वक्त बदला, सदियां बदलीं पर आज भी हर बच्चे को गर्मी की छुट्टियों का इंतज़ार रहता है, जैसे कभी हमें हुआ करता था। ऐसा लगता है जैसे पंख मिल गए हों और समय के सारे बंधनों से छूटकर कहीं भी घूम सकते हैं। न सुबह उठना, ना स्कूल के लिए तैयार होना और न घर आकर फिर दोबारा से एक निश्चित समय पर खेलने जाना, निश्चित समय पर पढ़ाई करना, निश्चित समय पर सोना, ऐसा शायद कुछ भी नहीं होता इन दिनों में। इसलिए बच्चे बेसब्री से इंतज़ार करते हैं, इन गर्मी की लंबी छुट्टियों का, ताकि वे अपने नाना नानी के घर जा सकें या दादा दादी के पास जा सके। हर कोई चाहता है कि वे अपने पेरेंट्स के साथ, अपने भाई-बहनों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं, पर आज के दौर में क्या गर्मी की छुट्टियों का यह सारा सपना जो नन्हें बच्चे संजोए हुए रखते हैं, वो पूरा होता है।
जी नहीं, बिल्कुल नहीं। आपको पता है कि स्कूल्स कॉम्पिटिशन में आकर इतना काम दे देते हैं। यह सोचकर कि उस स्कूल ने इतना काम दिया है को हम भी इतना देंगे। इतनी ऐक्टिविटीज़ इतने प्रोजेक्ट दे दिए जाते हैं कि इन छुट्टियों में 20-25 दिन तो बच्चे तो बच्चे सारा परिवार प्रोजेक्ट्स पूरे करने में जुट जाता हैं और बच्चों की सारी छुट्टियां छू मंत्र हो जाती हैं। इतनी ज्यादा एक्टिविटी इतने ज़्यादा प्रोजेक्टस के बीच ही छुट्टियाँ खत्म हो जाती हैं। पहले भी स्कूल होलीडे होमवर्क देते थे। बस कुछ थोड़ा बहुत होम वर्क दे दिया जाता था, जिसे बच्चे 2 घंटे प्रतिदिन करके पूरा काम खत्म कर देते थे और फिर सबके साथ बैठकर आम चूसना, लीची खाना और लंबे लंबे देर तक बैठकर गप्पे लड़ाना, दोस्तों के साथ खेलना, ये सब कुछ होता था और फिर बुआ-मौसी के साथ चले जाते थे और पूरा एक महीना छुट्टियां बिताकर आते थे।
बहुत मज़ा आता था। आज कल तो जैसे बचपन खो ही गया है। सारा दिन बच्चे मोबाइल पर लगे रहते हैं और फिर मां-बाप उनको कुछ कह भी तो नहीं सकते। कहें भी तो क्या, क्योंकि उनको अपने प्रोजैक्ट, उसका सारा काम उसी नैट पर तो ढूंढना होता है और वही मोबाइल नेट जिससे हम उनको दूर भगाते हैं, उसी नेट से ही उन्होंने सारे काम करने होते हैं। उसी मोबाइल पर उन्होंने प्रोजेक्ट्स का काम ढूँढना होता है और फिर हम उनको उन सब चीज़ों से दूर रख ही नहीं पाते, जिनसे हम दूर रखना चाहते हैं। पता ही नहीं चलता और चुटकी बजाते ही उनकी छुट्टियां खत्म हो जाती है और बच्चे वापस अपनी दिनचर्या में लौट जाते हैं। सिर्फ बच्चे ही नहीं, बल्कि अध्यापक-अध्यापिकाएं भी इस तरह से काम करते हैं कि छुट्टियों के दौर में भी इनकी PDF, PPT चलता रहता है। इस सबके बीच हम बच्चों के हाथ में मोबाइल थमा देते हैं, बच्चे सारा दिन उन चीज़ों को हाथ में लेकर बैठे रहते हैं और हर इन्फर्मेशन से अपडेट रहने के चक्कर में स्कूल में न होकर भी स्कूल में ही रहते है।
क्योंकि ज्यादातर स्कूल यह अपेक्षा रखते हैं कि उनके विद्यार्थी छुट्टियों में भी अपडेटेड रहें और शिक्षक उनके साथ इंटरैक्ट करते रहें। बस फिर क्या सब व्यस्त, माता-पिता, बच्चे, शिक्षक और सब। क्या आपको नहीं लगता कि इस सारे खेल में बच्चे अपने बचपन खो रहे हैं। गर्मी की छुट्टियां, सर्दियों की छुट्टियां सभी एक्टिविटी और प्रोजेक्ट का हिस्सा बन कर रह गए हैं। जीवन को जीने का ढंग भी बदल गया है और इस विषय में सोचने की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है। कहीं यह न हो कि अपडेट रखने के चक्कर में हम अपने बच्चों का पूरा बचपन ही ख़राब कर दें।
याद है पहले हम गर्मी की छुट्टियों में इकट्ठे खाना खाते और तरबूज-खरबूजे आदि खाते। लेकिन आजकल इसकी जगह फास्ट फूड ने ले ली है। क्यों न दोबारा से उन दिनों को जीएं। बच्चे खूब मस्ती करें। सुबह योगा करें, पार्क में झूला झूलें और जीवन को खुल कर जीने का लुत्फ उठाएं। उनके कंधों पर हमारी आशाओं और क्षमताओं को साबित करने का बोझ न हो। बच्चे अपने केवल किसी स्कूल का ब्रांड बनकर न रह जाएं बल्कि अपनी गर्मी की छुट्टियों का बेसब्री से इंतज़ार करें .... हर बार।- सीमा पुंज पाहवा