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रुक्माबाईः देश की पहली प्रैक्टिसिंग डॉक्टर, जिन्होंने पढ़ाई के लिए छोड़ा था पति का घर

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 23 Nov, 2021 05:29 PM
रुक्माबाईः देश की पहली प्रैक्टिसिंग डॉक्टर, जिन्होंने पढ़ाई के लिए छोड़ा था पति का घर

आज से 100 साल पहले पढ़ाई तो दूर महिलाओं को बिना इजाजत घर से भी बाहर जाने नहीं दिया था। अब समय आनंदी बाई जोशी ने अपने पति की मदद से डॉक्टरी की पढ़ाई की। उनके बाद कई लड़कियों में पढ़ने की हिम्मत आई। उन्हीं में से एक थी भारत की पहली प्रैक्टिसिंग डॉक्टर रुक्माबाई की जिन्हें कानून तौर पर पति से तलाक लेने वाली भारतीय महिला की तरह भी जाना जाता है। रुक्माबाई के मुकद्दमे ने उस समय देश में नई क्रांति ला दी थी, जिसने महिलाओं की जिंदगी को एक नया मोड़ दिया।

कौन थी रुक्माबाई?

रुखमाबाई राउत (22 नवंबर 1864 - 25 सितंबर 1955) एक भारतीय चिकित्सक और नारीवादी थीं। वह औपनिवेशिक भारत में पहली अभ्यास करने वाली महिला डॉक्टरों में से एक थी। रुखमाबाई का जन्म जनार्दन पांडुरंग सेव और जयंतीबाई के एक मराठी परिवार में हुआ था। उनकी मां का नाम जयंती बाई जिन्होंने महज 15 साल की उम्र में उन्हें जन्म दिया।

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जब रुक्माबाई दो साल की थी तो उनके पिता का निधन हो गया और उनका मां विधवा हो गई। इसके बाद सखाराम अर्जुन से उनकी दूसरी शादी हुई, जिसपर बहुत बवाल हुआ लेकिन वह अपने फैसले पर अडिग रहीं उन्होंने दुनिया के खिलाफ जाकर सखाराम से दूसरी शादी की। सखाराम मुंबई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे। उन्होंने रुक्माबाई को सिर्फ पिता नाम ही नहीं बल्कि बेशुमार प्यार भी दिया और पढ़ाई के जरिए उन्हें पैरों पर खड़ा करने की कोशिश की।

पति ने घर बुलाने के लिए मुकदमा किया

हालांकि 11 साल की उम्र में ही रुक्माबाई की शादी सौतेले पिता के चचेरे भाई व उनसे 8 साल बड़े भीकाजी से हो गई थी। शादी के बाद भी वह अपने माता-पिता के साथ रहती थी क्योंकि शादी से पहले तय हुआ कि वह घरजमाई बनकर रहेंगे और रुक्मा अपनी पढ़ाई पूरी करेंगी। जब रुक्मा 12 वर्ष की हुई तो उनके पति ने गर्भवति होने की इच्छा जाहिर की लेकिन उनके पिता ने मना कर दिया क्योंकि वह रुक्मा को पढ़ाना चाहते थे। इससे भीकाजी नाराज हो गए। इसी बीच उनकी माता का निधन हो गया और वह सखाराम से पूछे बिना अपने परिवार के साथ जाकर रहने लगे।

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घर वापिस आने के लिए पति ने किया केस

उन्होंने रुक्मा पर भी घर आने का दबाव बनाया लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उनके सौतेले पिता ने भी उनका समर्थन किया। इसके बाद 1884 में भीकाजी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में मुकदमा किया और पत्नी पर वैवाहिक अधिकार देते हुए उन्हें घर भेजने की मांग की। हाईकोट द्वारा भी रुक्माबाई को ससुराल या जेल जाने का आदेश दिया गया।

देशभर में चर्चित हुआ था रुक्माबाई का केस

उस समय पूरे भारत में रुक्माबाई का केस बहुच चर्चित हुआ। लोग इस बात में दिलचस्पी ले रहे थे कि क्या रुक्माबाई अदालत का फैसला मानते हुए ससुराल जाएंगी। दरअसल, रुक्माबाई ने तर्क दिया कि उनका विवाह तब हुआ जब वह इसके लिए सहमति देने में असमर्थ थीं इसलिए उन्हें ऐसे विवाह में रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। उनके इस तर्क ने बाल विवाह व महिलाओं के अधिकारों पर लोगों का ध्यान खींचना शुरू किया। मगर, कोर्ट में रुक्माबाई ने कुछ ऐसे तर्क दिए कि अदालत को भी उनका फैसला मानना पड़ा।

अदालत ने रुक्मा के हक में दिया फैसला

आखिरकार... कोर्ट ने रुक्माबाई के हक में फैसला सुनाया और वह घर नहीं गई। इसके बाद 1889 में रुक्माबाई इंग्लैंड गईं और लंदन स्कूल ऑफ मेडिसिन फॉर वुमेन से डॉक्टर की प्रैक्टिस पूरी की। शिक्षा पूरी करने के बाद वह 1894 में भारत लौटीं और सूरत में बतौर चीफ मेडिकल अधिकारी कार्यभार संभाला।

कभी शादी नहीं की

भले ही रुक्माबाई अपने पति से अलग हो गई थी लेकिन उन्होंने कभी शादी नहीं की। वह करीब 35 साल तक डॉक्टरी पेशे में काम करती रही और जिंदगी के आखिरी समय तक समाज सुधारक के तौर पर काम करती रहीं। 25 सितंबर, 1955 में 91 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।

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