क्या आप जानते हैं कि हमारे आस-पास कुछ चीजें ऐसी हैं जो हमें खतरनाक बीमारियों और मौत की तरफ ले जा रही है। हम बात कर रहे हैं सीसा (Lead) की जिसे धीमा जहर माना जाता है। चिंता की बात यह है कि दुनिया की लगभग दो तिहाई बच्चों की संख्या लेड धातु के जहर के साथ जीने के लिए मजबूर है। इससे बच्चों के मस्तिष्क का विकास प्रभावित होता है और उनके सोचने-समझने की क्षमता भी।
भारत में करोड़ों बच्चे प्रभावित
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि दुनिया भर में लगभग 80 करोड़ बच्चे यानि औसतन हर तीन में से एक बच्चों के रक्त में सीसा धातु का स्तर 5 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर या उससे भी ज्यादा है। इनमें से अधिकांश गरीब और कम आय वाल देशों में हैं। इतनी बड़ी संख्या का आधा हिस्सा अकेले दक्षिण एशिया में हैं जबकि भारत में सीसा से 27.5 करोड़ बच्चे प्रभावित हैं।
लापरवाही के कारण बढ़ रही समस्या
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सीसे का जहरीला असर वर्ष 2017 में दस लाख लोगों की मौत का कारण बना था। इतनी बड़ी संख्या में बच्चे लेड जैसी घातु से प्रभावित हो रहे हैं, इसकी वजह लेड युक्त बैटरी के कचरे के डिस्पोजल करने में बरती जाने वाली लापरवाही है । यूनिसेफ इस तरह की लापरवाही के प्रति लोगों को आगाह करते हुए इसके डिस्पोजल को बेहतर बनाने की अपील कर चुका है। लेड पॉइज़निंग का असर बच्चों के मस्तिष्क, उनके दिमाग, दिन, फेफड़ों और गुर्दे पर होता है।
कम उम्र के बच्चों काे ज्यादा खतरा
डब्ल्यूएचओ के अनुसार "लेड एक शक्तिशाली न्यूरोटॉक्सिन है यानी दिमाग की नसों को पर असर करने वाला जहर है। कम एक्सपोज़र के मामलों में बच्चों में बुद्धिमत्ता की कमी यानी कम आईक्यू स्कोर, कम ध्यान देना और जीवन में आगे चल कर हिंसक व्यवहार और यहां तक कि आपराधिक व्यवहार का कारण भी बन सकता है " । अजन्मे बच्चों और 5 साल से कम उम्र के बच्चों को सीसा के कारण अधिक जोखिम हो सकता है। इतना ही नहीं यह धीमा जहर बच्चों की मौत का कारण भी बन सकता है।
वातावरण को प्रदूषित करता है सीसा
सन 1991 में अमेरिका में सीसा को पर्यावरण प्रदूषक कारकों में सबसे प्रमुख कारक माना गया था। एक सर्वे के माध्यम से अमेरिका ने ये साबित कर दिया कि सीसा विभिन्न तरीकों से मानव जीवन को हानि पहुंचा रहा है और वातावरण को प्रदूषित कर रहा है। हवा, पानी मिट्टी, धूल के कण व पेंट आदि इन सबमें सीसा मौजूद रहता है और सांस के साथ फेफड़ों में पहुंच कर बीमारियां फैलाता है।
सीसे से कई बीमारियों का खतरा
सीसा एक प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली धातु है। सीसा का उपयोग कार बैटरी जैसे कई उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है। जानकार कहते हैं कि खून में सीसे की अधिक मात्रा में जमा होने से कैंसर, दिमागी बीमारी, मिर्गी या फिर किडनी ख़राब हो सकती है। कुछ मामलों में इससे मौत भी हो सकती है। पूर्व के अध्ययनों के अनुमान के अनुसार सीसे से प्रेरित डीएएलवाई से 46 लाख लोग प्रभावित हुए और 165,000 लोगों की मौत हुई।
लोगों को जागरूक करने की जरूरत
लेड धातु से सबसे ज्यादा कामगार मजदूर, उनके बच्चे और उनकी बस्तियों में सबसे ज्यादा जोखिम है क्योकि ये ज्यादातर ऐसी जगहों पर निवास करते है। इसके लिए जरूरी है कि लेड युक्त बैटरियों का बेहद सुरक्षित तरीके से रिसाइकल किया जाये। इसके अलावा लेड युक्त बैटरियों को इधर उधर फेकने से इसके कचरे से होने वाले प्रदूषण के प्रति लोगों को जागरूक करने की जरूरत है, जिससे लोगों और बच्चों को इसके खतरे से सुरक्षित रखा जा सके।
इस तरह रखें बच्चों का ख्याल
बच्चों को कैल्शियम और लौह तत्वों युक्त खाना खिलाना चाहिए जैसे मांस, अण्डा, मटर, दूध, मक्खन आदि। खाने की चीजों को कभी सीसा के बर्तनों या बाहर से मंगाये हुए बर्तनों में नहीं रखना चाहिए।कई देश अब पेंट में सीसे के इस्तेमाल को घटाने और उसका स्तर 90 पार्ट्स पर मिलियन (PPM) से नीचे रखने के लिए कानून लागू कर रहे हैं।