आंखें हमारे शरीर का वो महत्वपूर्ण अंग है, जिससे आप इस खूबसूरत दुनिया को देख पाते हैं। जिस व्यक्ति की आंखें ना हो उसकी जिंदगी में अंधेरा हो जाता है। दुनियाभर में ऑर्गन डोनेट करने के लिए तो कई लोग आगे आते हैं लेकिन आंखें कोई डोनेट नहीं करता। देशभर के 760 आई बैंक हैं, जिसमें से सिर्फ 2% ही सक्रिय है। आईज डोनेशन बैंक के अभाव के चलते 55 साल की भावना जगवानी ने भारत में पहला आईज डोनेशन बैंक खोला।
खुद भी आंखों की रोशनी खो चुकी थी भावना
जब 3 महीने की प्रेग्नेंट थी तब किसी दवा के रिएक्शन की वजह से उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी। जब डॉक्टरों ने बता कि वह देख नहीं पाएगी तो उन्हें लगा जैसे उनकी जिंदगी ही खत्म हो गई हो। 27 साल की उम्र में आंखों की रोशनी चले जाने का दुख उनसे बेहतर कोई नहीं जान सकता।
25 दिन बाद लौटी रोशनी
हालांकि 25 दिनों बाद अचानक उनकी आंखों की रोशनी वापिस आ गई लेकिन अंधेरे में बीते 25 दिनों में भावना ने एक नया उद्देश्य बना लिया और भारत में आईज बैंक खोलने का निर्णय लिया। उन्होंने बताया कि 'मेरे बेटे के जन्म के बाद जब मैंने आईज डोनर की तलाश शुरू की तो परिवार व दोस्तों के अलावा कोई आगे नहीं आया। मगर, इसके बाद धीरे-धीरे लोग हमारे साथ जुड़ने लगे। ऐसा इसलिए संभव हो पाया क्योंकि मैं जानती थी कि किसी के लिए आंखों की रोशनी कितनी महत्वपूर्ण है।
भारत में खोला पहली आईज बैंक
करीब साल बाद लाख कोशिशों के बाद उन्होंने जयपुर में पहला नेत्र बैंक खोला और 2002 में "नेत्र बैंक सोसायटी (EBSR)" की स्थापना की। साथ ही वह मोहन फाउंडेशन (एमएफजेसीएफ) की स्थापना भी कर चुकी हैं। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि जब डॉक्टरों ने कहा कि मैं कभी देख नहीं पाऊंगी तो मुझे गहरा सदमा लगा। यह मेरे लिए बहुत दर्दनाक अनुभव हुआ। मैं रोज फर्श पर बैठकर ध्यान करती रही लेकिन फिर मेरी जिंदगी को एक नया लक्ष्य मिला।
करवा चुकी हैं 14,000 नेत्र दान
बता दें कि ESBR टीम पिछले 18 सालों से 14,000 नेत्र दान करवा चुकी है। इसके अलावा उन्होंने ट्रांसप्लांट प्रोग्राम और कैडेवर ऑर्गन डोनेशन कैंप भी लगाएं। उनके इस अभियान के कारण कई लोगों की जिंदगी में उजाला भरा चुका है।