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15 की उम्र में शादी तो 18 में विधवा, संघर्ष से भरी है भारत की पहली महिला इंजीनियर की कहानी

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 15 Sep, 2020 04:51 PM
15 की उम्र में शादी तो 18 में विधवा, संघर्ष से भरी है भारत की पहली महिला इंजीनियर की कहानी

आज शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र हो जहां महिलाओं का बोलबाला ना हो। बात अगर इंजीनियरिंग जैसी मुश्किल फील्ड की करें तो यहां भी कई महिलाएं झंडे गाड़ चुकी हैं। हालांकि इसकी शुरूआत 90s के दौरान में हो गई थी जब अपना इंजीनियरिंग का सपना पूरा करने के लिए अय्यालासोमयजुला ललिता यानि ए ललिता समाज से अलग होकर रहने लगी। ए ललिता भारत की पहली महिला इंजीनियर के साथ वो महिला भी थी जिसने महिलाओं के लिए शिक्षा के नए रास्ते खोले।

बचपन से थी इंजीनियरिंग में दिलचस्पी

मिडिल क्लास फैमिली से ताल्लुक रखने वाली ललिता तमिलनाडु की रहने वाली थी। 27 अगस्त, 1919 को चेन्नई, मद्रास में पैदा हुई ए ललिता को बचपन से ही पढ़ने-लिखने में दिलचस्पी थी। उनके पिता इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग प्रोफेसर थे, जिसकी वजह से उनकी रूचि विज्ञान और टेक्नोलॉजी में बढ़ी। यहां तक कि उनके 4 बड़े और 2 छोटे भाई-बहन भी इस क्षेत्र में थे।

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15 की उम्र में शादी तो 18 में हुई विधवा

महज 15 साल की उम्र में उनकी शादी करवा दी गई। शादी के बाद उन्होंने 10 वीं तक पढ़ाई की लेकिन फिर 3 साल बाद उनके पति की मृत्यु हो गई। जो उनकी गोद में 4 महीने की बच्ची को छोड़ गए। एक तो विधवा और दूसरा गोद में 4 महीने की बच्ची (श्यामला ), उस समय समाज में विधवा महिलाओं की बदतर थी। उसपर ललिता की सास भी अपने बेटे की मौत का गुस्सा उन्हीं पर उतारा करती थीं।मगर, सभी बाधाओं को पीछे छोड़ उन्होंने खुद को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाए रखा।

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समाज से लड़कर किया अपने सपनों का साकार

पति की मौत के बाद मानों उनकी जिंदगी की नई शुरूआत हुई। 19-20 वीं सदी तक इलेक्ट्रॉनिक्स 'मर्दों का काम' माना जाता है लेकिन ललिता ने आगे बढ़ने की ठान ली थी। फिर क्या उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स की पढ़ाने करने के लिए कॉलेज में दाखिला लिया। हालांकि इसके लिए उन्हें कॉलेज के प्रोफेसर और प्रिंसीपल के साथ काफी संघर्ष करना पड़ा लेकिन माता-पिता के सपोर्ट से उन्हें कॉलेज में दाखिला मिल गया।

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कॉलेज में पहली महिला इंजीनियरिंग स्टूडेंट

उन्होंने चेन्नई के 'क्वीन मैरी कॉलेज' से फर्स्ट डिवीजन से अपनी परीक्षा पूरी की। ए. ललिता अपने कोर्स में सिर्फ एक ही महिला थी हालांकि कॉलेज में 2 अन्य लड़कियां सिविल ब्रांच से थीं। उस समय लड़कियों की दिलचस्पी मेडिकल प्रोफेशन में थी। मगर, ललिता ऐसी पढ़ाई नहीं करना चाहती थी, जिसमें उन्हें रात के समय अपनी बेटी को छोड़कर जाना पड़ें इसलिए उन्होंने इंजीनियरिंग को अपना प्रोफेशन चुना। कॉलेज के दिनों में तो वह अपने बेटी को अंकल के पास छोड़ देती थी और हफ्ते में एक बार मिलने जाती थी। मगर, पढ़ाई के बाद उन्हें 9 से 5 वाली जॉब चाहिए थी क्योंकि उन्हें अपनी बेटी की देखभाल भी करनी थी।

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भारत की पहली महिला इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर

ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने शिमला के सेंट्रल स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन तो कुछ समय पिता के साथ काम किया। उन्होंने कोलकाता के एसोसिएटेड इलेक्ट्रिकल इंडस्ट्रीज में भी काम किया। साल 1964 में जब वह न्यूयॉर्क के ICWES (The International Conference of Women Engineers and Scientists) कार्यक्रम में गई तो वहां उन्हें पता चला कि वह भारत की पहली महिला इंजीनियर है तो उनका सिर गर्व से ऊंचा हो गया।

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60 साल की उम्र में ए ललिता दुनिया को अलविदा कह गई लेकिन वह अपने पीछे एक ऐसी कहानी छोड़ गई जो आज की पीढ़ि के लिए वाकई प्रेरणा है।

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