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हवा में झूलते खंभों वाला ये 400 साल पुराना Hanging Temple बना दुनिया के लिए एक पहेली

  • Edited By Charanjeet Kaur,
  • Updated: 01 Feb, 2023 04:04 PM
हवा में झूलते खंभों वाला ये 400 साल पुराना Hanging Temple बना दुनिया के लिए एक पहेली

हमारे देश में रहस्‍यों से भरे मंदिरों की कमी नहीं है। ऐसा ही एक मंदिर है दक्षिण भारत में ज‍िसके रहस्‍य को सुलझाने में ब्रिटिशर्स भी हार गए। यह मंदिर पुरातन काल से आज तक लोगों के लिए उत्‍सुकता का व‍िषय है। बता दें क‍ि यह मंदिर भगवान शिव, भगवान व‍िष्‍णु और भगवान वीरभद्र को समर्पित है। आइए जानते हैं क्‍या है मंद‍िर का रहस्‍य?

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इसलिए कहते हैं हैंगिग टेंपल

आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में स्‍थापित लेपाक्षी मंदिर 70 खंभों पर खड़ा है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी क‍ि मंदिर का एक खंभा जमीन को छूता ही नहीं है। बल्कि हवा में झूलता रहता है। यही वजह है कि इस मंदिर को हैंगिंग टेंपल के नाम से भी जाना जाता है।

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ब्रिटिश इंजीनियर हैमिल्टन की थ्योरी

मंद‍िर को लेकर बताया जाता है क‍ि 70 खंभों वाला यह मंद‍िर उस एक झूलते हुए खंभे को छोड़कर बाकी के 69 खंभों पर होगा। इसलिए एक खंभे के हवा में झूलने से कोई फर्क नहीं पड़ता होगा। लेकिन कहा जाता है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ब्रिटिश इंजीनियर हैमिल्टन ने भी कुछ यही थ्योरी दी थी।

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मंदिर के रहस्य को सुलाइने की किए गए कई प्रयास

कहा जाता है कि वर्ष 1902 में उस ब्रिटिश इंजीनियर ने मंदिर के रहस्य को सुलझाने की तमाम कोशिशें कीं। इमारत का आधार किस खंभे पर है ये जांचने के लिए उस इंजीनियर ने हवा में झूलते खंभे पर हथौड़े से भी वार किए। उससे तकरीबन 25 फीट दूर स्थित खंभों पर दरारें आ गईं। इससे यह पता चला क‍ि मंद‍िर का सारा वजन इसी झूलते हुए खंभे पर है। इसके बाद वह इंजीनियर भी मंदिर के झूलते हुए खंभे की थ्‍योरी के सामने हार मानकर वापस चला गया।

1583 में हुआ था मंदिर का निर्माण

मंदिर के निर्माण को लेकर कई सारे मत हैं। इस धाम में मौजूद एक स्वयंभू शिवलिंग भी है जिसे शिव का रौद्र अवतार यानी वीर भद्र अवतार माना जाता है। जानकारी के अनुसार ये शिवलिंग 15वीं शताब्दी तक खुले आसमान के नीचे विराजमान था। लेकिन 1538 में दो भाइयों विरुपन्ना और वीरन्ना ने मंदिर का निर्माण किया था जो की विजयनगर राजा के यहां काम करते थे। वहीं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लेपाक्षी मंदिर परिसर में स्थिति विभद्र मंदिर का निर्माण किया था जो की विजयनगर राजा के यहां काम करते थे।  वहीं पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार लेपाक्षी मंदिर परिसर में स्थित विभद्र मंदिर का निर्माण ऋषि अगस्‍त्‍य ने करवाया था।

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मंदिर से जुड़ी एक और कहानी

लेपाक्षी मंदिर को लेकर एक और कहानी मिलती है। इसके मुताबिक एक बार वैष्णव यानी विष्णु के भक्त और शैव यानी शिव के भक्त के बीच सर्वश्रेष्ठ होने की बहस शुरू हो गई। जो कि सद‍ियों तक चलती रही। जिसे रोकने के लिए ही अगस्‍त्‍य मुनि ने इसी स्‍थान पर तप क‍िया और अपने तपोबल के प्रभाव से उस बहस को खत्‍म कर द‍िया। उन्‍होंने भक्‍तों को यह भी भान कराया कि विष्णु और शिव एक दूसरे के पूरक हैं। मंदिर के पास ही विष्णु का एक अद्भुत रूप है रघुनाथेश्वर का। जहां विष्णु, भगवान शंकर की पीठ पर आसन सजाए हुए हैं। यहां विष्णुजी को श‍िवजी के ऊपर प्रतिष्ठित किया है, रघुनाथ स्वामी के रूप में। इसलिए वह रघुनाथेश्‍वर कहलाए।

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झूलते हुए खंभे को लेकर है यह मान्‍यता

लेपाक्षी मंदिर के झूलते हुए खंभे को लेकर एक परंपरा चली आ रही है। कहा जाता है कि जो श्रद्धालु लटके हुए खंबे के नीचे से कपड़ा निकालते हैं। उनके जीवन में फिर क‍िसी भी बात की दु:ख-तकलीफ नहीं होती। परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है। बताया जाता है क‍ि पहले दूसरे खंभों की ही तरह यह खंभा भी जमीन से जुड़ा था।


 

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