महिलाओं का ज्यादातर समय किचन में ही गुजरता है, खासकर भारतीय औरतों का। आज के मॉर्डन समय में भी जब महिलाएं योग्यता और हुनर के दम पर पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलती है तब भी उन्हें सिर्फ किचन के योग्य ही समझा जाता है।
औरत से ही उम्मीद क्यों?
भले ही घर पुरुष और महिला दोनों मिलकर चलाएं लेकिन जब बात खाना बनाने की हो तो महिलाओं को आगे कर दिया जाता है। जबकि असल में किचन का काम महिलाओं का एकाधिकार नहीं बल्कि एक जरूरत है। भारतीय समाज में आज भी औरत से ही यह उम्मीद रखी जाती है कि वही रसोई का दायित्व संभाले।
सिर्फ खाना बनाना नहीं औरत का काम
भारतीय समाज में हमेशा से ही लोगों के दिमाग में रहा है कि पैसा कमाना पुरुष और घर संभालना औरत का काम है लेकिन समय बदल चुका है। आज कई लोग ऐसे हैं जो अपनी मां, पत्नी, बहन के साथ घर के कामों में हाथ बटाते हैं। हालांकि ऐसी सोच वाले पुरुषों का संख्या कम है।
पुराने समय से चली आ रही रीत
मगर, सवाल यह उठता है कि ‘केवल पत्नी ही किचन का काम करेगी, पति नहीं’ ऐसी सोच रखने का कारण क्या है? सिर्फ भारतीय समाज में ही ऐसी सोच क्यों? दरअसल, महिलाओं को पुराने समय से चारदीवारी में रहना सिखाया जाता था। घर का वातावरण हो या रीति-रिवाजों, इन सब के चक्कर में वह खुद का वजूद भूलने लगती हैं लेकिन अब औरतें गुलामी की इस मानसिकता से आजाद हो चुकी हैं। आज की नारी किचन के अलावा अपने शौक पर भी ध्यान देती है।
मशीनी जिंदगी और…
लॉकडाउन की बात ही ले लोग, सारे दफ्तर, ऑफिस, स्कूल पर ताला लगा दिया गया था लेकिन महिलाएं की किचन इस समय भी 24/7 खुली थी। लॉकडाउन के चलते कामवाली नहीं आ रही थी, उधर फरमाइशें खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी लेकिन महिलाएं फिर भी अपनी ड्यूटी से पीछे नहीं हटी। उसका भी मन होगा कि सप्ताह की भागदौड़ से कुछ आराम मिलेगा लेकिन उन्हें मिली तो वही मशीनी जिंदगी।
इच्छाओं का दमन न करें
परिवार, पति और बच्चों की फरमाइशों के आगे महिलाओं को अपनी इच्छाएं ही दबानी पड़ती हैं। वह सोचती ही रह जाती है कि कभी खुद के लिए भी कुछ कर लेकिन समय ही नहीं मिल पाता। एक समय तो ऐसा आ जाता है कि खाना बनाने में माहिर महिलाएं भी सोचती हैं, मैं जीवन भर क्या खाना ही बनाती रहूंगी? मैं कोई रसोइया नहीं हूं। मुझे भी बाकी लोगों की तरह एक दिन आराम मिलना चाहिए।
फरमाइशें तो कभी रुकने वाली नहीं इसलिए थोड़ा-सा समय निकालें और पैंटिंग, म्यूजिक, डांस, रीडिंग आदि के शौक को पूरा करें। परिवार के बाकी लोगों को चाहिए कि वो एक दिन घर की औरतों को छुट्टी दें और उन्हें कुछ बनाकर खिलाएं।
न भूलें अपनी प्रतिभा
परिवार को खुश करने के लिए महिलाएं अक्सर अपने शौक, रूचि, प्रतिभा को त्याग देती है। सिर्फ परिवार की खुशी ही उनकी जिंदगी बन जाती है, जोकि गलत है। परिवार का ख्याल रखना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन खुद के लिए भी थोड़ा-सा समय निकालना जरूरी है।
सपनों को पंख दें
हर महिला को खाना बनाने का शौक नहीं होता इसलिए कुकिंग आप पर लादी नहीं जानी चाहिए। किचन का काम आपकी पसंद पर होना चाहिए मजबूरी नहीं। हां अगर आपको कुछ क्रिएटिव करने का मन हो तो जरूर करें। लेकिन अगर आपका इंटरेस्ट किसी ओर चीज में है तो अपने सपनों को पंख देने से ना रोके। परिवार वालों से बात करें और इसका हल निकालें।