श्रावण मास शिव भक्तों के लिए बहुत ही खास होता है। सावन में भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए भक्त व्रत करते हैं और शिवालयों में शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। कुछ लोग इास खास मौके पर शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन की इच्छा रखते हैं। अगर आप भी भोलेबाबा के मंदिरों में जाने की योजना बना रहे हैं तो नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर को भी अपनी लिस्ट में शामिल कर सकते हैं।
नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बागमती नदी के किनारे देवपाटन गांव में पशुपतिनाथ मंदिर स्थित है। 'पशुपति'का अर्थ है - पशु मतलब 'जीवन'और 'पति'मतलब स्वामी या मालिक, यानी 'जीवन का मालिक' या 'जीवन का देवता'। पशुपतिनाथ दरअसल चार चेहरों वाला लिंग हैं। पूर्व दिशा की ओर वाले मुख को तत्पुरुष और पश्चिम की ओर वाले मुख को सद्ज्योत कहते हैं। उत्तर दिशा की ओर देख रहा मुख वामवेद है, तो दक्षिण दिशा वाले मुख को अघोरा कहते हैं।
नेपाल के एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनने से पहले यह मंदिर राष्ट्रीय देवता, भगवान पशुपतिनाथ का मुख्य निवास माना जाता था। यह मंदिर यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में सूचीबद्ध है। यह मंदिर नेपाल में शिव का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। 15 वीं शताब्दी के राजा प्रताप मल्ल से शुरु हुई परंपरा है कि मंदिर में चार पुजारी (भट्ट) और एक मुख्य पुजारी (मूल-भट्ट) दक्षिण भारत के ब्राह्मणों में से रखे जाते हैं।पशुपतिनाथ में शिवरात्रि का पर्व विशेष महत्व के साथ मनाया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव एक बार वाराणसी के अन्य देवताओं को छोड़कर बागमती नदी के किनारे स्थित मृगस्थली चले गए। भगवान शिव वहां पर चिंकारे का रूप धारण कर निद्रा में चले गए। जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें वाराणसी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी। इस दौरान उनका सींग चार टुकडों में टूट गया। इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए।
कहा यह भी जाता है कि पाण्डवों को स्वर्गप्रयाण के समय भैंसे के स्वरूप में शिव के दर्शन हुए थे जो बाद में धरती में समा गए लेकिन भीम ने उनकी पूंछ पकड़ ली थी। ऐसे में उस स्थान पर स्थापित उनका स्वरूप केदारनाथ कहलाया, तथा जहाँ पर धरती से बाहर उनका मुख प्रकट हुआ, वह पशुपतिनाथ कहलाया। भगवान भोलेनाथ के धाम पशुपतिनाथ में गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है, लेकिन वह इसे बाहर से देख सकते हैं। मंदिर के गर्भगृह में पंचमुखी शिवलिंग है, कहते हैं कि ऐसा विग्रह दुनिया में कहीं और नहीं है।
कहा जाता है कि जो भी पशुपतिनाथ के दर्शन के लिए आता है, उसे किसी भी जन्म में पशु की योनि नहीं मिलती है। दर्शन के लिए आए तो ध्यान में रखें कि शिवलिंग से पहले नंदी जी के दर्शन न करें। कहा जाता है कि जो व्यक्ति भगवान शिव से पहले नंदी का दर्शन करता है और फिर शिव-दर्शन करता है, तो उसे अगले जन्म पशु योनि मिलती है। मंदिर परिसर में बासुकीनाथ मंदिर, उन्मत्त भैरव मंदिर, सूर्य नारायण मंदिर , कीर्ति मुख भैरव मंदिर, 184 शिवलिंग मूर्तियां और बूंदा नीलकंठ मंदिर आदि मौजूद हैं।