भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक केदरानाथ भी है। हर सालों लाखों की तादाद में भक्त यहां पर नतमस्तक होते हैं। कहते हैं जो यहां पर सच्चे मन से भगवान की अराधना करता है, उससे सारी मानोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। पौराणिक कथाओं की मानें तो केदारनाथ धाम में खुद पांडवों को भोलेनाथ ने दर्शन दिए थे। केदारनाथ धाम व्यक्ति को वास्तविक जीवन से परिच कराता है। कहते हैं कि यहां पर दर्शन करने के बाद लोगों के जीवन में किसी मोह- माया की इच्छा नहीं रह जाती है। इस साल बाबा केदरानाथ के कपाट 10 मई से खुलेंगे। भक्त भोलेनाथ के दर्शन के लिए तैयार हैं। कहते हैं यहां पर दर्शन करने आए भक्तों की यात्रा पशुपतिनाथ के दर्शन के बिना अधूरी मानी जाती है। आइए आपको बताते हैं इसके बारे में विस्तार से...
केदारनाथ धाम की मान्यता
मान्यता है कि पांडवों ने अपने भाई कर्ण की मृत्यु के पापों से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की पूजा की थी। भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें पापों से मुक्ति प्रदान की। इस घटना के बाद पांडवों ने केदारनाथ में भोलेनाथ का मंदिर बनवाया था। ऐसा माना जाता है कि केदरानाथ, कैलाश पर्वत का हिस्सा है जो भगवान शिव का निवास स्थान है। केदरानाथ में भगवान शिव के दर्शन करने का अर्थ है कैलाश पर्वत और भोलेनाथ के निवास स्थान के दर्शन करना। केदरानाथ में भगवान शिव को जटाधारी शिव के रूप में पूजा जाता है।
भोलेनाथ ने पशुपतिनाथ में की थी तपस्या
मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां समाधि लगाकर तपस्या की थी, जिसके चलते उनके सिर पर जटाएं उग गई थीं। पशुपतिनाथ मंदिर में आपको शिवलिंग में आपको शिवलिंग पर भोलेनाथ के सिर की आकृति दिखेगी। मान्यता है कि केदारनाथ में शिव जी के शरीर के तो वहीं पशुपतिनाथ में उनके मुख के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि महाभारत के दौरान पांडवों को गुरु द्रोणाचार्य और उनके पुत्र अश्वत्थामा की हत्या का लगा था। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए ही पांडव भोले की शरण में केदारनाथ पहुंचे थे।
इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि भोलेनाथ ने दक्ष प्रजापति के यज्ञ में अपने ससुर दक्ष का वध कर दिया था। इसके बाद, वे पापों से मुक्ति पाने के लिए भटकते रहे और आखिर पशुपतिनाथ में प्रकट हुए। इसलिए बिना पशुपतिनाथ के दर्शन के बिना केदारनाथ की यात्रा अधूरी मानी जाती है।