"जब “i” को “we” से बदल दिया जाता है तो ‘illness’ भी ‘wellness’ में बदल जाती है।", "हर सुनी-सुनाई बात पर यकीन मत करिए। एक कहानी के हमेशा तीन पहलू होते हैं। आपका, उनका और सच।"
सिस्टर शिवानी के ऐसे ढेरों पॉजिटिव थोट्स हैं जो कई जिंदगी में आशा की किरण ले आते हैं। सिस्टर शिवानी, जिन्हें लोग बीके शिवानी, ब्रह्मा कुमारी शिवानी के नाम से भी जानते हैं वह ब्रह्मकुमारी आध्यात्म की शिक्षिका हैं और लोग इनके बारे विचार सुनकर खुद को पॉजिटिव करते हैं।
शहनाज गिल को सिखाई पॉजिटिव बातें
हाल ही में सिस्टर शिवानी, बिग बॉस की फेमस कंटेस्टेंट शहनाज गिल के साथ लाइव जुड़ी और पॉजिटिव बातें सिखाती नजर आई। शहनाज के दोस्त दिवंगत टीवी स्टार सिद्धार्थ शुक्ला व उनकी मां रीता शुक्ला ब्रह्म कुमारी आध्यात्म से ही जुड़े थे। इस लाइव में ऐसी बहुत ही पॉजिटिव बातें उन्होंने शहनाज से साझा कि जो जीवन का एक सत्य है जिसे जानकर भी व्यक्ति अंजान बना रहता है। वहीं लोगों के मन में सिस्टर शिवानी के जीवन से जुड़ी बातें जानने की भी उत्सुकता बनी रहती हैं कि अध्यात्म से जुड़ने का विचार उनके मन में कैसे आया और वह कैसे बन गई ब्रह्मा कुमारी शिवानी दीदी ? चलिए आज के इस पैकेज में आपको ब्रह्माकुमारी शिवानी दीदी की जीवनी के बारे में बताते हैं।
शिवानी वर्मा से कैसे बनी ब्रह्माकुमारी?
ब्रह्मा कुमारी शिवानी दीदी का पूरा नाम शिवानी वर्मा है, लेकिन लोग उन्हें शिवानी दीदी के नाम से ही पुकारते हैं। वर्तमान में शिवानी दीदी आध्यामिक संस्था प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय से आध्यामिक शिक्षिका के रूप में जुड़ी हुई हैं।
टीवी में भी कर चुकी हैं काम
लोग उनके लोकप्रिय टीवी कार्यक्रम ‘अवेकनिंग विद ब्रह्माकुमारी’ (Awakening With Brahma Kumaris) के माध्यम से उन्हें जानते हैं। लोगों के बीच उनका यह कार्यक्रम बेहद लोकप्रिय है। इनकी संस्था लोगों को अध्यात्म जीवन को अपनाने के लिए मोटिवेट करती हैं साथ ही यह भी सिखाती हैं कि दुख और तनाव से मुक्त जीवन कैसे जिया जाए।
अध्यात्म में जरा भी नहीं थी रूचि
महाराष्ट्र के पुणे शहर में 31 मई साल 1972 में ब्रह्मा कुमारी शिवानी का जन्म हुआ। शिवानी दीदी शुरू से ही पढ़ाई में तेज थी और क्लास की टॉपर रहती थी। हालांकि स्कूल और कॉलेज के दिनों में शिवानी दीदी की अध्यात्म की तरफ जरा भी रूचि नहीं थी लेकिन इनका परिवार शुरू से ही प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय संस्थान से जुड़ा हुआ था पर शिवानी की अध्यात्म की तरह खास रुचु नहीं थी क्योंकि तब उनका मानना था कि उन्हें इसकी जरुरत नहीं है।
साल 1994 में उन्होंने सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट किया और महाराष्ट्र इंस्टीट्यूट ऑफ टेकनोलॉजी से कंप्यूटर इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री ली। फिर इसके बाद 2 साल तक, भारती विद्यापीठ कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग पुणे में लेक्चरर के रूप में भी काम किया।
ब्रह्मकुमारी बनने से पहले ही हो चुकी थी शादी
इस संस्थान में पूर्णतया समर्पित होने से पहले शिवानी दीदी की शादी हो चुकी थी। उनके पति का नाम विशाल वर्मा है और वह अपने पति के साथ ही उनकी बिजनेस संभालती थी लेकिन 1995 में वह ब्रह्मकुमारी से जुड़ चुके थे। पहले उन्होंने दिल्ली में ब्रह्माकुमारीज़ टेलीविज़न प्रेजेंटेशन पर बेक स्टेज काम किया, जहाँ वरिष्ठ शिक्षक की शिक्षाओं को रिकॉर्ड किया जाता था। लेकिन साल 2007 में, अन्य शिक्षकों की अनुपलब्धता में उन्हें दर्शकों के प्रश्नों का स्वयं उत्तर देने के लिए कहा गया।
अध्यात्म जीवन की ओर कैसे किया रुख?
