दुनियाभर में ईद-उल-अज़हा का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। मुसलमानों द्वारा पैगंबर इब्राहिम के बलिदान को याद करते हुए इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। इस्लाम के सबसे बड़े त्योहारों में से एक, यह अवसर मवेशियों और जानवरों की कुर्बानी और उनका मांस गरीबों में वितरित करके पैगम्बर इब्राहिम के आस्था की परीक्षा का स्मरण कराता है।
इंडोनेशिया, मलेशिया, भारत और बांग्लादेश समेत एशिया के अधिकांश देशों ने सोमवार को ईद-उल-अज़हा का त्योहार मनाया, जबकि सऊदी अरब, लीबिया, मिस्र और यमन सहित दुनिया के अन्य देशों में मुसलमानों ने रविवार को यह त्योहार मनाया। सोमवार को इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में नमाजियों ने सामूहिक रूप से नमाज अदा की।
ऐसे हुई बकरीद मनाने की शुरुआत
मुसलमानों के इस पवित्र त्योहार को खुशी और शांति का प्रतीक माना जाता है। इस दिन को मनाने का इतिहास 4,000 साल पहले का है। जब पैगंबर अब्राहम के सपने में अल्लाह प्रकट हुए थे और उन्हें उनकी सबसे ज्यादा पसंदीदा चीज का बलिदान करने के लिए कहा था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पैगंबर अल्लाह की बातें सुनकर बेटे की बलि देने वाले थे। उसी समय एक फरिश्ता प्रकट हुआ और उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। उन्हें बताया गया कि अल्लाह उनके प्रेम से संतुष्ट है। महान बलिदान के रुप में यह पर्व मनाया जाता है।
इस ईद को विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे
ईदुल अज़हा
ईद अल-अज़हा
ईद उल-अज़हा
ईद अल-अधा
ईद उल ज़ुहा
ईद की नमाज
ईद उल अधा के दिन मस्जिदों में बड़ी संख्या में मुसलमान इकट्ठा होते हैं। लाखों की संख्या में मुस्लिमों द्वारा सफेद कुर्ते में ईदगाह यानी बड़े मस्जिद में ईद की नमाज़ अदा करने का यह दृश्य बेहद ही सुखद होता है। नमाज़ अदा करने के बाद चौपाया जानवरों जैसे- ऊंट, बक़रा, खस्सी, भेड़ इत्यादि की कुर्बानी दी जाती है। प्रार्थनाओं और उपदेशों के समापन पर, मुसलमान एक दूसरे के साथ गले मिलते हैं और एक दूसरे को बधाई देते हैं। बहुत से मुसलमान अपने ईद त्योहारों पर अपने गैर-मुस्लिम दोस्तों, पड़ोसियों, सहकर्मियों और सहपाठियों को इस्लाम और मुस्लिम संस्कृति के बारे में बेहतर तरीके से परिचित कराने के लिए इस अवसर पर आमंत्रित करते हैं।