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Inspirational: पिता के संघर्ष में छिपी है राधा यादव की सफलता की कहानी

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 03 Mar, 2020 04:48 PM
Inspirational: पिता के संघर्ष में छिपी है राधा यादव की सफलता की कहानी

आज के दौर में महिलाओं की अपनी कोशिश के कारण भी बहुत बदलाव आए हैं। आज के समय में शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा जहां औरतों का योगदान न हो। आज हम आपको ऐसी ही महिला खिलाड़ी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने यह साबित कर दिया कि क्रिकेट सिर्फ पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी खेल सकती हैं।

हम बात कर रहे हैं, राधा यादव की, जिनका नाम आज हर घर में लिया जा रहा है। राधा यादव महिला क्रिकेट की उभरती हुई स्टार हैं जिन्होंने महिला वर्ल्ड टी-20 में श्रीलंका को सात विकेट से हराकर शानदार जीत हासिल की। राधा यादव को इस मैच में प्लेयर ऑफ द मैच चुना गया। राधा की जीत की तरह उनकी क्रिकेटर बनने की कहानी और सफर भी काफी शानदार व प्रेरणादायी है।

मुंबई के कोलिवरी क्षेत्र की बस्ती में 220 फीट की झुग्गी से टीम इंडिया तक की छलांग में राधा के संघर्ष की कहानी छिपी है। चलिए आपको बताते हैं आम लड़की से क्रिकेटर राधा बनने का उनका सफर...

पिता ने किया सपोर्ट

राधा ने 6 साल की उम्र से ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। पहले वह मोहल्ले के बच्चों के साथ क्रिकेट खेला करती थी। मगर, लड़की को क्रिकेट खेलता देख गांव के लोग राधा के पिता ओमप्रकाश को तंज कसते थे। लोगों ने कहा कि बेटी को इतनी छूट ठीक नहीं। लड़के कुछ बोल दें या मारपीट कर दें तो दिक्कत हो जाएगी। मगर, उनके पिता ने कभी लोगों की बातों की परवाह नहीं की और अपनी बेटी को सपोर्ट किया।

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मुश्किल से होता है घर का गुजारा

उनके पिता मुंबई में दूध बेचते थे। इसके बाद उन्होंने कमाई के लिए सब्जी और किराने का दुकान खोली। मगर, राधा नहीं चाहती कि उनके पिता ऐसा काम करें। राधा के 4 भाई-बहन है और वो सबसे छोटी है। छोटी सी दुकान से मुंबई जैसे महानगर में घर का खर्च निकाल पाना बेहद मुश्किल होता है। पढ़ाई-दवाई का खर्च निकालना भी मुश्किल हो जाता है। ऐसे में राधा के पास किट तो दूर बैट खरीदने के पैसे नहीं थे। मगर, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

लकड़ी को बैट करती थी प्रैक्टिस

क्रिकेट की चाह में उन्होंने लकड़ी को बैट बनाकर प्रैक्टिस शुरु की। वह घर से 3 कि.मी. दूर राजेंद्रनगर में मौजूद स्टेडियम में जाकर क्रिकेट खेला करती थी। उनके पिता उन्हें साइकिल पर छोड़ने जाते थे। मगर, घर आने के लिए राधा कभी टैम्पो तो पैसे ना होने पर पैदल चलकर आती थी।

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कोच प्रफुल्ल ने दी फ्री टेनिंग

उनके कोच प्रफुल पटेल ने पहली बार राधा को टेनिस बॉल क्रिकेट खेलते हुए देखा था। राधा ने कहा था 'जब मुझे पता चला था कि शिव सेवा मैदान में लड़कियों के लिए नेट्स हैं। मुझे महसूस हुआ कि लड़कियां भी क्रिकेट खेलती हैं। मैंने पापा से कहा कि वो मुझे वहां जाने दें। लेकिन उन्होंने कहा कि यह उनके मतलब से परे है। मगर, फिर प्रफुल्ल सर ने मेरे पिताजी को मुझे फ्री में ट्रनिंग देने के लिए मना लिया था।'

कुछ समय बाद उन्होंने पिता के पास मुंबई में रहते हुए क्रिकेट खेलने की कोचिंग ली। तब घरेलू क्रिकेट खेलने के लिए उन्हें 10-15 हजार रुपए महीना मिलते थे। इसके बाद वो 2018 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में चुनी गईं। फिर BCCI के साथ कांट्रेक्ट साइन करने के बाद उन्हें 10 लाख रुपए मिलना शुरू हुए। अब उन्हें करीब 30 लाख मिलते हैं।

बहन-भाईयों ने किया सेक्रफाइस

राधा के पिता ने कहा, 'सिर्फ मैं या मेरी पत्नी नहीं है बल्कि राधा के विकास में उसके तीनों बड़े भाई-बहनों ने भूमिका निभाई है। मेरी बड़ी बेटी, सोनी, राधा से भी बेहतर क्रिकेटर हुआ करती थी लेकिन राधा को बनाने में मदद करने के लिए उसने अपने करियर को छोड़ने का फैसला किया।'

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पहली कमाई से पिता के लिए खरीदी दुकान

अपनी पहली कमाई से राधा ने अपने पिता के लिए जनरल स्टोर के लिए एक दुकान खरीदी थी। उनके परिवार की जिंदगी भी बदल चुकी है। अब राधा चाहती हैं कि वो एक घर खरीदे ताकि उसमें वे पूरे परिवार के साथ आराम से रह सकें।

 

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