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आईएएस श्रीधन्या सुरेश का कहानी: मजदूरी करते थे माता-पिता, चंदे के पैसों से दिया था इंटरव्यू

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 17 Nov, 2021 01:24 PM
आईएएस श्रीधन्या सुरेश का कहानी: मजदूरी करते थे माता-पिता, चंदे के पैसों से दिया था इंटरव्यू

कहते हैं ईरादे अगर सच्चे हो तो मंजिलें खुद कदम चूमती हैं... ऐसा ही एक कहानी है आईएएस श्रीधन्या सुरेश की, जिन्होंने चंदे के पैसों से इंटरव्यू दिया और फिर आईएएस बन ना सिर्फ माता पिता बल्कि देश का नाम भी रोशन किया। चलिए आपको बताते हैं सिविल सेवा परीक्षा पास करने वाली केरल की पहली आदिवासी महिला श्रीधन्या सुरेश की इंस्पायरिंग स्टोरी... 

मजदूरी करते हैं माता पिता

श्रीधन्या सुरेश केरल के वायनाड जिले के छोटे से गांव पोजुथाना की रहने वाली हैं। उनके पिता सुरेश और मां कमला दिहाड़ी मजदूर हैं, जो मनरेगा योजना के तहत काम करते थे। वहीं, उनके माता-पिता बच्चों को पालन-पोषण के लिए गांव के बाजार में धनुष तीर बेचने का काम भी करते थे। उनकी बड़ी बहन अंतिम कक्षा की सरकारी कर्मचारी है और उसका छोटा भाई पॉलिटेक्निक का छात्र है। बता दें कि वायनाड जिले में कुरिचिया समुदाय को दूसरा सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय और सबसे पिछड़ा हुआ जिला माना जाता है।

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आदिवासी समुदाय से आईएएस बनने वाली पहली महिला

वायनाड के पॉझुथाना की मूल निवासी श्रीधन्या ने 2018 में सिविल सेवा परीक्षा को क्रैक किया। ऐसा करने वाली  केरल के एक आदिवासी समुदाय की वह पहली महिला है। उन्होंने कोझीकोड के सेंट जोसेफ कॉलेज देवगिरी से अपनी डिग्री ली। साथ ही कालीकट विश्वविद्यालय परिसर से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की थी। उन्होंने अपने तीसरे प्रयास में सिविल सेवा परीक्षा को क्रैक किया।

इंटरव्यू में जाने के लिए दोस्तों ने दिए पैसे

श्रीधन्या ने बताया कि UPSE की परीक्षा तो उन्होंने क्रैक कर ली लेकिन इंटरव्यू के लिए दिल्ली जाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। वहीं, उनके माता-पिता के पास भी इतने पैसे नहीं थे कि उन्हें दिल्ली भेज सके। मगर, जब श्रीधन्या के दोस्तों को इस बात का पता चला तो सभी ने मिलकर 40 हजार रुपए एकत्र कर उन्हें दिल्ली भेजा। श्रीधन्या भी परिवार व दोस्तों की उम्मीदों पर खरी उतरी और इंटरव्यू पास किया।

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कोझीकोड में कर रहीं ड्यूटी

श्रीधन्या सुरेश कोझीकोड में सहायक कलेक्टर (प्रशिक्षण पर) के रूप में कार्यभार संभाल रही हैं। उन्होंने जिला कलेक्टर एस संबाशिव राव के अधीन अपनी नई भूमिका निभाई, जो संयोग से सिविल सेवा में प्रवेश करने के लिए उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा थी। कार्यभार संभालते हुए श्रीधन्या ने कहा, "कोझिकोड मेरा दूसरा घर है। इसमें कई कारक हैं जिन्होंने मुझे सिखाया और मुझे सोचने पर मजबूर किया। महामारी के दौरान कार्यभार ग्रहण करना एक बड़ी जिम्मेदारी है। मैं अपना शत-प्रतिशत दूंगी,"

बच्चों की शिक्षा में सुधार करना लक्ष्य

इससे पहले, श्रीधन्या ने 2016 में वायनाड में अनुसूचित जनजाति विकास विभाग में एक परियोजना सहायक के रूप में काम किया है। सुरेश ने कहा कि आदिवासी बच्चों की शिक्षा में सुधार करना उनकी प्राथमिकता है।

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