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दर्द से खुशियों तक कामयाबी की इबारत- अमिता पुनियानी

  • Updated: 12 Apr, 2014 07:18 AM
दर्द से खुशियों तक कामयाबी की इबारत- अमिता पुनियानी

अब औरत गुलामी की जंजीरों को तोड़ कर रोशनी यानी स्वतंत्रता की राह पर चल रही है। वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होकर अपने ऊपर हो रहे जुल्मों के विरुद्ध पूरे हौसले और जज्बे के साथ लड़ कर कामयाबी हासिल कर रही है। अन्याय और अनाचार के विरुद्ध आज की नारी पूरे दमखम से लड़ रही है। वह कुरीतियों के कटघरे को तोड़ कर मैराथन में दौड़ रही है। 

वूमन एंटरप्रिन्योरशिप की बातें हर जगह हो रही हैं, लेकिन इस हो-हल्ले के बीच क्या वाकई नारी सशक्त हुई है? आज भी नारी दहेज व यौन उत्पीडऩ जैसी घिनौने अपराधों का शिकार हो रही है। ये घटनाएं नारी सशक्तिकरण को लेकर कई सवाल खड़े कर रही हैं लेकिन इन्हीं के बीच कई ऐसी महिलाएं भी हैं, जिन्होंने मानसिक व शारीरिक प्रताडऩा और अपने परिवार के विरोध के बावजूद सिर्फ अपने हौसले और जज्बे से निडर होकर समस्याओं का सामना किया है। ये महिलाएं अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं जो हालात से बेबस होकर या तो आत्महत्या जैसे महापाप को गले लगा लेती हैं या घर बैठ कर हालात से समझौता कर लेती हैं या फिर मानसिक दबाव तले आकर पागलखाने तक पहुंच जाती हैं।

लुधियाना की उद्यमी अमिता पुनियानी भी इन जांबाज महिलाओं में से एक हैं जिसने दर्द से लेकर खुशियों तक का सफर तय कर समाज में अपनी अलग पहचान बनाई है। वह रेबस नामक शोरूम की डायरैक्टर हैं।

84 के दंगों ने छीना पिता का साया
1984 के आतंकवादी दंगों में उनके पिता का साया सिर से उठ गया। अमिता तब मात्र 11 साल की थीं। घर में कोई कमाने वाला न था और पांच बहनों में से सबसे बड़ी थीं। वह मां के आंसू पोंछतीं या फिर खुद को संभालती। रिश्तेदारों की मदद से मां की पैंशन लग गई और घर के हालात कुछ सुधरे। अमिता ने ट्यूशन देकर खुद की पढ़ाई की और अपने छोटे भाई-बहनों को भी संभाला।

रील से रियल लाइफ में देखे हैं दुख-दर्द..
अमिता ने  दाज-दहेज से संबंधित पुरानी फिल्मों में महिलाओं पर ससुराल पक्ष की ओर से मानसिक व शारीरिक प्रताडऩा तो देखी ही थी, लेकिन इसे असल जिंदगी में सहना कितना दर्द देता है यह भी जाना है। शादी के बाद ससुराल में भी कई जुल्म हुए। गरीब परिवार से संबंधित होने पर कोई भी पसंद न करता यहां तक कि पति भी चाह कर मेरे साथ न थे। वक्त बीतता गया, हालात से समझौता करना सीख लिया लेकिन उनकी जिंदगी में नया मोड़ तब आया जब उनकी बेटी जिंदगी और मौत से जूझ रही थी। उनके अंदर अपने लिए नहीं अपने दोनों बच्चों के लिए जीने की तमन्ना जागी। उन्हें सभी अधिकारों से वंचित कर घर से निकाल दिया गया। उन्होंने नई जिंदगी शुरू की और पीछे मुड़ कर कभी नहीं देखा।

नाम कमाया, पैसा कमाया लेकिन अपनों के लिए तरसती रहीं

उन्होंने छोटा-मोटा बिजनैस शुरू किया। अपनी पहचान बनाई। बेशक उन्हें पति का साथ शादी के कई सालों बाद मिला, लेकिन अब मेरे पति मुझे पूरा सहयोग दे रहे हैं। दोनों मिल कर अपने बिजनैस को बढ़ा रहे हैं। खुशियां बहुत देर बाद नसीब हुई हैं लेकिन अभी भी अगर किसी बात की कमी खलती है तो बड़ों के प्यार की जिन्होंने हमेशा से ही उन्हें अपने प्यार से दूर रखा।

जेवर नहीं दुल्हन है दहेज

न जाने कितनी ही महिलाएं दहेज के लिए प्रताडि़त की जाती हैं। आज जरूरत है महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहने की और हिम्मत  तथा हौसले से अपने विरुद्ध हो रहे अन्याय से लडऩे की। हर लड़की के ससुराल पक्ष को यह समझने की जरूरत है कि जेवर नहीं, दुल्हन दहेज है। आज के युवाओं को भी दहेज के विरोध में आगे आने की जरूरत है। जहां औरतों की इज्जत होती है, खुशहाली वहीं आ सकती है।
 
अपने रास्ते खुद बनाओ..
वह कहती हैं कि महिलाओं को अपने रास्ते खुद बनाने चाहिएं। कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो आसमां भी छोटा पड़ जाता है। वह कहती हैं कि कई मुश्किलों के बावजूद उन्होंने अपना रास्ता खुद चुना। हर तरफ से विपरीत हालातों का सामना किया लेकिन कोई भी हौसले को डिगा नहीं पाया। कांटों भरे इस जीवन में कहीं न कहीं एक रोशनी की किरण जरूर मिलती है, डटे रहने पर ही मंजिल पाई जा सकती है।


आज भी पुरानी बातें याद आती हैं तो दहल उठता है दिल..
वह अपनी बीती यादों को एक बुरे सपने की तरह लेते हुए भूल जाना चाहती हैं, लेकिन आज भी जब खाली बैठती हैं तो यादें दिल को झकझोर देती हैं, लेकिन पति का सहयोग उनके दर्द को भुला देता है।

अभी भी बहुत आगे बढऩा है..
अमिता कहती हैं कि उनके दो बच्चेे हैं, उन्हें अच्छे संस्कारों के जरिए  अच्छा नागरिक बनाना है। बिजनैस में भी आगे बढऩा है। दुनिया को यह दिखाना है कि औरत अबला नहीं है बल्कि सबला है और वह भी आगे बढऩे का जज्बा रखती है। बच्चों को ऐसे संस्कार दिए जाएं जिनमें महिलाओं का सम्मान हो। ये बातें परिवार के माहौल और अभिभावकों पर निर्भर करती हैं।

                                                                                                                                      -मीनू कपूर, लुधियाना छाया-राकेश

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