मासिक धर्म यानि की पीरियड्स। इसे लेकर भारत के छोटे छोटे गांव व कोनों में कई तरह की धारणाएं बनी हुई हैं, जिन्हें काफी जागरुकता के बाद तोड़ा जा रहा हैं। इन धारणाओं को तोड़ने के लिए महिलाएं ही नहीं पुरुष भी आगे रहे है, लेकिन जब एक महिला दूसरे महिला को इस समस्या के बारे में समझाती है तो वह जल्दी समझ जाती हैं।
आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताने जा रहे है जो न केवल को मासिक धर्म के बारे में जागरुक करती है बल्कि नन्ही बच्चियों को इस कारण जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है उनका समाधान भी कर रही हैं। 33 साल की डिप्टी कमिश्नर सैयद सेहरिश असगर, जो कि इस समय जम्मू कश्मीर में पोस्ट हैं। यह वहां पर मासिक धर्म के दौरान स्कूल न जा पा रही लड़कियों को स्कूल जाने के लिए जागरुक कर रही हैं। इसके साथ ही स्कूलों में नैपकिन मशीन भी लगा रही हैं।
मासिक धर्म यानि की स्कूल की छुट्टी
बुखार या अन्य बीमारी होने पर बच्चे स्कूल से एक या दो दिन की छुट्टी लेते हैं लेकिन मासिक धर्म यानि की पीरियड्स आने पर हर लड़की पांच से छह दिन तक की स्कूल से छुट्टी लेती हैं। यह माहौल जम्मू कश्मीर के वडगाम जिले के 1200 स्कूलों में देखा जा सकता हैं। वहां की 13 साल की एक छात्रा ने बताया कि रजवान के गर्ल्स मिडिल स्कूल में लड़कियां मासिक धर्म के दौरान एक हफ्ते की खेल व पढ़ाई से छुट्टी लेती हैं।
नहीं मिलता है फंड
2013 के बैच से आईएएस क्लीकर करने वाली डीसी सैयद ने बताया कि सरकार की ओर से इस काम के लिए किसी भी तरह का अलग बजट नहीं आता है। वह ग्रामीण विकास विभाग और एयरपोर्ट ऑथोरिटी ऑफ इंडिया से कार्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी अंशदान से स्कूल व कॉलेज में नैपकिन की व्यवस्था करवा रही हैं। अब तक जिले केे 106 स्कूलो व 5 डिग्री कॉलेज व एख आईटीआई में ये नैपकीन मशीनें लग चुकी हैं।
धीरे धीरे बदल रहा है माहौल
पिछले साल तक स्कूल व कॉलेज में यह समस्या काफी देखने को मिली थी, लेकिन अब इसमें काफी बदलाव आ रहा है। स्कूल व कॉलेज में नैपकिन मशीन लगने के बाद अब 20 प्रतिशत लड़कियां नही आ रही हैं। वहां की महिलाओं व लड़कियों के मन में पीरियड्स को लेकर जो डर है वह उसे खत्म कर उसके बारे में जागरुक कर रही है। जिससे वह आपनी रोजमर्रा की जिदंगी को आसानी से व्यतीत कर सकें।
लड़कियों के लिए बनी प्रेेरणा
डीसी सैयद 2011 में कश्मीर प्रशासनिक सेवा परीक्षा की टॉपर रही हैं। इन्होंने रियासत में लड़कियों की कम साक्षरता दर व प्रशासनिक सेवा से दूरी को एक चुनौती की तरह लेकर उसमें जीत हासिल की। जिसके बाद वह वहां की लड़कियों के लिए एक प्रेरणा बन चुकी हैं। इस समय वह वहां की लड़कियों में आत्मविश्वास भर कर अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रेरित कर रही हैं। इन्होंने प्रजेंटेशन कांवेंट गांधीनगर से स्कूली शिक्षा हासिल कर एस्काम (बत्रा) अस्पताल से एमबीबीएस की। डाक्टर बनने के बाद भी उन्होंने केएएस और आईपीएस क्वालीफाई किया, लेकिन सपना तो आईएएस बनने का था, जो 2013 में पूरा हुआ।
लाइफस्टाइल से जुड़ी लेटेस्ट खबरों के लिए डाउनलोड करें NARI APP