शिवानी दीदी का मानना हैं कि अध्यात्म कोई सामान्य जीवन से अलग जीवन नहीं है, बहुत से लोग इसे अलग जीवन की तरह देखते है लेकिन ऐसा नहीं है। उनका कहना है कि, आप जीवन में जो कर रहे हैं, परिवार चला रहे हैं, करियर बना रहे हैं या बिजनेस कर रहे हैं। इन सबको करते हुए सही सोचना, सही महसूस करना, सही व्यवहार करना और सही संस्कार ही अध्यात्म जीवन है।
सामान्यतया लोगों के जीवन में जब कोई घटना घटती हैं तो विचलित होकर वह अध्यात्म की ओर चले जाते हैं लेकिन शिवानी दीदी के जीवन में ऐसा कुछ नहीं हुआ था।
माता-पिता की वजह से बनी ब्रह्मकुमारी
उनके माता-पिता शुरू से इस संस्थान से जुड़े थे और मैडिटेशन का अभ्यास करते थे। उनकी माताजी की हमेशा इच्छा रहती थी की शिवानी को भी ब्रह्माकुमारी सेंटर जाना चाहिए और मैडिटेशन सीखना चाहिए हालांकि उस समय वह इन सबसे दूर भागती थी क्योंकि उन्हें लगता था कि मेरी वर्तमान ज़िन्दगी परफेक्ट है और मैं क्यों किसी के कहने से अपने वर्तमान जीवन में बदलाव करूँ? मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है।
लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ शिवानी ने अपनी मां के स्वभाव में बदलाव देखने शुरू किए। जैसे सामान्य माताएं बच्चों के लिए छोटी-छोटी बातों के लिए परेशान होना, चिंतित और जल्दी भावुक हो जाती हैं वैसे कुछ उनकी माताजी में नहीं था।
धीरे-धीरे बढ़ने लगी रुचि
शिवानी को इस बात का अहसास होनेलगा कि वह भावनात्मक रुप से पहले से कई गुणा ज्यादा मजबूत हो गई हैं। अपनी समस्याओं में घबराहट नहीं बल्कि उन्हें संयम से सुलझाती हैं। मां के बदले व्यवहार के बाद उन्होंने एक्सपेरिमेंट के तौर पर मैडिटेशन करना शुरू किया जिसके बाद धीरे-धीरे उनकी अध्यात्म में रूचि बढ़ने लगी और साल 1995 में शिवानी दीदी पूर्ण रूप से ब्रह्माकुमारी संस्थान में समर्पित हो गई।
शिवानी के टीवी प्रोग्राम ‘अवेकनिंग विद ब्रह्माकुमारी’ (Awakening With Brahma Kumaris) के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन में बदलाव आया है। उनके अनुसार, इसकी जरुरत हर व्यक्ति को है लेकिन आधुनिकता की दौर में लोग इसे भूलते जा रहे है। जिसके कारण हम दिनों-दिन चिंता, भय और पीड़ा से घिरे रहते हैं।
उनके बताए कुछ विचार आपके साथ शेयर करते हैं...
. इतने खुश रहे कि जब दूसरे आपको देखें तो वो भी खुश हो जाएं।
. अगर किसी बच्चे को उपहार न दिया जाए तो वो कुछ देर रोयेगा मगर संस्कार ना दिए जाएं तो वो जीवन भर रोयेगा…