ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के इतिहास में भारत की अदिति शंकर ने अपना नाम दर्ज करवा लिया है। सिर्फ आठ साल की अदिति का बिना दवाईयों के ट्रांसप्लांट किया गया है। डॉक्टरों ने उसकी इम्यूनिटी को फिर से तैयार करके उसे फिर से जीवनदान दिया है। अदिति एक जेनेटिक स्थिति से पीड़ित थी जिसके बाद उन्हें उनकी मां दिव्या का बोन मैरो लेकर ट्रांसप्लांट किया गया। दिव्या की मां ने उन्हें किडनी भी डोनेट की है। लंदन के ग्रेट ऑरमंड स्ट्रीट हॉस्पिटल के द्वारा शुरु की गई इस पहल का अर्थ है कि अदिति की नई किडनी इम्यूनोप्रेसेंट दवाईयों की जरुरत के बिना काम करती हैं।
डॉक्टरों ने बताया नई पहल की खुशी
अदिति का ट्रांसप्लांटेशन करने वाले प्रोफेसर ने कहा कि - 'यह पहली बार है जब मैंने 25 सालों में किसी ऐसे व्यक्ति की देखभाल की है जिसे किडनी ट्रांसप्लांट के बाद इम्यूनोप्रेशन की जरुरत नहीं पड़ी। उन्होंने कहा कि - 'हमें उम्मीद है कि हमारा शोध अदिति जैसे बच्चों को एक ऑप्शन प्रदान करेगा जिनके लिए किडनी ट्रांसप्लांट पहला ऑप्शन नहीं था, जीवन बदलने वाली किडनी ट्रांसप्लांट का नया अवसर देगा। चिकित्सकों के अनुसार यह इसलिए संभव हो सका क्योंकि अदिति की इम्यून स्थिति ठीक थी इसके लिए उन्हें गंभीर किडनी ट्रांसप्लांट के लिए अपनी मां से छ महीने पहले ही बोन मैरो प्राप्त हुआ था। इससे उनकी इम्यूनिटी को उसकी डॉनर किडनी के जैसे बनाया ताकि ट्रांसप्लांट किए गए अंग अदिति के शरीर पर हमला न कर सकें।'
अदिति में दिखा एक नया बदलाव
अदिति के पिता जी ने बताया कि - 'पिछले तीन सालों से अदिति की सारे एनर्जी डायलिसिस में चली गई थी उसकी किडनी ट्रांसप्लांट होने के बाद हमने उसके शरीर में एनर्जी का एक बड़ा बदलाव देखा।' पिता ने कहा कि - 'हम अपने अंगों को हल्के में लेते हैं लेकिन हम सभी के पास ऐसा उपहार है। आमतौर पर अंगों का ट्रांसप्लांट होने के बाद जीवन भर के लिए व्यक्ति इम्यूनोसप्रेसेंट दवाईयों पर निर्भर हो जाता है लेकिन बोन मैरो और किडनी ट्रांसप्लांट के लिए एक ही डोनर का इस्तेमाल करने का मतलब है कि इम्यूनिटी सिस्टम को फिर से प्रोग्राम किया जाता है ताकि यह नए गुर्दे के लिए एक सामान हो जाए और आगे आने वाली समस्याओं को इसके जरिए कम किया जा सके।'
यूके में शुरु हुई नई पहल
अदिति का इलाज सही से हो जाने के बाद ब्रिटेन में पहली बार यह उम्मीद जागी है कि एक जीवित व्यक्ति के जरिए किडनी ट्रांसप्लांट के बाद बोन मैरो का ट्रांसप्लांट करके गुर्दे की विफलता और अन्य स्थितियों वाले गंभीर रुप से बीमार बच्चों और व्यस्कों के इलाज के लिए किया जा सके। इस सफलता पर एक्सपर्ट्स ने बताया कि - 'टीम को इस मामले में पेश की गई वैज्ञानिक, नैतिक और व्यावहारिक चुनौतियों को सुलझाने के लिए अपनी सारी विशेषज्ञता और लीक से हटकर सोचने वाली सोच का इस्तेमाल करना पड़ा। हम यह देखकर बहुत ही खुश हैं कि वह कितना अच्छा कर रही है और उसके परिवार के साथ इस सफलता को शेयर करने के लिए अविश्वसनीय रुप से हमें गर्व है। हम पहले से यह देखने के लिए कम कर रहे हैं कि यह सफलता ज्यादा परिवारों की मदद करने में कैसे मदद करेगी।'