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Nirjala Ekadashi: हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी व्रत का विशेष महत्व, जानें पूजा विधि व शुभ मुहूर्त

  • Edited By neetu,
  • Updated: 20 Jun, 2021 06:54 PM
Nirjala Ekadashi: हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी व्रत का विशेष महत्व, जानें पूजा विधि व शुभ मुहूर्त

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। इसमें निर्जला एकादशी को सबसे अहम माना जाता है। इस साल यह शुभ दिन 21 जून सोमवार को पड़ रहा है। एकादशी के दिन जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि की पूजा व व्रत रखा जाता है। निर्जला एकादशी भीम एकादशी (Bheem Ekadashi) के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस दिन सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय व्रतधारी को बिना खाएं व पीएं रहने पड़ता है। मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को रखने से मनचाहा फल मिलता है। समाज में यश, वैभव, सुख व ग्रह दोषों से छुटकारा मिलता है। साथ ही अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। चलिए जानते हैं निर्जला एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि व महत्व...

निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त 

निर्जला एकादशी आरंभ-  20 जून 2021, रविवार शाम 04:21 बजे
एकादशी तिथि समाप्त-  21 जून 2021, सोमवार दोपहर 01:31 बजे तक 
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय- 10:22 ए एम
पारण (व्रत तोड़ने का) तिथि - 22 जून 2021, सुबह 05:24 बजे से 08:12 बजे तक

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यह व्रत सुबह के समय रखा जाता है। इसलिए यह 21 जून को माना जाएगा। इस व्रत को रखने पर अन्न व पानी का त्याग किया जाता है। मान्यता है कि व्रतधारी को पारण के बाद ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अगर कोई बीमार है तो वह व्रत के दौरान नींबू पानी और फल ग्रहण कर सकता है। 

निर्जला एकादशी का धार्मिक महत्व

हिंदू मान्यताओं क अनुसार, निर्जला एकादशी व्रत रखने से सभी तरह के पापों से छुटकारा मिलता है। जीवन की समस्याएं दूर होकर मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। घर-परिवार का तनाव, कलेश दूर होकर सुख- समृद्धि व खुशहाली में वृद्धि होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस पावन को व्रत रखने से मृत्यु के बाद मोक्ष मिलता है। इसके साथ ही इन दिन जल, अन्न-वस्त्र, जूते, छाते आदि का दान देने का विशेष महत्व है। 

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व्रत रखने की पूजा विधि 

. सुबह जल्दी उठकर नहाकर साफ व पीले कपड़े पहनें। 
. सूर्य देव को जल चढ़ाएं। 
. मंदिर में जाकर भगवान जी के आगे व्रत का संकल्प लें।
. अब भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की पूजा करते हुए पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल चढ़ाएं। 
. मन ही मन श्री हरि के मंत्र 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय' का जाप करें। 
. कलश में जल भरकर सफेद कपड़े से उसे ढक दें। 
. अब उसपर चीनी व दक्षिणा रखकर किसी ब्राह्मण को दान करें। 
. नारायण कवच का पाठ करके भगवान नारायण की आरती गाएं। 

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