सबसे बड़े पर्यावरणीय खतरों में से एक वायु प्रदूषण के चलते हर साल लाखों लोग बेमौत मारे जा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हाल ही में दावा किया है कि वायु प्रदूषण के चलते हर साल 70 लाख लोगों की अकाल मृत्यु होती है। डब्ल्यूएचओ ने साल 2005 के बाद पहली बार अपने नये वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन के साथ ही प्रदूवायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े खतरों में एक है।
नये वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश जारी
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि उसके नये वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश का लक्ष्य लाखों लोगों को वायु प्रदूषण से बचाना है। एक बयान में कहा गया कि डब्ल्यूएचओ के पिछले 2005 के सूचकांक के बाद ऐसे सबूत बहुत अधिक आये हैं जो दर्शाते हैं कि कैसे वायुप्रदूषण स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करते हैं। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि वह सरकारों से अपील करती है कि दिशानिर्देशों का पालन करे
पहले की तुलना में वायु प्रदूषण ज्यादा खतरनाक
बता दें कि आखिरी बार 2005 में वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश जारी किए थे, जिसका दुनिया भर में पर्यावरण नीतियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था। हालांकि संगठन का कहना है कि पिछले 16 सालों में ऐसे सबूत सामने आए हैं जिनसे पता चलता है कि वायु प्रदूषण सेहत को प्रभावित करता है। पहले की तुलना में यह कहीं अधिक प्रभाव डाल रहा है। याद हो कि 2019 में अकेले भारत में प्रदूषण से 16 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। मरने वालों में बड़ी संख्या नवजात बच्चों की थी, इनमें से अधिकतर बच्चे 1 महीने की उम्र के थे.
ये है नए दिशानिर्दश
डब्ल्यूएचओ के नए दिशानिर्देश छह प्रदूषकों - पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 और पीएम 10, ओजोन (O3), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) के लिए वायु गुणवत्ता के स्तर की सलाह देते हैं। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि पीएम मुख्य रूप से परिवहन, ऊर्जा, घरों, उद्योग और कृषि सहित विभिन्न क्षेत्रों में ईंधन के दहन से उत्पन्न होता है।"