कहते हैं एक औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन होती है। असल में इस कहावत में कितनी सच्चाई है यह तो हम सभी जानते हैं। घर में सास-बहू, ननद-भाभी तो कभी जलन के खातिर दो सहेलियों के बीच होने वाली टकराव भी इस बात को साबित करती है कि एक औरत ही दूसरी औरत का कभी भला नहीं चाह सकती।
पुरुष प्रधान जैसे भारत देश में महिलाएं अपने सम्मान व हक की बात कैसे कर सकती हैं जब वो खुद ही एक-दूसरे का सम्मान नहीं करती। यह जानने के बाद भी कि वो जो कर रही हैं उससे सामने वाले को बुरा लग सकता है फिर भी वो कभी जलन तो कभी खुद के फ्रस्ट्रेशन में दूसरों को दुख पहुंचाती हैं। जब महिलाएं खुद ही दूसरी औरतों की मदद नहीं करना चाहती, उनकी बात नहीं सुनती तो भला इस समाज में बदलाव कैसे आएगा?
औरत ही औरत की सच्ची हमदर्द, साथी, सहेली है इसलिए औरतों को एकजुट होकर रहना चाहिए, ना कि आपस में लड़ना-झगड़ना चाहिए। अब यह महिलाओं की जिम्मेदारी की है कि वो 'वुमन सपोर्ट वुमन' या 'औरत ही औरत की दुश्मन है' के जुमले में से किसे आगे बढ़ाना चाहती हैं।
'मैंने भी यह सबकुछ झेला था', 'मैं क्या कर सकती हूं', 'औरत होती ही बेचारी है', 'हमे उससे क्या मतलब', जैसी सोच को बदलने का वक्त आ गया है। महिलाएं खुद को इस पुरुष प्रधान देश मे बेचारी न समझें और एक-दूसरे के साथ खड़ी रहें।इस बदलाव की शुरुआत हमें खुद से करनी होगी क्योंकि समाज की सोच भी तभी बदलेगी जब आप खुद में सुधार करेंगी। महिलाएं अपने हक की लड़ाई तभी लड़ पाएंगी जब वो किसी दूसरी महिला की दुश्मन ना बनें, वरना सिर्फ महिला सशक्तिकरण की बातें करने से समस्याएं कभी खत्म नहीं होगी।
तो चलिए इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाएं एकजुट होकर यह प्रण लें कि वो हम अपनी इस सोच को बदल कर एक-दूसरे को सपोर्ट करेंगी।
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