बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु ने टोक्यो ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीत कर देश का नाम रोशन किया है। उन्होंने चीनी खिलाड़ी बिंग जियाओ को सीधे सेटों में हराकर यह इतिहास रचा है और इसी के साथ वह भारत की पहली ऐसी महिला खिलाड़ी बन गई हैं जिन्होंने दो ओलंपिक मेडल भारत की झोली में डाले हैं। इससे पहले साल 2016 में सिंधु ने रियो ओलंपिक में सिल्वर मेडल अपने नाम किया था। सिंधु का यह लगातार दूसरा ओलंपिक मेडल है। बता दें कि ओवरऑल सुशील कुमार के बाद वे भारत की दूसरी एथलीट हैं। सुशील ने 2008 बीजिंग ओलिंपिक में ब्रॉन्ज और 2012 लंदन ओलिंपिक में सिल्वर मेडल जीता था। यह ओवरऑल ओलिंपिक बैडमिंटन में भारत को तीसरा मेडल है।
पीवी सिंधु की इस शानदार जीत के बाद ट्विटर पर बधाई का सिलसिला लगातार जारी है। भले ही सिंधु का गोल्ड मेडल जीतने का सपना टूट गया लेकिन लगातार दो ओलंपिक में मेडल जीतना भी कोई छोटी बात नहीं। सिंधु का यहां तक का सफर कड़ी मेहनत से भरा है और इस सफर में उन्हें अपनी फैमिली का पूरा सहयोग मिला। चलिए पीवी सिंधु की अब तक की जर्नी आपको बताते हैं...
पीवी सिंधु का पूरा नाम पुसर्ला वेंकट सिंधु है। हैदराबाद में पीवी रमना और पी विजया के घर जन्मी पीवी सिंधू के माता-पिता, दोनों ही राष्ट्रीय स्तर पर वॉलीबॉल खिलाड़ी रह चुके हैं। उनके पिता को वॉलीबॉल खेल में योगदान के लिए साल 2000 में अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया था। माता-पिता भी खेलों में थे तो बेटी की रुचि भी इसी में ही रही।
महज 8 साल की थी पीवी सिंधु जब उन्होंने बैडमिंटन रैकेट थामा था तब से लेकर अब तक उनका जुनून बैडमिंटन में बढ़ता गया। बैडमिंटन को अपने करियर का हिस्सा बनाने के पीछे का श्रेय वह पुलेला गोपीचंद को जाता है। 2001 में भारत की स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद को ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप के खिताब से सम्मानित किया गया था। सिंधु उनसे इतना प्रभावित हुई थी कि उन्होंने बैडमिंटन को ही अपने जीवन का लक्षय मान लिया।
पीवी ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए जितनी मेहनत खुद की है उतना ही संघर्ष और योगदान माता-पिता का भी रहा है। पीवी सिंधु को ट्रेनिंग के लिए उसके पिता रोज 3 बजे उठाते थे और 60 किलोमीटर दूर लेकर जाते थे। 12 साल तक पीवी सिंधू के पिता उन्हें गोपीचंद की एकैडमी लेकर जाते रहे। सिंधू को बैडमिंटन सीखा चुके उनके कोच सुरेंद्र महाजन ने बताया कि उनके पिता पीवी रमना सुबह 3-4 बजे उठकर 50 किमी. दूर ट्रेनिंग कैंप में सिंधू को छोड़ने के लिए आते थे। उस समय उनके पास कार भी नहीं होती थी। स्कूटर पर ही वह इतनी दूरी तय करके उसे छोड़ते थे।
पीवी सिंधु की खेल के लिए उनका जुनून आप इस बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने बैडमिंटन टूर्नामेंट के लिए वहबड़ी बहन पी दिव्या की शादी तक अटैंड नहीं कर पाईं थी। उपलब्धियों की बात करें तो बताए कि साल 2009 में कोलंबो में आयोजित सब जूनियर एशियाई बैडमिंटन चैंपियनशिप में सिंधु ब्रॉन्ज मेडल विजेता रहीं। वर्ष 2010 में ईरान फज्र इंटरनेशनल बैडमिंटन चैलेंज के एकल वर्ग में उन्होंने सिल्वर मेडल जीता। 2010 के थॉमस और उबर कप के दौरान वे भारत की राष्ट्रीय टीम की सदस्य रही। 7 जुलाई 2012 को सिंधु ने एशिया यूथ अंडर-19 चैम्पियनशिप के फाइनल में जापानी खिलाड़ी नोजोमी ओकुहरा को हराया।
साल 2012 में महज 17 साल की उम्र में सिंधु दुनिया की टॉप-20 खिलाड़ियों में शामिल हो गई थीं। साल 2013 के वर्ल्ड चैम्पियनशिप में पीवी सिंधु ने ब्रॉन्ज जीता जिसके साथ ही वह इस चैम्पियनशिप में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी थीं। वहीं साल 2016 में पीवी सिंधु ने रियो ओलंपिक में देश को सिल्वर मेडल दिलाया। रियो ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने पर इंडियन क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर इतने खुश हुए कि उन्होंने पीवी सिंधु को बीएमडब्लयू कार तोहफे में दी।
बैडमिंटन के अलावा पीवी सिंधु को तैराकी करना पसंद है। बहुत कम लोग जानते होंगे कि पीवी सिंधु फ्री टाइम में तैराकी करना पसंद करती हैं। इसके साथ ही उन्हें योगा और मेडिटेशन करने का भी काफी शौंक हैं। टोक्यो ओलंपिक में ब्रान्ज मेडल जीतने पर पीवी सिंधु को देरो बधाई। इसी के साथ कहना चाहेंगे कि पीवी सिंधु को यहां तक पहुंचाने में उनके माता-पिता का कड़ा संघर्ष रहा है उन्होंने अपनी बेटी को एक अच्छा प्लेयर बनाने के लिए अपनी जी-तोड़ मेहनत की। वह पैरेंट्स के लिए भी एक तरह प्रेरणा स्त्रोत है कि वह अपने बच्चों खासकर बेटियों को आगे लेकर जाए। आपको स्पोर्ट ही देश की बेटियों को सशक्ति बनाएंगे और बेटियां भारत देश का नाम रोशन करती रहेंगी।