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मिलिए KBC-12 कर्मवीर में आने वाली डॉ उषा खरे से, सरकारी स्कूल को बनाया हाईटेक, बच्चियों की पढ़ाई पर दिया जोर

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 20 Dec, 2020 02:40 PM
मिलिए KBC-12 कर्मवीर में आने वाली डॉ उषा खरे से, सरकारी स्कूल को बनाया हाईटेक, बच्चियों की पढ़ाई पर दिया जोर

अमिताभ बच्चन क्विज शो 'कौन बनेगा करोड़पति' 'कर्मवीर स्पेशल एपिसोड' में हर हफ्ते लोगों की प्रेरक कहानियां सामने लाते हैं। हाल ही में उनके शो में मध्य प्रदेश, भोपाल की प्राचार्य डॉ. उषा खरे दिखीं। उनके साथ सोलापुर जिला परिषद के प्राइमरी शिक्षक रणजीत सिंह डिसले और सेलिब्रिटी गेस्ट फिल्म अभिनेता बोमन ईरानी भी थे। डॉ. उषा खरे और रणजीत सिंह ने 14 प्रश्नों के सही जवाब देकर 50 लाख रु जीते लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस हफ्ते कर्मवीर स्पैशल एडिसोड में आने वाली डॉ. उषा खरे कौन...

मिलिए कर्मवीर एपिसोड में नजर आने वाली डॉ. उषा खरे से

भोपाल के शासकीय गर्ल्स हाई सेकेंडरी स्कूल जहांगीराबाद की प्राचार्य डॉ. उषा खरे को शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे उत्कृष्ट कार्य के लिए 'केबीसी 12' कर्मवीर एपिसोड के लिए चुना गया। डॉ. उषा ने ना सिर्फ सरकारी स्कूल को हाईटैक बनाया बल्कि वह एक शिक्षक के रूप में भी खरी उतरी। डॉ. उषा बताती हैं कि उन्हें शिक्षक बनने की प्ररेणा उनके पिता से मिली और वह उनके के नक्शे कदमों पर चल रही हैं।

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शिक्षा क्षेत्र में किए सहारनीय काम

यही नहीं, उनके इस सराहनीय कार्य के लिए डॉ. खरे को 2017 में राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान मिल चुका है। इसके अलावा उन्हें राज्य स्तर पर शिक्षक पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। अब उनके नाम केबीसी-12 कर्मवीर की एक और बड़ी उपलब्धि दर्ज हो गई है। गौरतलब है कि कर्मवीर एपिसोड में उन खास व्यक्तियों को बुलाया जाता है, जिन्होंने किसी विशेष क्षेत्र में खास योगदान दिया हो।

सरकारी स्कूल को बनाया हाईटैक

उन्होंने जिस तरह से सरकारी स्कूल को हाइटेक बना दिया वह हर किसी के लिए मिसाल है। उन्होंने अपने स्कूल की कक्षा को स्मार्ट क्लास बनाने के लिए फ्री वाई-फाई की सुविधा करवाई। यही नहीं, उनके स्कूल के बच्चे टैबलेट के जरिए पढ़ाई करते हैं और स्कूल का पूरा कोर्स टैबलेट पर भी मौजूद है। इसके अलावा माइक्रोसॉफ्ट कंपनी की तरफ से उनके स्कूल के करीब 300 स्टूडेंट्स को फ्री सर्टिफिकेशन कोर्स करवाए गए। उसके बाद उन स्टूडेंट्स को नौकरी के प्रपोजल भी मिल चुके हैं।

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बच्चियों की पढ़ाई पर दिया जोर

बता दें कि डॉ खरे की पहली पोस्टिंग 1985 में ऐसे गांव में हुई, जहां लाइट तक नहीं थी लेकिन फिर भी वह बिना रूके तीन दशक तक वहां काम करती रही। वह इस स्कूल में 2011 से पदस्थ हैं, जिसे 2014 में इंग्लिश मीडियम का दर्जा दिया गया। तब इस स्कूल में 400 छात्राएं  थीं लेकिन इस समय स्कूल में करीब 1200 छात्राएं पढ़ रही हैं और सभी फर्राटेदार अंग्रेजी भी बोलती हैं। इस स्कूल का नाम नवाचारों के लिए भी जाना जाता है।

हर अचीवमेंट के साथ नई चुनौती

उन्होंने कहा कि मुझे लगाता है कि कर्मवीर के रूप में चुने जाने के बाद मेरी जिम्मेदारी बढ़ गई है क्योंकि हर अचीवमेंट अपने साथ नई चुनौती लाता है। 1985 में मेरी पहली पोस्टिंग ऐसे गांव में हुई, जहां लाइट तक नहीं थी। मैंने 3 दशक तक हर व्यवस्था में बेहतर बनाने के लिए खूब संघर्ष किया और हमेशा नवाचार व लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान दिया। आज भी बालिका शिक्षा के क्षेत्र में बहुत सी चुनौतियां हैं लेकिन संघर्ष व जागरूकता से हर समस्या का समाधान हो सकता है। बेटियां हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकती हैं और बढ़ भी रही हैं।

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परिवार का मिला भरपूर सपोर्ट

वह बताती हैं कि मेरे पिता एक शिक्षक है, जिन्हें मैं अपना रोल मॉडल मानती हूं। मुझे परिवार से पढ़ाई के लिए भरपूर सपोर्ट मिला लेकिन फिर मैंने देखा कि लड़कियों के लिए शिक्षा एक बड़ी चुनौती है और उसी वक्त मैंने शिक्षक बनने का निर्णय लिया। रास्ते में अड़चनें तो बहुत आई लेकिन मैंने हौंसला नहीं छोड़ा। बता दें कि उनकी 3 बेटियां है, जिसकी शादी हो चुकी है। वहीं उनका बेटा अक्षय काउंसिल कॉटेज (counsels’ cottage) का फांउडर है, जिसके जरिए वह बालिकाओं की समाजिक सुरक्षा और शिक्षा पर जोर दे रही हैं। इसमें कई कानून से जुड़े जानकार भी हैं, जो दिक्कतों पर सही परामर्श देते हैं।

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