पूरे देश की नजरें इस समय भारतीय ग्रैंडमास्टर आर प्रज्ञानंद पर है, जो पूरी दुनिया के नंबर 1 चेस प्लेयर नॉर्वे के मैग्नस कार्लसन को फिडे world cup chess टूर्नामेंट में कड़ी टक्कर दे रहे हैं। 18 साल के Rameshbabu Praggnanandhaa सबसे कम उम्र के फाइनलिस्ट बन गए हैं। कल फाइनल के दूसरे दिन Praggnanandhaa ने चेस गेम में मैग्नस को कड़ी टक्कर दी और दोनों के बीच ड्रॉ हो गया। अब खिताबी जीत का फैसला आज ट्राई ब्रेकर मैच के जरिए होगा।
पहले दौर का मुकाबला 35 चालों बाद हुआ था ड्रॉ
बता दें पहले राउंड का मुकाबला जहां 35 चाल तक चला था, वहीं दूसरे राउंड में दोनों के बीच 30 चाल के बाद ही ड्रॉ पर सहमति बन गई। पूरी दुनिया मे चेस के नंबर 1 खिलाड़ा और नंबर 23 खिलाड़ी प्रज्ञानंद के बीच पहले दो दौर के मुकाबले ड्रॉ होने के बाद अब टाइ ब्रेकर के जरिए world championship का फैसला होगा। वह अगर फाइनल जीत लेते हैं तो इस टूर्नामेंट को अपने नाम करने वाले दूसरे भारतीय बन जाएंगे। दिग्गज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद ने दो बार ऐसा किया था। आनंद साल 2000 और 2002 में चैंपियन बने थे।
महज 12 साल की उम्र में बन गए थे ग्रैंडमास्टर
12 साल की उम्र में ही ग्रैंडमास्टर बन गए थे। उनका जन्म 10 अगस्त 2005 को चेन्नई में हुआ था। वह तीन साल उम्र में ही शतरंज से जुड़ गए थे। प्रगनाननंदा के पिता रमेशबाबू बैंक में करते हैं। उन्होंने पोलियो से ग्रसित होने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी और बच्चों का अच्छे से पालन-पोषण किया। प्रगनाननंदा की बड़ी बहन वैशाली को भी यह खेल पसंद था और उन्हें देखकर ही प्रज्ञानानंद ने शतरंज खेलना शुरू किया। वैशाली चाहती थीं कि प्रगनाननंदा टीवी में कार्टून कम देखें। इसी वजह से उन्होंने अपने छोटे भाई को शतरंत का चालें सिखा दी। उस समय उनकी बड़ी बहन को भी यह एहसास नहीं था कि छोटा भाई आगे चलकर शतरंज में कमाल कर देगा।
मां ने हमेशा किया सपोर्ट
प्रगनाननंदा की सफलता का श्रेय उनकी मां को भी जाता है। बचपन से ही शतरंज से जुड़े हर टूर्नामेंट में खेलने के लिए उन्हें लाने और ले जाने की जिम्मेदारी उनकी मां पर थी। वह वैशाली और प्रगनाननंदा दोनों को शतरंज में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती थी और हमेशा उनकी सपोर्ट में रहती थी। अब भी world chess championship में उनकी मां उनके साथ खड़ी है।
12 साल की उम्र में रचा था इतिहास
ग्रैंडमास्टर के लिए साल 2018 खास रहा। वो महज 12 साल की उम्र में ही ग्रैंडमास्टर बन गए थे। वो भारत के सबसे छोटी उम्र के ग्रैंडमास्टर बन गए थे। वह भारत के सबसे युवा ग्रैंडमास्टर बने थे। इस मामले में उन्होंने विश्वनाथन आनंद को पीछे छोड़ा था। आनंद 18 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर बने थे। प्रगनाननंदा दुनिया के दूसरे सबसे युवा ग्रैंडमास्टर बने थे। उनसे आगे सिर्फ यूक्रेन के सिर्जी कर्जाकिन हैं। वह साल 1990 में सिर्फ 12 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर बन गए थे। प्रगनाननंदा शतरंज के अलावा क्रिकेट का भी शौक रखते हैं। मौका मिलने पर वो क्रिकेट मैच खेलने भी जाते हैं। हालांकि, शतरंज में करियर बनाने के चलते उन्होंने क्रिकेट के मैदान पर कोई उपलब्धि नहीं हासिल की है, लेकिन उन्हें क्रिकेट खेलने और मैच देखने का शौक है।