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माता दुर्गा क्यों करती हैं शेर की सवारी? जानिए पीछे की पौराणिक कथा

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 29 Sep, 2024 06:14 PM
माता दुर्गा क्यों करती हैं शेर की सवारी? जानिए पीछे की पौराणिक कथा

नारी डेस्क: हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के वाहन का विशेष महत्व होता है। हर देवी या देवता का अपना विशिष्ट वाहन होता है, जो उनके गुणों और शक्तियों का प्रतीक माना जाता है। माता दुर्गा, जिन्हें शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है, को शेर की सवारी करते हुए दिखाया जाता है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि माता दुर्गा शेर पर ही क्यों सवार होती हैं? इसके पीछे की कथा न केवल रोचक है, बल्कि यह दर्शाती है कि किस प्रकार शिवजी के मजाक और माता पार्वती की तपस्या से यह संबंध स्थापित हुआ।

नवरात्रि और माता दुर्गा का महत्व  

नवरात्रि, जो हर वर्ष 9 दिनों तक मनाया जाता है, माता दुर्गा के नौ रूपों की आराधना का पर्व है। 2024 में यह पावन पर्व 3 अक्टूबर से शुरू हो रहा है। इस दौरान, माता दुर्गा के प्रत्येक रूप की पूजा की जाती है और उन्हें शेर पर सवार देखा जाता है। शेर, जो साहस और बल का प्रतीक है, इस बात का द्योतक है कि माता दुर्गा हर प्रकार की नकारात्मक शक्तियों का नाश करती हैं और भक्तों को उनकी शक्ति और साहस का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। 

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शिवजी का मजाक और माता पार्वती की तपस्या  

पुराणों में वर्णित एक प्राचीन कथा के अनुसार, एक दिन भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर बैठे आपस में हंसी-मजाक कर रहे थे। इस दौरान भगवान शिव ने मजाक में माता पार्वती को "काली" कह दिया। शिवजी के इस मजाक से माता पार्वती बहुत नाराज हो गईं और क्रोध में आकर कैलाश पर्वत छोड़कर वन में तपस्या करने चली गईं। उनका यह प्रण था कि जब तक वे गोरी नहीं हो जातीं, तब तक तपस्या करती रहेंगी।  

वन में जाकर माता पार्वती एक घने वृक्ष के नीचे तपस्या में लीन हो गईं। इसी दौरान, एक भूखा शेर उस वन में आ पहुंचा और माता पार्वती को भोजन समझकर उनकी ओर बढ़ने लगा। लेकिन माता पार्वती के शरीर से निकलने वाले तेज के कारण वह शेर माता के पास नहीं पहुंच सका। वह शेर बार-बार प्रयास करता रहा, लेकिन माता के दिव्य तेज के कारण हर बार असफल हो जाता। आखिरकार, वह भी माता की तपस्या से प्रभावित होकर वहीं बैठकर तपस्या करने लगा।  

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 शेर बना माता का वाहन  

कुछ वर्षों बाद, भगवान शिव उस वन में आए और माता पार्वती को दर्शन दिए। उन्होंने माता को वरदान दिया कि अब वह गोरी हो जाएंगी। भगवान शिव के वरदान से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने वहीं स्थित एक नदी में स्नान किया और गोरी हो गईं। जब माता नदी से निकलीं, तो देखा कि वह शेर अब भी तपस्या में लीन है। माता पार्वती ने उससे तपस्या का कारण पूछा। शेर ने विनम्रता से बताया कि वह उन्हें भोजन बनाने के उद्देश्य से आया था, लेकिन उनके दिव्य तेज के कारण ऐसा नहीं कर सका और अंततः उनकी कृपा पाने के लिए तपस्या करने लगा।  

शेर की तपस्या और उसकी भक्ति को देखकर माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुईं और उन्होंने शेर को अपना वाहन बना लिया। तभी से माता दुर्गा, जो देवी पार्वती का ही एक रूप हैं, शेर की सवारी करती हैं। यह शेर साहस, शक्ति और अभयता का प्रतीक है। माता दुर्गा के शेर पर सवार होने का अर्थ है कि वे अपने भक्तों को साहस और आत्मविश्वास प्रदान करती हैं और नकारात्मक शक्तियों का विनाश करती हैं।  

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शेर का प्रतीकात्मक महत्व  

शेर भारतीय संस्कृति में बल, साहस और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक माना जाता है। माता दुर्गा का शेर पर सवार होना यह भी दर्शाता है कि उन्होंने न केवल अपनी आंतरिक शक्तियों पर विजय प्राप्त की है, बल्कि उन्हें नियंत्रित भी किया है। यह संदेश उन सभी भक्तों के लिए है कि जब तक हम अपनी आंतरिक शक्तियों और कमजोरियों को समझकर उन पर नियंत्रण नहीं करेंगे, तब तक हम सच्ची शक्ति प्राप्त नहीं कर सकते।  

इस प्रकार, माता दुर्गा और शेर की यह पौराणिक कथा हमें यह सीख देती है कि ईश्वर की कृपा और तपस्या से कुछ भी असंभव नहीं है। साथ ही, यह कथा साहस और भक्ति का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती है, जिसमें न केवल शेर ने अपनी भूख पर काबू पाया, बल्कि अपनी भक्ति से माता दुर्गा का प्रिय वाहन भी बन गया।

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