हिंदू धर्म में त्योहारों के साथ शुभ तिथियों का विशेष महत्व है। इनमें एकादशी की तिथि को बेहद शुभ माना जाता है। भगवान विष्णु को समर्पित इस तिथि में उनकी पूजा व व्रत रखने के विशेष महत्व हैं। धार्मिक मान्यताओं अनुसार, पूरी श्रद्धा से विष्णु जी का व्रत रखने से जीवन की समस्याएं दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। हिंदू पंचांग अनुसार, मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की तिथि पर पड़ने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। इस बार यह शुभ दिन 30 नवंबर 2021 दिन मंगलवार को पड़ रहा है। आइए जानते हैं उत्पन्ना एकादशी का शुभ मुहुर्त, महत्व व पूजन विधि...
उत्पन्ना एकादशी शुभ मुहूर्त-
मार्गशीर्ष एकादशी प्रारंभ- 30 नवंबर 2021 दिन, मंगलवार सुबह 04:13 मिनट से
मार्गशीर्ष एकादशी समाप्त- 01 दिसंबर 2021 दिन,बुधवार रात्रि 02:13 मिनट तक
पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय- सुबह 07:34 मिनट पर
द्वादशी को व्रत पारण का समय- 01 दिसंबर 2021 सुबह 07:34 मिनट से सुबह 09:01 मिनट तक
उत्पन्ना एकादशी का महत्व-
मान्यताओं अनुसार, इस दिन भगवान श्रीहरि ने उत्पन्न होकर राक्षस मुर का वध किया था। इसलिए इस दिन को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। वैसे तो हर एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित मानी जाती है। मगर फिर भी सभी एकादशियों का अलग-अलग महत्व माना जाता है। उत्पत्रा एकादशी का व्रत रखने से कठिन तप और तीर्थ स्थानों पर दान-स्नान करने के समान फल मिलता है। इस पावन व्रत को रखने से मन व हृदय दोनों शुद्ध होते हैं। जीवन की समस्याएं दूर होती है और संतान प्राप्ति होती है। इसके साथ ही भगवान श्रीहरि की असीम कृपा बरसती है।
एकादशी व्रत पूजा विधि-
. एकादशी का व्रत दशमी तिथि से आरंभ होकर द्वादशी पर पारण करने के बाद समाप्त होता है।
. धार्मिक मान्यताओं अनुसार, व्रती को दशमी तिथि पर सूर्यास्त से पहले ही भोजन खा लेना चाहिए। इसके साथ ही सात्विक भोजन ही खाना चाहिए।
. एकादशी के दिन सुहबह उठकर नहाकर साफ कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प लें।
. अब भगवान श्रीहरि की प्रतिमा के सामने देसी घी का दीया जलाएं।
. अब विष्णु जी को तिलक लगाकर धूप, फल, फूल, अगरबत्ती आदि चढ़ाएं।
. फिर एकादशी का महातम्य पढ़े या सुने।
. आरती करके भगवान जी को तुलसी मिश्रित प्रसाद का भोग लगाएं।
. पूरा दिन व्रत रखें और भगवान विष्णु जी का स्मरण करते रहिए।
. अगली सुबह दोबारा स्नाव करके भगवान जी की पूजा करें।
. सात्विक भोजन बनाकर ब्राह्माण या किसी गरीब को खाना खिलाएं।
. उन्हें अपने सामर्थ्य अनुसार, दान, दक्षिणा देकर विदा करके व्रत का पारण करें।