नारी डेस्कः नवरात्रि के सातवें दिन देवी दुर्गा के स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मान्यता है कि मां कालरात्रि की पूजा से बुरी शक्तियां, परिवार से दूर रहती हैं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। यह भी माना जाता है कि इनकी पूजा करने से सिद्धियां प्राप्त होती है। चलिए मां कालरात्रि की पूजा विधि, मंत्र, प्रिय भोग और कथा आपको सुनाते हैं।
मां कालरात्रि की पौराणिक कथा (Maa Kalratri Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, रक्तबीज नाम के राक्षस के अत्याचार से चारों तरफ हाहाकार मची थी। रक्तबीज को वरदान था कि उसके रक्त की एक बूंद भी जमीन पर गिरेगी तो उसी समय एक और शक्तिशाली दानव तैयार हो जाएगा। इस तरह रक्तबीज की सेना तैयार हो जाती थी। तब अत्याचारों से दुखी देवता महादेव के पास आए थे। शिव शंकर ने माता पार्वती से अनुरोध किया था कि हे देवी, उस राक्षस का संहार करके देवताओं को उनके राजभोग वापस दिलाओं।
मां दुर्गा रक्तबीज का वध करती तो रक्त गिरते ही सैकड़ों दानव उत्पन्न हो जाते थे। तब देवी पार्वती ने साधना और साधना के तेज से मां कालरात्रि उत्पन्न हुई। तब मां पार्वती ने कालरात्रि से उन राक्षसों को खा जाने का निवेदन किया। जब माता ने उसका वध किया तो मां कालरात्रि रक्तबीज का सारा रक्त पी गईं और रक्त की एक भी बूंद, भूमि पर गिरने नहीं पाई इसीलिए माता के इस रूप मे उनकी जीभ रक्त रंजित लाल है। इस तरह से मां कालिका रणभूमि में असुरों का गला काटते हुए गले में मुंड की माला पहनने लगी।
रक्तबीज युद्ध में मारा गया और मां दुर्गे का यह स्वरूप कालरात्रि कहलाता है। कालरात्रि दो शब्दों को मिला कर बना है, एक शब्द है काल जिसका अर्थ है "मृत्यु"और एक शब्द है रात्रि, माता को रात के अंधेरे के गहरे रंग का प्रतीक दर्शाया है। कालरात्रि का रूप यह दर्शाता है कि एक करूणामयी मां अपनी संतान की सुरक्षा के लिए आवश्यकता होने पर अत्यंत हिंसक और उग्र भी हो सकती है।
मां कालरात्रि का स्वरूप और वाहन ( Maa Kalratri Ki Sawari)
मां कालरात्रि का स्वरूप विकराल है और उनका रंग गहरा काला है। मां कालरात्रि के तीन नेत्र हैं और इनके बाल खुले हुए हैं। इनके गले में कड़कती बिजली की अद्भुत माला है। इनका हथियार खड्ग और कांटा है। मां कालरात्रि को शुभंकरी भी कहा जाता है। मां कालरात्रि की पूजा रात्रि यानी निशिता काल मुहूर्त में करना शुभ माना गया है। मां कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियां खुलने लगती हैं। मां कालरात्रि ने शुंभ-निशुम जैसे दो राक्षसों का नरसंहार किया था। मां कालरात्रि की सवारी गधा है। गधा को समस्त जीव-जंतुओं में सबसे मेहनती और निर्भय माना जाता है।
मां कालरात्रि पूजा विधि ( Maa Kalratri Puja Vidhi)
देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा सुबह और रात, दोनों समय की जाती है। इनकी आराधना करने से पहले देवी काली की प्रतिमा के आसपास गंगाजल का छिड़काव करें। इसके बाद घी का दीपक जलाएं। फिर रोली, अक्षत, गुड़हल का फूल मां को अर्पित करें। आप सुबह शाम आरती करने के साथ दुर्गा चालीसा या सप्तशती का पाठ भी कर सकते हैं। मां को लाल रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करनी चाहिए। मां कालरात्रि की पूजा में रुद्राक्ष की माला से मंत्रों का जाप भी कर सकते हैं।
मां कालरात्रि का प्रिय भोग और रंग (Maa Kalratri Bhog)
मां कालरात्रि को लाल रंग के पुष्प अति प्रिय हैं इसलिए पूजा में गुड़हल या गुलाब के फूल अर्पित करें। मां कालरात्रि को गुड़ का भोग लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है। आप मां को गुड़ की खीर या गुड़ से बनी चीजों का भोग भी लगा सकते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां कालरात्रि को रातरानी का फूल भी बहुत पसंद है। मां को मिठाई, पंच मेवा,शहद, पांच तरह के फल भी अर्पित कर सकते हैं।
मां कालरात्रि की पूजा से लाभ
मां कालरात्रि की उपासना करने से शत्रु का नाश होता है। मां शत्रु से अपने भक्त को सुरक्षा प्रदान करती हैं जो लोग प्रतिद्वंद्वी या दुश्मनों से परेशान रहते हैं उन्हें मां के इस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। मां का यह स्वरूप भयमुक्ति और साहस का प्रतीक है। मां कालरात्रि की पूजा से भक्तों सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है फिर वो वह मानसिक, भौतिक या आध्यात्मिक हो। मां कालरात्रि, ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं।
मां कालरात्रि मंत्र (Maa Kalratri Mantra)
ॐ कालरात्र्यै नम:। इस मंत्र का 108 बाप जाप करें।
मां कालरात्रि आरती (Maa Kalratri Arti)
कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें।
महाकाली माँ जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि मां तेरी जय॥