पैसा कमाने की चाह में आजकल के युवा हाई स्टडी करने के बाद किसी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करने लगते हैं। वहीं कुछ लोग विदेशों में सेटल हो जाते हैं, ताकि ज्यादा पैसे कम सके। खेती जैसे काम तो युवाओं की लिस्ट में भी नहीं होती। हालांकि कुछ युवा ऐसे भी हैं, जो देश की माटी की कीमत अच्छी तरह जानते हैं। उन्हीं में से एक है देहरादून के चमोली जिले की रहने वाली दिव्या रावत, जो खेतीबाड़ी के काम से आज लाखों की कमाई कर रही हैं।
कुछ अलग करने की चाह में छोड़ी नौकरी
दिव्या के पिता आर्मी अफसर थे। जब दिव्या 12वीं कक्षा में थी तो उनके पिता का देहांत हो गया, जिसके बाद उनका सफर आसान नहीं रहा। 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने नोएडा एमिटी यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ सोशल वर्क (बीएसडब्ल्यू और एमएसडब्ल्यू) की डिग्री ली। इसके बाद वह एक कंपनी में नौकरी करने लगा, जहां उन्हें एक महीने में 25 हजार सैलरी मिलती थी लेकिन मन ना लगने के कारण उन्होंने ये नौकरी छोड़ दी। इस तरह संतुष्टि ना मिलने के कारण उन्होंने एक के बाद एक 8 नौकरियां बदल डाली। इसके बाद कुछ अलग करने की चाह में वह 2011-12 में घर वापिस लौट आईं।
घर पर ही उगाने शुरू की मशरूम
2013 में उन्होंने देहरादून के मोथरोवाला में मशरूम की खेती करनी शुरू की। पहले उन्होंने घर पर ही मशरूम उगाना शुरू किया लेकिन खेती अच्छी होने लगी तो उन्होंने इसे बढ़ाने का सोचा। फिर क्या उन्होंने 100 बैग में मशरूम उगाए और अपना काम शुरू किया। इसके बाद उन्होंने खुद की कंपनी खोली और धीरे-धीरे उनका काम बढ़ने लगा। वह इलाके से बाहर निकलकर दूर-दूर के इलाकों में मशरूम बेचने लगी। नतीजन, जिस सफर के लिए दिव्या नौकरी छोड़ गांव लौट आई थी वो उन्हें पूरा होता दिखा।
पलायन रोकने के लिए शुरू किया रोजगार
दिव्या कहती हैं कि 5-10 हजार रुपए के लिए उत्तराखंड पहाड़ी लोग दिल्ली में नौकरी कर रहे हैं। मुझे लगा पलायन रोकने के लिए इन लोगों को रोजगार देना होगा इसलिए मैंने खेती को चुना। मशरूम का फायदा यह है कि इसे किसी भी मौसम में उगाया जा सकता है और इसकी कीमत भी मार्केट में अच्छी मिलती है। 2015 में मैंने मशरूम की खेती की ट्रेनिंग लेकिन 3 लाख रुपए के इन्वेस्टमेंट से कंपनी खोली और काम शुरू किया। इसके कारण बहुत से लोगों को रोजगार मिला, जिसमें ज्यादातर महिलाएं और युवा हैं। वह सिर्फ लोगों को रोजगार ही नहीं देती बल्कि उन्हें ट्रेनिंग देकर सक्षम भी बनाती हैं।
'मशरूम गर्ल' के नाम से मशहूर दिव्या
आज राज्य के लोग दिव्या को 'मशरूम गर्ल' के नाम से जानते हैं। उनकी उगाई मशरूम दून की मंडी से लेकर दिल्ली तक जाती है। बता दें कि वह अब तक उत्तराखंड के 10 जिलों में मशरूम की 55 से ज्यादा यूनिट शुरू कर चुकी हैं। इसके अलावा दिव्या ने ट्रेनिंग टू ट्रेडिंग कॉन्सेप्ट से वह हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश समेत कई जगहों तक पहुंची। यही नहीं, आज उनकी कंपनी के मशरूम विदेशों में भी बिकते हैं। उन्होंने 3 लाख में यह काम शुरू किया था लेकिन बटन, ऑएस्टर और मिल्की मशरूम से आज उनकी कंपनी का सलाना टर्नओवन 2.5 करोड़ तक हो जाता है।
नारी पुरुस्कार से सम्मानित
उनके काम को देखते हुए राज्य सरकार ने दिव्या को मशरूम का ब्रांड एम्बेसडर भी बना दिया है। यही नहीं, 2017 में उन्हें वुमन्स डे पर पूर्व दिवंगत राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से नारी शक्ति पुरुस्कार भी मिल चुका है। अब वह ना सिर्फ मशरूम का उत्पादन करती हैं बल्कि लोगों की इसकी खेती का प्रशिक्षण भी दे रही हैं। यही नहीं, अब वो हिमालय में पाए जाने वाली कार्डिसेप मिलिटरीज बीज (कीड़ाजडी की एक प्रजाति) का भी उत्पादन भी कर रही हैं, जिसकी कीमत 2 से 3 लाख प्रति कि.लो. है।
सड़क पर खुद खड़ी होकर बेचती हैं मशरुम
दिव्या के लिए शुरुआत में लोगों का माइंड सेट बदलना सबसे बड़ी चुनौती रहा लेकिन अब लोग खुद काम करने के लिए आते हैं। ब्रांड एम्बेसडर होने के बाद भी वह खुद सड़क किनारें मशरूम बेचने के लिए जाती हैं, ताकि गांव के लोगों की झिझक दूर हो सके। उनका कहना है कि पहाड़ की महिलाएं धैर्यवान होती हैं लेकिन मशरूम उन्हें धनवान भी बनाएगा। दिव्या के मशरूम सिर्फ मार्केट ही नहीं बल्कि ऑनलाइन भी बिकते हैं। आप अमेजॉन से दिव्या के मशरूम का अचार, हेल्थ मसाला, पापड़ आदि खरीद सकते हैं।
वाकई, दिव्या के बिजनेस ना सिर्फ पलायन कर रहे लोगों को एक नई रोशनी दिखाई है बल्कि यह आज के युवाओं के लिए प्रेरणा भी है। उनकी कहानी से सीख मिलती है कि अगर कुछ करने की लगन हो तो कोई भी रास्ता मुश्किल नहीं होता।