तलाक हो जाता है और कुछ ताउम्र लड़ते-झगड़ते रहते हैं।
कई बार आपसी झगड़े बन जाते हैं हार-जीत का सवाल
कई दंपति आपसी झगड़े को जीत और हार का सवाल बना लेते हैं जिससे तनाव और बढ़ जाता है। कभी-कभी अपने पार्टनर को ही सही मान लें। इससे बात बढ़ेगी ही नहीं और शायद आपके पार्टनर को भी अपनी गलती का अहसास होगा। लड़ाई के वक्त एक के शांत हो जाने से बात खत्म हो जाती है। इसे अपनी हार नहीं मानें। आपके मधुर व्यवहार का आपके पार्टनर के दिल पर गहरा प्रभाव पड़ेगा और इससे आपकी ही जीत होगी (‘सारी’) बहुत ही छोटा सा शब्द है लेकिन इसका प्रभाव बहुत गहरा होता है। यह सोचें कि आप भी परफैक्ट नहीं है। आपसे भी गलतियां हो सकती हैं। अत: अपनी ईगो का त्याग करें।
पति-पत्नी को खुद के भीतर झांककर देखना चाहिए
पति-पत्नी के बीच प्यार होना चाहिए, तकरार नहीं, तभी दांपत्य का सुख है। जो दंपति रोज लड़ते हैं, झगड़ते हैं उन्हें चिंतन करना चाहिए और सामने वाले में दोष ढूंढने की बजाय स्वयं अपने भीतर झांककर देखना चाहिए कि कहीं इसके लिए स्वयं वे ही तो दोषी नहीं हैं।