किडनी रोग के कारण : किडनी शरीर का प्रमुख अंग है, जो शरीर के खून को साफ करने का काम करती है। जो कुछ बी गम खाते हैं इस खाद्य पदार्थ की पाचन क्रिया के दौरान दो तत्व शरीर के लिए ठीक नहीं होते हैं उन विषैले तत्वों को यूरिन के माध्यम से बाहर निकालने का काम करती है। साथ ही शरीर में इलैक्ट्रोलाइट (सोडियम-पोटाशियम) का संतुलन बनाने का काम करती है। किडनी में 2 हार्मोंन होते हैं जो बल्ड प्रैशर नियंत्रित करते हैं जबकि एक हार्मोन बोन मैरो में जाकर रैड ब्लड सेल्स (आ.बी.सी) बनाता है, जिससे खून बनता है। इस हार्मोन की कमी की वजह से किडनी रोगियों में खून की कमी की शिकायत होती है। किडनी कैल्शियम बनाने का भी काम करती है, जिससे हड्डियां मजबूत होती हैं।
कभी एक किडनी नहीं होती खराब
किडनी खराब होने का बड़ा कारण आज के समय में हाई ब्लड प्रैशर और डायबिटीज है। ध्यान रहे कि दोनों किडनी एक साथ खराब होती है। तभी यूरिन और क्रेटनीन का स्तर बढ़ता है। किडनी अगर थोड़ी भी ठीक है तो बेहतर काम करेगी और किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी। क्रॉनिक किडनी डिजीज होने पर वजन के हिसाब से रोगी को 0.8 ग्राम प्रोटीन प्रति किलोग्राम देते हैं। मानक के अनुसीर स्वस्थ व्यक्ति को प्रति किलो 1 ग्राम प्रोटीन लेना चाहिए।
किडनी रोग होने के लक्षण
किडनी संबंधी परेशानी होने पर शरीर में सूजन, आंखों और पलकों के नीचे सूजन, शाम होते-होते यह सूजन पैरों तक आ जाती है। भूख न लगना, जी मचलाना, थकावट, रात के समय 2-3 या अदिक बार यूरिन के लिए उठना, खून की कमी भी इसके प्रमुख लक्षण हैं। हालांकि ध्यान रखें कि शरीर में सूजन किडनी रोग का 100 प्रतिशत संकेत नहीं है। एक किडनी है तो उसपर चोट नहीं लगे इसका ध्यान रखें। किसी तरह के संक्रमण या किडनी स्टोन को लेकर सतर्क रहें।
किडनी मरीज के लिए डाइट
किडनी के मरीज में यूरिन कम बनता है। ऐसे में पानी अधिक पीने से शरीर में सूजन आएगी। सूजन आने से ब्लड प्रैशर असंतुलित होगा और सांस फूलने लगेगी। जितना यूरिन आ रहा है उससे ज्यादा पानी नहीं पीना चाहिए। यूरिनरी ट्रैक्ट इंफैक्शन के रोगी को पानी थोड़ा अधिक पीना चाहिए। हर रोज आहार में सेब को जरूर शामिल करें। फाइबर युक्त सेब किडनी के लिए बहुत फायदेमंद है। इसके अलावा ताजे फल, हरी पत्तेदार सब्जियां और दही का सेवन भी आपको किडनी की समस्याओं से बचाएगा।
जानिए, किन्हें होती है डायलिसिस की जरूरत
डायलिसिस क्रॉनिक किडनी डिजीज के मरीजों की होती है जो लास्ट स्टेज में होते हैं। डायलिसिस यूनिट में मरीज के खून में मौजूद हानिकारक और विषैले तत्वों को साफ करने के बाग साफ खून शरीर में चला जाता है। औसतन हफ्ते में 2-3 बार डायलिसिस बार होती है। रोगी की स्थित के अनुसार यह कम या ज्यादा बहो सकती है। डायलिसिस में करीब 4 घंटे का समय लगता है।
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