छठ के महापर्व की शुरुआत हो चुकी है। उत्तर भारत के इलाकों में इस त्योहार को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। खासकर झारखंड और बिहार में लोग इसे बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं। पुराणों में भी छठी मैया का वर्णन मिलता है। लेकिन यह सिर्फ बिहार में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पर्व के अंतिम दिन उगते हुए सूर्य की पूजा करके व्रत का पारण किया जाता है। लेकिन सूर्य देव की पूजा इस व्रत में की क्यों जाती है। आपको इसके बारे में बताएंगे...
इसलिए दिया जाता है सूर्य को अर्घ्य
भगवान सूर्य को प्रत्यक्ष का देवता माना जाता है। कई ज्योतिष भी सूर्य को अर्घ्य देने का सुझाव देते हैं। ऐसा माना जाता है कि रोज सूर्य को अर्घ्य देने से आरोग्य और आशीर्वाद मिलता है। छठ के त्योहार में इस मान्यता का महत्व और भी बढ़ जाता है। क्योंकि इस दौरान सूर्य को जल देने से भगवान सूर्य की कृपा परिवार पर हमेशा बनी रहती है। ऐसा भी माना जाता है कि सूर्य की आराधन करने से मान-सम्मान में वृद्धि होती है।
छठी मैया कौन है?
पुराणों के अनुसार, मां दुर्गा के छठे रुप को ही कात्यायनी देवी का रुप माना जाता है। छठ मैया को संतान देनी वाली माता के नाम से भी जाना जाता है। वहीं कई मान्यताओं के अनुसार, इन्हें सूर्य देव की बहन भी माना जाता है। इसलिए छठ पूजा में भी सूर्य को अर्घ्य देकर मां छठी को प्रसन्न किया जाता है। मां छठी की उपासना करने से संतान को लंबी उम्र का वरदान भी मिलता है। संतान की प्राप्ति के लिए मां छठ की पूजा करना बहुत ही लाभकारी माना जाता है।
महाभारत से भी जुड़ा है महत्व
हिंदू धर्म में भगवान सूर्य को प्रत्यक्ष का देवता माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि सूर्य की ऊर्जा के कारण ही धरती पर जीवन एक उचित रुप से मिलता है। लेकिन छठ के त्योहार में भगवान सूर्य की पूजा महाभारत के अनुसार, इसलिए भी की जाती है किवंदतियों के अनुसार, दानवीर कर्ण का जन्म भगवान सूर्य के वरदान से ही हुआ था। भगवान सूर्य के आशीर्वाद से ही उन्हें कवच, कुंडल और वीरता का आशीर्वाद मिला था। दानवीर कर्ण भगवान सूर्य के भी बहुत बड़े भक्त थे। इसलिए वह लंबे समय में बिना कुछ खाए-पिए कमर तक पानी के साथ नदी में खड़े रहकर सूर्य देव की उपासना करते थे। उसी समय से अर्घ्य दान के लिए इस परंपरा का पालन किया जाता है।
मां छठी की क्यों की जाती है पूजा
नहाय-खाय से शुरु होने वाले इस त्योहार की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। वहीं एक कथा के मुताबिक, महाभारत काल में जब पांडव अपना राज-पाट जुए में हार गए थे। उस समय द्रौपदी ने चार दिनों के लिए यह व्रत किया था। इस व्रत पर भगवान सूर्य की उपासना की और मनोकामना में अपना राज-पाट वापिस मांगा था।