भगवान विष्णु ने मानव कल्याण के लिए धरती में कई रूपों में अवतार लिया है। इसमें से एक भगवान परशुराम भी हैं। वो भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया में भगवान परशुराम की जंयती मनाई जाती है। इस बार ये 10 मई को है। मान्यता है कि भगवान परशुराम का जन्म प्रदोष काल के दौरान हुआ था और इसी वजह से इस दिन परशुराम जयंती के रूप में मनाया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान परशुराम ने अपनी ही माता का सिर काट दिया था। आइए आपको बताते हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथा...
बेहद ही आज्ञाकारी पुत्र थे भगवान परशुराम
भगवान परशुराम रेणुका और सप्तर्षि जमदग्नि के पुत्र थे। वह द्वापर युग के अंतिम समय तक जीवित रहे थे। उन्हें हिंदू धर्म के 7 अमर लोगों में से एक माना जाता है। भगवान परशुराम ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी, जिसके बाद उन्हें वरदान के रूप में एक फरसा मिला था। मान्यता है कि वो बहुत आज्ञाकारा होने के साथ उग्र स्वभाव के भी थे। भगवान परशुराम को एक बार उनके पिता ने आज्ञा दी कि वो अपनी मां का वध कर दें। आज्ञाकारी होने के नाते उन्होंने तुरंत मां के सिर को धड़ से अलग कर दिया।
कर दिया था मां का सिर धड़ से अलग
दरअसल, ऋषि जमदग्नि ने ऐसा इसलिए कहा था क्योंकि भगवान परशुराम की मां सरोवर में स्नान करने गई थी। संयोगवश वहां पर राजा चित्ररथ नौकाविहार कर रहे थे। उन्हें देख ऋषि पत्नी के हृदय में विकार उत्पन्न हो गया और वह उसी मनोदशा में आश्रम लौट आईं। आश्रम में ऋषि जमदग्नि ने जब पत्नी की यह विकारग्रस्त दशा देखी तो उन्हें अपनी दिव्यदृष्टि से सब ज्ञात हो गया। जिसकी वजह से ऋषि बेहद क्रोधित हुए।
उन्होंने अपने पुत्रों को आदेश देते हुए कहा कि अपनी मां का सिर काट दो। उनकी इस आज्ञा का पालन किसी भी पुत्र ने नहीं किया लेकिन जब पिता ने ये आदेश भगवान परशुराम को दिया तो उन्होंने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी मां का सिर काट दिया। भगवान परशुराम से प्रसन्न होकर ऋषि जमदग्नि ने उसे मनचाहा वर मांगने के लिए कहा। इस पर भगवान परशुराम ने अपने पिता से माता को पुनः जीवित करने का वरदान मांगा।