कुछ करके मरने वाले लोग हमेशा लोगों की याद और काम से जिंदा रहते हैं। भारत की पहली महिला एस्ट्रोनॉट कल्पना चावला का नाम भी उन्हीं लोगों में शुमार है। कल्पना 14 साल पहले आज ही के दिन दुनिया को अलविदा कह गई थी लेकिन आज भी लोग अपने बच्चों को उनकी मिसाल देते हैं। कल्पना ने अपनी मेहनत व लगन से वो मुकाम हासिल किया था, जिसका सपना हर लड़की देखती हैं।
चलिए आज उनकी डेथ एनिवर्सरी पर हम आपको उनसे और उनके अंतरिक्ष से जुड़ी कुछ बातें बताते हैं...
बचपन में ही देखा था अंतरिक्ष में उड़ने का सपना
हरियाणा के करनाल जिले में जन्मी कल्पना ऐसे परिवार से थी, जहां लड़कियों को घर से पैर बाहर रखने की इजाजत नहीं थी। मगर, कल्पना ने घर की चार दीवारों में अपने आप को कैद करने के बजाएं, अपनी पहचान पहली भारतीय-अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री के रूप में बनाई।
डॉक्टर बनाना चाहते थे पिता
क्लास में उनकी गिनती एवरेज स्टूडेंट्स में थी। क्लास 8th में आते-आते वह अपने फ्यूचर के बारे में सोचने लगी थीं। उनके पिता का सपना था कि वो डॉक्टर या टीचर बने लेकिन कल्पना तो अंतरिक्ष में उड़ने के ख्वाब देख रही थी, जिसे उन्होंने पूरा भी किया।
मां ने दिया साथ
कल्पना पता था कि पिता उन्हें एस्ट्रोनॉट बनने की इजाजत नहीं देंगे इसलिए अपनी दिल की बात मां से कह दी। उनकी मां ने पिता को काफी समझाया, जिसके बाद उनके पिता ने भी कल्पना के सपनों पर अपनी सहमती की मोहर लगा दी।
इसलिए की इंजीनियर की पढ़ाई
कल्पना को उड़ते जहाज बहुत आकर्षित करते थे इसलिए उनके बारे में डिटेल से जानने के लिए पहले उन्होंने इंजीनियर की पढ़ाई की। स्कूली पढ़ाई के बाद कल्पना ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया और अमेरिका चली गईं। वहीं से उनके एस्ट्रोनॉट बनने का सफर शुरू हुआ। इसके बाद उन्होंने आगे Texas की पढ़ाई की।
न आलसी थीं, न डरपोक
कल्पना भले ही पढ़ाई में बहुत अच्छी नहीं थी लेकिन खेल में उन्हें काफी इंट्रेस्ट था। यही वजह है कि उन्हें बैडमिंटन, डांसिंग, सिंगिंग और पोयट्री लब आता था। अलसी न होने के साथ ही साथ कल्पना निडर भी थीं। अपनी इस खूबी की वजह से ही उन्हें हवाईजहाज़ों, ग्लाइडरों व व्यावसायिक विमानचालन के लाइसेंस के लिए प्रमाणित उड़ान प्रशिक्षक का दर्ज़ा हासिल था।
एस्ट्रोनॉट से पहले थी रिसर्च वाइस प्रेसिडेंट
कल्पना एस्ट्रोनॉट होने से पहले नासा में एक विशेष रिसर्च में वाइस प्रेसिडेंट थी। इसके बाद उन्हें एस्ट्रोनॉट्स की कोर टीम में शामिल किया गया। वर्ष 1998 में कल्पना ने स्पेस के लिए जब अपनी पहली उड़ान भरी तो उन्हें भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री होने का खिताब दिया गया। हालांकि उनसे पहले भारत की ओर से वर्ष 1984 में राकेश शर्मा स्पेस जा चुके थे।
कल्पना की शादी
कल्पना बेहद प्रैक्टिकल थी इसलिए उन्होंने शादी के लिए ऐसे व्यक्ति को चुना जो उनके सपनों को समझ सके। उन्होंने फ्लाइंग ट्रेनर एवं एरोनॉटिक ऑथर जीन पियरे हैरीसन से साल 1983 में शादी की थी। कल्पना के काम से अच्छी तरह वाकिफ होने के कारण जीन ने उन्हें आगे बढ़ने से कभी नहीं रोका।
कल्पना की आखिरी यात्रा
साल 2000 में कल्पना अपनी दूसरी उड़ान के लिए निकली लेकिन यह उनकी आखिरी यात्रा साबित हुई। दूसरी उड़ान में उन्होंने 16 दिन अंतरिक्ष में बिताए थे लेकिन 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल पृथ्वी की कक्षा मे प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया। इसके साथ यान में सवार 7 यात्री दुनिया को अलविदा कह गए, जिसमें कल्पना भी शामिल थीं। हादसे के बाद उनके शरीर के अवशेष टेक्सास शहर में मिले थे।
कल्पना से महिलाएं ये सीख ले सकती हैं कि अगर खुद पर विश्वास करना सीख लिया तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होगा। कल्पना मजबूत विचारों वाली महिला थीं। हर महिला को कल्पना की इस खूबी को अपनाना चाहिए और कभी खुद को कमजोर नहीं समझना चाहिए।