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Lohri 2022: कब मनाई जाएगी लोहड़ी, क्यों सुनी जाती है इस पर्व पर दुल्ला-भट्टी की कहानी

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 10 Jan, 2022 11:14 AM
Lohri 2022: कब मनाई जाएगी लोहड़ी, क्यों सुनी जाती है इस पर्व पर दुल्ला-भट्टी की कहानी

लोहड़ी देश भर में मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, खासकर पंजाब में इस पर्व को भांगड़ा और गिद्दा करते हुए बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। वहीं, इस दौरान लोग आग जलाकर उसमें रेवड़ी, मूंगफली, पॉपकार्न, गुड़, तिल, गजक आदि डालकर पूजा करते हैं। चलिए आपको बताते हैं कि इस साल लोहड़ी का शुभ मुहूर्त क्या है।

लोहड़ी का महत्व

लोहड़ी सर्दियों के जाने और बसंत के आने का प्रतीक भी है। कुछ जगहों पर इस पर्व को 'तिलोड़ी' भी कहा जाता है। इसके अलावा, इसे रबी फसलों की कटाई का त्योहार माना जाता है इसलिए लोग रात को आग जलाकर उसमें गेहूं की बलियां अर्पित करके सूर्य देव और अग्नि का आभार प्रकट किया जाता है।

लोहड़ी पर अग्नि प्रज्जवलन का शुभ मुहूर्त

लोहड़ी का पर्व पौष कृष्ण एकादशी को आता है लेकिन तारीख के हिसाब से यह पर्व 13 जनवरी को मनाया जाएगा। गुरुवार की सायंकाल 5 बजे से रोहिणी नक्षत्र आरंभ हो जाएगा। इसके बाद आप गेहूं, रेवड़ियां, तिल आदि अग्नि पूजन में अर्पित करके रात तक लोहड़ी का पर्व मना सकते हैं।

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कैसे पड़ा लोहड़ी का नाम?

हिंदू सौर कैलेंडर के अनुसार, लोहड़ी 13 जनवरी के दिन मनाई जाती है। दिलचस्प बात यह है कि अगर त्योहार से जुड़ी लोकप्रिय मान्यताओं में से एक है, तो लोहड़ी 'लोह' शब्द से ली गई है, जिसका अर्थ है लोहा। पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, लोहड़ी का नाम समाज सुधारक कबीर दास की पत्नी लोई के नाम पर रखा गया है।

भगवान विष्णु से भी संबंध

एक अन्य कथा के अनुसार, लोहड़ी, होलिका की बहन है। उनके भाई, राक्षस हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु के एक भक्त प्रह्लाद को आग लगाकर मारने की साजिश रची। हालांकि, भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की आग से रक्षा की और होलिका को इस पाप के लिए दंडित किया और वह खुद इस आग में भस्म हो गई। यह त्यौहार बुराई पर अच्छी की जीत का प्रतीक भी है।

क्यों सुनी जाती है दुल्ला-भट्टी की कहानी?

इस त्योहार से जुड़ी कई कहानियां हैं। किंवदंतियों में से एक के अनुसार, लोहड़ी गीत दुल्ला भट्टी नाम के एक रईस की बहादुरी की याद दिलाता है, जिसने मुगलों से सुंदरी और मुंदरी नाम की दो लड़कियों को बचाया था। इसके बाद, वह अपनी बेटियों की तरह उनकी देखभाल करने लगा इसलिए लोहड़ी पर प्रसिद्ध गीत भी गाया जाता है। जो इस प्रकार है...

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सुंदर मुंदरिए हो, तेरा कौन बेचारा हो,
दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ले ती विआई हो,

शेर शकर पाई हो, कुड़ी दे जेबे पाई हो,
कुड़ी कौन समेटे हो, चाचा गाली देसे हो,

चाचे चुरी कुटी हो, जिम्मीदारा लूटी हो,
जिम्मीदार सुधाए हो, कुड़ी डा लाल दुपटा हो,

कुड़ी डा सालू पाटा हो, सालू कौन समेटे हो,
आखो मुंडियों ताना 'ताना', बाग तमाशे जाना ‘ताना’,

बागों मनु कोडी लबी 'ताना' कोडी दा मैं का 'खरदिया ताना',
का मैं गऊ नू दिता 'ताना' गऊ मनु दुध दिता 'ताना',

दुध दी मैं खीर बनाई 'ताना', खीर मैं पंडित नू दिति 'ताना',
पंडित ने मनु धोती दिति 'ताना' पाड़ पुढ़ के 'काके' दी लगोटी सीति 'ताना'।

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