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बुलंद हौंसलों के साथ पूरा किया सपना, बीमारी को पीछे छोड़ ऐसे पैराएथलिट बनी दीपा मलिक

  • Edited By palak,
  • Updated: 20 Mar, 2023 03:07 PM
बुलंद हौंसलों के साथ पूरा किया सपना, बीमारी को पीछे छोड़ ऐसे पैराएथलिट बनी दीपा मलिक

कहते हैं भारतीय नारी सब पर भारी यह कहावत ऐसे ही नहीं बनी। कई सारी महिलाओं ने भारत में ऐसे काम किए हैं जिसने देश का मान बढ़ाया है। उन्हीं में से कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जो शारीरिक बाधाओं से ऊपर उठी हैं। इन्होंने अपनी शारीरिक दुर्बलता को कमजोरी नहीं बनने दिया और अपने बुलंद हौंसलों के जरिए हर मुकाम हासिल किया है। उन्हीं महिलाओं में से एक हैं दीपा मलिका। दीपा मलिक वह पैरा एथलीट खिलाड़ी हैं जिन्होंने देश को पहला पैरालंपिक पदक दिलवाया था। इसके अलावा भी वह कई सारे अवॉर्ड्स से सम्मानित हो चुकी हैं। 

छोटी सी उम्र में चला था पैर की कमजोरी का पता 

दीपा जब छह साल की थी तो उन्हें अपने पैर की कमजोरी का पता चला था। धीरे-धीरे उन्होंने चलना फिरना भी बंद कर दिया और वह अचानक से बिस्तर पर चली गई जिसके बाद उनका इलाज शुरु हुआ। एक इंटरव्यू में दीपा ने बताया था उन्हें इलाज के लिए कई बार यहां-वहां आना जाना पड़ता था लेकिन अंत में उनके पापा ने पुणे में पोस्टिंग करवा ली और वहां के कमांड अस्पताल में उन्हें भर्ती करवा दिया, मैं अपने माता-पिता को देखकर काफी कुछ सीखती ती। मैंने उनसे पहली चीज जिम्मेदारी सिखी उन्हें इतनी जिम्मेदारियां निभाते हुए देखा कि छोटी सी उम्र में ही मुझे जिम्मेदारियों का एहसास हुआ । इसके अलावा मैंने अपने माता-पिता से उम्मीद बनाए रखना सीखी। मैंने लगभग 8 महीने बाद चलना सीखा और यह हौसला मुझे मेरे माता-पिता ने ही दिया। 

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30 साल की उम्र में शुरु किया था करियर 

दीपा मलिक ने अपना एथलेटिक्स करियर 30 साल की उम्र में शुरु किया था। गोल फेंक, तैराकी, भाला फेंक, डिस्कस थ्रो और बाइकर जैसी कई सारी प्रतियोगिताओं में भी दीपा मलिक ने भाग लिया। उनके जोश और जज्बे ने बीमारी को पछाड़ अपना सपना पूरे किए। रियो पैरालंपिक में मेडल जीतकर दीपा मलिक ने इतिहास रच दिया। वह एक अच्छी शॉटपुट और जेवलिन थ्रो की एक अच्छी एथलीट भी हैं। इसके अलावा वह एक बहुत अच्छी बाइकर भी हैं। उन्होंने 18 इंटरनेशनल और 54 नेशनल पदक भी जीते हुए हैं। पैरालंपिक में 2018 में पैरा एथलेटिक ग्रिंड प्रिक्स चैंपियनशिप में दीपा ने ज्वेलिन थ्रो में गोल्डन पदक भी जीता था। 

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कैसे बड़ी खेलों में रुचि?

जब दीपा का इलाज चला तो 7-8 महीने के दौरान उनके अंदर कुछ करने की जिद पैदा कर दी। उस दौरान उन्होंने सोच लिया कि उन्हें जीतना है, साबित करना है कि वह बाकियों के मुकाबले एक्टिव और फिट हैं। बचपन से ही वह स्कूल में खेलों, डिबेट ग्रूप डांस, थिएटर, पब्लिक स्पीकिंग जैसे हर एक्टिविटीज और प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेना शुरु कर दिया था। ऐसे ही उनमें खेलों के प्रति रुचि बढ़ती गई। उन्होंने सोफिया कॉलेज अजमेर से ग्रेजुएशन किया। अजमेर हॉस्टल में रही और वहां पर उन्होंने राजस्थान की क्रिकेट और बॉस्केटबॉल टीम ज्वाइन की। 

कई अवार्ड्स से हो चुकी हैं सम्मानित 

भारतीय टीम ने दीपा के नेतृत्व में टोक्यो पैरालंपिक में इतिहास में कई सारे पदक जीते थे। इसी बात का सम्मान देते हुए उन्हें एशियाई ऑर्डर से 2022 में सम्मानित किया गया था। यह सम्मान पैरा स्पोर्ट्स में भाग लेने वाले सारी एशियाई देशों में सबसे सर्वोच्च सम्मान है।  इसके अलावा 2012 में दीपा को अर्जुन पुरस्कार और 2017 में पद्म श्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। 2019 में दीपा को महिला और बाल विकास मंत्रालय की ओर से पहला महिला पुरस्कार और मेजर ध्यानचंद खेल रत्न  पुरस्कार भी मिल चुका है। 2020 में दीपा को पैरांलपिक कमेटी ऑफ इंडिया का अध्यक्ष भी बनाया गया था। 

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