आपका सारा ध्यान बच्चे पर केंद्रित रहता है, होमवर्क से लेकर उसके दोस्तों तक की बात की जरूरत से ज्यादा परवाह करते हैं, उनके जीवन पर अपना पूरा कंट्रोल जमाकर अपने ही तरीके से उनकी जिंदगी परफेक्ट बनाना चाहते हैं तो आप हैलीकॉप्टर पेरेंट्स हैं।
कैसे बना helicopter parenting शब्द?
हैलीकॉप्टर पैरेंट्स, इस शब्द का पहली बार इस्तेमाल साल 1969 में छपी एक किताब पेरेंट्स एंड टीनएजर्स में किया गया था जिसमें किशोरों का कहना था उनके माता पिता हैलीकॉप्टर की तरह उनके चारों तरफ मंडराते रहते हैं। वहीं से यह नाम प्रचलित हुआ और 2011 में इस शब्ज को डिक्शनरी में जगह भी मिल गई। स्टडी के अनुसार, पिता से ज्यादा मांएं हैलीकॉप्टर पेरेंट होती हैं।
चिंता करना सही लेकिन जरूरत से ज्यादा चिंता अच्छी नहीं
बच्चों को ओवर प्रोटेक्शन, प्यार और उनकी परवाह करते करते पेरेंट्स को खुद ही इस बात का ज्ञान नहीं हो पाता कि वह इस तरह की पेरेंटिंग को फॉलो करने लग गए हैं। कई बार जिन पैरेंट्स को बचपन में अपने माता-पिता का सहयोग व साथ नहीं मिलता वह अपने बच्चों को हेलीकॉप्टर केयर देते हैं। हालांकि इसके पीछे अन्य कई कारण हो सकते हैं जैसेः-
. बच्चे के असफल होने की चिंता। पेरेंट्स को लगता कि अगर वह साथ होंगे तो बच्चा ज्यादा अच्छे से पढ़ाई कर सकेंगा। आगे जीवन में निराश नहीं होना पड़ेगा।
व्यवहार को नियंत्रित रखने के चक्कर में उसे अकेले वक्त नहीं बिताने देते। नतीजा बच्चों का खुद पर भरोसा कम होने लगता है, तनाव बढ़ता है, सामना करने की क्षमता कम होती है, वो दुखी होते हैं और उनके संघर्ष और बढ़ जाते हैं।
. कभी-कभार ऐसे विचार दूसरे पेरेंट्स को देखकर भी माता पिता के मन में आ जाता है कि वह अच्छे मां बाप नहीं या उनकी परवरिश में कमी हैं तो वह देखा-देखी ओवर प्रोटेक्शन दिखाने लगते हैं।
इस तरह की पेरेंटिंग के नुक्सान
बच्चे के साथ दोस्ताना व्यवहार और परवाह करना गलत नहीं है लेकिन ज्याद फिक्रमंद होकर बच्चे के ऊपर साए की तरह हर वक्त मंडराने के कई नुकसान है जो बच्चे को भविष्य में उठाने पड़ते हैं।
बच्चे में आत्मविश्वास की कमी
ऐसे बच्चों का आत्मविश्वास बन नहीं पाता क्योंकि उन्हें ऐसा अहसास होता है कि अगर अगर वो अपने दम पर कुछ करेंगे तो पेरेंट्स उनपर भरोसा नहीं करेंगे।
हालातों से मुकाबला करने की क्षमता कम
हर समय बच्चे की हिफाजत के लिए खड़े रहना। परेशानी आने से पहले ही उसका समाधान निकाल देना, ओवर प्रोटेक्शन देने से बच्चे आगे चलकर हालातों से मुकाबला नहीं कर पाते। शोध के अनुसार, पेरेंट्स के बच्चे जीवन की परेशानियों और समस्याओं से मुकाबला करने में कम सक्षम होते हैं।
. ऐसे बच्चों को हमेशा दिशा-निर्देश की जरूरत पढ़ती है। जब वो अकेले पड़ जाते हैं तो वो कोई भी निर्णय लेने से घबराते हैं।
बच्चे में कौशल की कमी
हर छोटा मोटा काम अगर माता पिता करेंगे तो बच्चे में कौशल की कमी आएगी। जैसे खुद का लंच पैक करना, अपने जूतों के फीते बांधना, अपनी चोटी बनाना, अपने कमरे का कचरा साफ करना, खुद के कपड़े धोना या अपने लिए कुछ खाना बनाना। अगर यह काम धीरे-धीरे बच्चा खुद करना सीख लें तो आगे चलकर उसे अपने कार्य खुद करने की आदत होगी।
हैलीकॉप्टर पेरेंटिग के अन्तर्गत ही आते हैं ये सारी बातें
. दूध व अन्य खाने की चीजें लेकर उनके पीछे पीछे भागते हैं।
.बच्चे के झगड़े में खुद लड़ना। बहुत से पेरेंट्स खासतौर पर माएं ऐसा व्यवहार करती हैं। बच्चा स्कूल से घर आकर बताए कि किसी दोस्त ने उसे मारा है तो वह खुद बच्चे के घर फोन करके उसकी मम्मी-पापा या स्कूल में शिकायत करने पहुंच जाते हैं या गुस्सा दिखाते हैं।
.बच्चे को डांट ना पड़ जाए इसलिए उसके प्रोजेक्ट व होमवर्क खुद कर देते हैं।
. बच्चे को हर बार नंबर वन पर रखने की सीख देना उसे असफल होते नहीं देखना। उसके स्कूल बैग से लेकर स्कूल ड्रेस संभालने तक के सारे काम खुद करना। यह सारी बातें हैलीकॉप्टर पेरेंटिग के अन्तर्गत ही आती है।
क्या करें पेरेंट्स
बच्चों को ओवर प्रोटेक्शन ना दें। उन्हें अपने फैसले औऱ अपनी समस्याओं का हल पहले खुद ढूंढने दें। शुरू से ही बच्चे को सेल्फ डिपैंटेड की सीख दें ताकि आगे चलकर वह अपने फैसले खुद लें सकें और आत्म विश्वास से भरपूर रहें।
खुद काम करना सिखाएं
. बच्चे को अपने काम स्वयं करने की आदत डालें। जैसे खुद लंच बॉक्स पैक करना अपने कमरे की साफ-सफाई रखना।
. बच्चे के प्रोजेक्ट और होमवर्क उन्हें खुद ही करने दें।
. बच्चों को सामाजिक बुराइयों से बचाएं लेकिन उन्हें बोल्ड बनने से न रोकें।
. बच्चों को अच्छे-बुरे में अंतर समझाएं लेकिन कुछ फैसले बच्चों को भी लेने दें।
-वंदना डालिया