जब कोई सैनिक की शपथ लेता है तो देश सेवा के साथ 'परमवीर चक्र' सम्मान पानी उसका लक्ष्य बन जाता है। बहादुरी के लिए दिए जाने वाला 'परमवीर चक्र' भारत का सर्वोच्च सैन्य अलंकरण है। अब तक 21 वीर योद्धाओं को यह सम्मानित किया जा चुका है। मगर, क्या आप जानते हैं 'परमवीर चक्र' को डिजाइन, रंग और रूप देने वाली और कोई नहीं बल्कि एक महिला था, वो भी विदेशी। जी हां, स्विटजरलैंड की रहने वाली ईव यवोन मैडे डी मारोस ने 'परमवीर चक्र' को डिजाइन किया।
आइए जानते हैं कि आखिर कौन थी ईव यवोन मैडे डी मारोस और भारत के साथ क्या था उनका कनैक्शन
स्विट्जरलैंड में जन्मीं थी सावित्री बाई
20 जुलाई 1913 को स्विट्जरलैंड में जन्मी ईव यवोन की मां रूसी और पिता हंगरी थे। चूंकि उनके पिता पेशे से लाइब्रेरियन थे इसलिए बचपन से ही उन्हें कई किताबें पढ़ने को मिलती रहीं। किताबों के जरिए ही उन्होंने भारतीय सभ्यता को जाना और उससे लगाव महसूस करने लगी।
कैप्टन विक्रम से शादी के बाद अपनाई भारतीय सभ्यता
तभी उनकी जिंदगी में कैप्टन विक्रम खानोलकर आए और उन्होंने उनसे शादी कर ली। हिंदू धर्म अपनाने के बाद उन्होंने अपना नाम भी बदलकर सावित्री बाई खानोलकर कर लिया। पूरी तरह से इंडियन कल्चर ढल चुकी सावित्री ने अपने पहरावा भी बदल लगा। उन्होंने हिंदी, मराठी और संस्कृत भाषा भी सीखी और हर किसी को नृत्य, संगीत के अवगत करवाना शुरू किया। वह अक्सर कहती थी कि वह आत्मा से भारतीय ही थी लेकिन गलती से उनका जन्म यूरोप में हुआ। जो लोग उनसे वाकिफ नहीं थे वह उन्हें भारतीय ही समझते थे।
विदेश में जन्मीं लेकिन आत्मा से भारतीय थी सावित्री
कुछ समय बाद प्रमोशन पाकर कैप्टन विक्रम मेजर बन गए और उनकी पोस्टिंग पटना में हो गई। बस यहीं से सावित्री देवी की जिंदगी पूरी तरह बदल गई। यहां उन्होंने पटना विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और संस्कृत नाटक, वेद, और उपनिषद की शिक्षा ली। स्वामी रामकृष्ण मिशन का हिस्सा बनकर वह सतसंग, संगीत और नृत्य में निपुण हो गई। तभी उनकी मुलाकात मशहूर उस्ताद पंडित उदय शंकर से हुई और वह उनकी शिष्या बन गईं। इसी दौरान उन्होंने 'सेंट्स ऑफ़ महाराष्ट्र' और 'संस्कृत डिक्शनरी ऑफ़ नेम्स' नामक दो किताबें भी लिखी जोकि काफी फेमस हुई।
ऐसे मिला परमवीर च्रक डिजाइन करने का मौका
इसी दौरान सरकार द्वारा 1947 में भारत-पाक युद्ध में साहस दिखाने वाले वीरों को सम्मानित करने के लिए नए पदक पर काम चल रहा थी, जिसकी जिम्मेदारी मेजर जनरल हीरा लाल अट्टल को सौंपी गई थी। उन्होंने इस काम के लिए सावित्री बाई को चुना क्योंकि वो उन्हें ज्ञान का भंडार मानते थे और साथ ही वो एक अच्छी पेंटर व आर्टिस्ट भी थीं। बहुत मेहनत के बाद उन्होंने अट्टल जी को डिजाइन्स भेजे।
पहली बार में ही पसंद आ गया था डिजाइन
3.5dcm व्यास वाले कांस्य धातु की गोलाकार कृति बनाई, जिसके चारों तरफ वज्र के 4 चिह्न, बीच में अशोक की लाट से लिए गए राष्ट्र चिह्न चक्र, दूसरी ओर कमल का चिह्न जिसमें हिंदी-अंग्रेजी में परमवीर चक्र लिखा गया था। अट्टल जी को उनका डिजाइन बहुत पसंद आया। डिजाइन पास होने के बाद उसे रंग-रूप दिया गया और 26 जनवरी 1950 को भारत के पहले गणतंत्र दिवस पर सैनानियों को इससे सम्मानित किया गया।
पहली बार सावित्री के बहनोई को ही किया गया सम्मानित
संयोग देखिए... पहले परमवीर चक्र से सावित्री बाई की बड़ी बेटी कुमुदिनी शर्मा के बहनोई मेजर सोमनाथ शर्मा को सम्मानित किया गया था।
कई भारतीय सम्मान किए डिजाइन
इसके बाद सावित्री बाई ने अशोक चक्र (एसी), महा वीर चक्र (एमवीसी), कीर्ति चक्र (केसी), वीर चक्र (वीआरसी) और शौर्य चक्र (एससी) सहित कई अन्य प्रमुख वीरता पदक भी डिजाइन किए। उन्होंने सामान्य सेवा पदक 1947 (जनरल सर्विस मेडल) भी डिजाइन किया था, जिसका उपयोग 1965 तक किया गया। 1952 में पति की मौत के बाद सावित्री बाई पूरी तरह से अध्यात्म हो गई। अंतत: 26 नवम्बर 1990 को उन्होंने भी दुनिया को अलविदा कह दिया।