ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा आज सुबह शुरु हो गई है। हर बार की तरह इस बार भी इस बार बड़ी संख्या में श्रद्धालु इसमें शामिल हो रहे हैं। पंचागों के मुताबिक आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि से जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। 10 दिनों तक यह बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। वहीं इस मंदिर के प्रसाद की अपनी अलग विशेषता होती है। मुख्य तौर पर मंदिर में जो भगवान के आशीर्वाद स्वरुप में भक्तों को दिया जाता है उसे ही प्रसाद कहते हैं परंतु भगवान जगन्नाथ के मंदिर में मिलने वाले इस प्रसाद को महाप्रसाद कहते हैं। माना जाता है कि जो भक्त इस प्रसाद को खाते हैं उनकी सारे मनोकामनाएं पूरी होती हैं इसके अलावा भक्तों को भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद भी मिलता है। इस प्रसाद की मुख्य बात यह है कि यह बाकि प्रसादों से अलग होता है और विशेष महत्व रखता है। वास्तव में इस प्रसाद को कुछ अलग तरीके से तैयार किया जाता है और लाखों लोग इसे चखने के लिए आते हैं। यह प्रसाद कैसे तैयार होता है आज आपको इसके बारे में बताते हैं...
बाकी मंदिरों से अलग होता है जगन्नाथ का प्रसाद
जगन्नाथ का प्रसाद बाकी अन्य मंदिरों से अलग होता है और यह विशेष महत्व रखता है। वास्तव में इसे कुछ अलग तरह के तैयार किया जाता है और इसे खाने के लिए लोग लाखों की संख्या में पहुंचते हैं।
सबसे बड़ी रसोई में किया जाता है तैयार
पूरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर काफी फेमस तीर्थस्थलों के रुप में जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, यहां की रसोई कुछ खास है और दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है। इस रसोई में महाप्रसाद तैयार किया जाता है जिसे सैंकड़ों लोग मिलकर तैयार करते हैं। माना जाता है कि रसोई में महाप्रसाद खुद मां लक्ष्मी तैयार करवाती हैं। इसके अलावा जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान इसका भोग भी अर्पित किया जाता है और सारे भक्तों में बांटा जाता है। रसोई में लगातार 56 भोग बनाए जाते हैं।
ऐसे बर्तनों में बनाया जाता है महाप्रसाद
जगन्नाथ मंदिर की रसोई में बनाया जाने वाला प्रसाद बहुत ही शुद्ध तरीके से तैयार किया जाता है। इसमें प्याज, लहसुन का इस्तेमाल भी नहीं किया जाता। यह खाना पूरी तरह से सात्विक होता है और धर्म ग्रंथों में बनाए गए नियमों के अनुसार ही बनाया जाता है। इसे मिट्टी के बर्तनों में बनाया जाता है और इन बर्तनों का रंग लाल होता है। माना जाता है कि रोज महाप्रसाद तैयार करने के लिए नए बर्तन इस्तेमाल किए जाते हैं।
भक्तों को कम नहीं पड़ता प्रसाद
माना जाता है कि इस रसोई में आकर कितने भी लोग खाना खा ले यह महाप्रसाद उन्हें कम नहीं पड़ता। इस रसोई में मिलने वाले महाप्रसाद की मात्रा कभी भी कम नहीं होती। यही नहीं महाप्रसाद में मिलने वाली सामग्री भी कभी बेकार नहीं होती। इस रसोई में खासियत है कि इसमें चाहे हजारों, लाखों की संख्या में लोग रोज महाप्रसाद ग्रहण करते हैं और यह सभी की भूख कम करने में मदद करता है। यहां नियमित रुप से महाप्रसाद में तैयार होने वाली सामग्री मानो पूरे साल के लिए भी पूरी नहीं होती।
शुद्ध पानी से किया जाता है तैयार
मंदिर का महाप्रसाद मंदिर के पास में स्थित दो कुओं के पानी से बनाया जाता है। इन कुओं को गंगा जमुना के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इन दोनों नदियों का नाम पवित्र नदियों के नाम से रखा गया है इसलिए इसका पानी बहुत ही शुद्ध और पवित्र माना जाता है। जगन्नाथ भगवान को नियमित रुप से 6 वक्त का भोग लगाया जाता है जिसमें करीबन 56 तरह के व्यंजन शामिल होते हैं।
महाप्रसाद को तैयार करने का अनोखा तरीका
जगन्नाथ जी के भोग के लिए रोजाना 56 तरह के भोग बनाए जाते हैं यह सारे भोग भगवान जगन्नाथ को बहुत ही प्रिय हैं। इस प्रसाद की खासियत यह होती है कि रसोई में प्रसाद बनाने के लिए 7 मिट्टी के बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं और यह महाप्रसाद लकड़ी पर ही बनाए जाते हैं। इन बर्तनों में रखी गई सामग्री पहले पक जाती है और उसके बाद बाकी की चीजें तैयार होती हैं। इस प्रसाद की खासियत पूरे देश में मशहूर है और लाखों लोगों की भूख कम होती है।