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मेहनत कभी बेकार नहीं जाती! गोशाला में रहकर की पढ़ाई, अब जज की कुर्सी संभालेगी सोनल

  • Edited By Janvi Bithal,
  • Updated: 21 Jan, 2021 01:59 PM
मेहनत कभी बेकार नहीं जाती! गोशाला में रहकर की पढ़ाई, अब जज की कुर्सी संभालेगी सोनल

कहते हैं अगर आप में कुछ करने की सच्ची लग्न हो तो आपको जीत हासिल करने से कोई नहीं रोक सकता है। और आज तो लड़कियां हर एक क्षेत्र में देश का नाम रोशन कर रही हैं। रोजाना हम ऐसी कितनी ही सफलता की कहानियां सुनते हैं। हाल ही में एक ऐसी ही सफलता की कहानी सामने आई है उदयपुर की सोनल शर्मा की। जिसने जज बनकर आज न सिर्फ अपने माता पिता का बल्कि समाज में भी एक अलग पहचान बना ली लेकिन यह सब सोनल के लिए आसान नहीं था। तो चलिए आपको आज सोनल शर्मा की सफलता की कहानी बताते हैं। 

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पिता के साथ तबेले में किया काम 

सोनल आज अपनी सफलता का कारण अपने पिता को मानती हैं। सोनल का बचपन बाकी बच्चों की तरह खेल कूद में नहीं बीता बल्कि उन्होंने बचपन से ही पिता के साथ तबेले में काम करना शुरू कर दिया और आज राजस्थान न्यायिक सेवा की प्रतियोगी परीक्षा में सफलता हासिल की है। इस बात से शायद सोनल खुद भी अनजान होगी। 

तबेले के साथ-साथ पढ़ाई में भी आगे थी सोनल 

सोनल अपने पिता के साथ तबेले में कंधे से कंधा मिलाकर काम करती। गाय का गोबर उठाने से लेकर दूध निकालने तक और तबेले की साफ सफाई करने तक सोनल सारा काम अपने पिता के साथ कर लेती थी लेकिन वह इसे अपने जीवन का हिस्सा नहीं बनाना चाहती थी और कुछ अलग करके माता पिता का नाम रोशन करना चाहती थी।  पिता की मदद के साथ-साथ वह पढ़ाई में भी हमेशा आगे रही और हमेशा पहले नंबर पर आती थी। 

आर्थिक तंगी के कारण नहीं ली कोचिंग

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ऐसे एग्जाम को क्लियर करने के लिए आपको कोचिंग लेने की जरूरत होती है लेकिन सोनल के घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। जिसके कारण उन्होंने कोचिंग नहीं की। सोनल ने जब बीए एलएलबी में एडमिशन लिया तो  वहां आते जज को देखकर सोनल ने जज बनने का सपना देखा लेकिन कोचिंग न मिलने के कारण भी सोनल नहीं रूकी और आगे बढ़ती गई और इस ख्वाब को पूरा करने के लिए खुद ही दिन रात मेहनत की और दूसरे प्रयास में ही इसे क्लियर किया। 

पहली बार मिली असफलता लेकिन हारी नहीं 

कहते हैं न कि आपको सफलता इतनी आसानी से नहीं मिलती है। और कुछ ऐसा ही हुआ था सोनल के साथ। पहली बार में सोनल सिर्फ 3 अंक से रह गई थी लेकिन फिर भी उसने हार नहीं मानी और  लगातार आगे बढ़ती गई और ट्राई करती गई। 

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गोबर से सनी होती थी चप्पल

सोनाली को पढ़ाने के लिए उनके माता पिता ने भी पूरा साथ दिया और पैसे न होने के बावजूद भी बेटी के लिए कर्ज लिया और उसे पढ़ाया हालांकि सोनल जब स्कूल में पढ़ती थी तो उसे अपने दोस्तों तो यह बताने में शर्म महसूस होती थी कि वह एक दूध वाले की बेटी है लेकिन आज उसे खुद पर और अपने माता पिता पर गर्व है। इतना ही नहीं सोनल साइकिल पर कॉलेज जाती थी और खाली तेल के डिब्बे से टेबल बनाकर पढ़ाई में करती थीं। 

सच में हम भी सोनल के इस जज्बे को सलाम करते हैं।

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