मध्य प्रदेश के छोटे से शहर होशंगाबाद की रहने वाली सरिता चौरे किसी पहचान की मोहताज नहीं। दृष्टिबाधित होने के बाद भी उन्होंने विदेशी सरजमीं पर कॉमनवैल्थ जूडो चैंपियनशिप में भारत को कांस्य पदक दिलाया था।
एथलीट बनने का सपना
देख न पाने के बावजूद सरिता एथलीट बनने का सपना देखती थीं। कई साल के अथक प्रयास के बाद आखिरकार सरिता ने अपने सपने को सच कर दिखाया। 2018 में छठे राष्ट्रीय ब्लाइंड और पैरा जूड़ो चैंपियनशिप में उन्होंने 44 किलोग्राम जूनियर वर्ग में कांस्य पदक जीतकर देश का नाम ऊंचा किया।
आसान नहीं रही राह
होशंगाबाद के गांव बांजराकला की रहने वाली सरिता के पिता मजदूरी करते हैं। आर्थिक तंगी के बीच उन्होंने पूरे परिवार का पालन-पोषण किया। उनके पिता जानते थे कि उनकी आर्थिक दशा ठीक नहीं लेकिन तब भी उन्होंने सरिता को पढ़ने के लिए इंदौर भेजा।
2024 के लिए कर रही हैं तैयारी
अब सरिता का लक्ष्य 2024 में होने वाली ग्रीष्मकालीन ओलिंपिक है। इसके लिए वह खुद को और बेहतर बनाने में लगी हुई हैं। कोरोना के कारण उनकी ट्रेनिंग में कुछ रुकावटें आ रही हैं लेकिन इन परेशानियों के बावजूद सरिता का साहस बरकरार है। वह देश के लिए एक बार फिर से पदक लाना चाहती हैं।