22 DECSUNDAY2024 6:38:17 PM
Nari

शुभ मुहूर्त में करें अहोई अष्टमी की पूजा, जानिए आज कितने बजे निकलेंगे चांद व तारे

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 24 Oct, 2024 11:00 AM
शुभ मुहूर्त में करें अहोई अष्टमी की पूजा, जानिए आज कितने बजे निकलेंगे चांद व तारे

नारी डेस्क: अहोई अष्टमी व्रत मुख्य रूप से संतान की लंबी आयु, सुख और समृद्धि के लिए रखा जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की भलाई के लिए व्रत रखती हैं और भगवान से उनकी दीर्घायु और समृद्धि की कामना करती हैं। अहोई अष्टमी का व्रत दीपावली के आठ दिन पहले आता है, और यह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। अगर आज आपने भी व्रत रखा है तों बता दें किस समय निकलेंगे तारे और इन्हें अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त क्या है।

PunjabKesari
कथा और पूजन का मुहूर्त

दिन में अहोई अष्टमी की कथा सुनने और पूजन करने के लिए पंचांग समय दोपहर 12:05 से 13:29 बजे के बीच का समय श्रेष्ठ रहेगा। वहीं संध्या काल में अहोई माता के पूजन के लिए शुभ मुहूर्त शाम को 5:39  से शाम के 7:15 तक रहेगा। तारों को देखने का शुभ समय 6:06 मिनट तय किया गया है। ऐसे में महिलाएं 6 बजकर 6 मिनट पर ही तारों को अर्घ्य देकर और उनकी पूजा करके अपने व्रत को पूर्ण कर सकती हैं।  कुछ महिलाएं चांद को अर्घ्य देने के बाद ही अपने व्रत का पारण करती है। अहोई अष्टमी के दिन चांद भी थोड़ा देर से ही आसमान में नजर आता है।  चंद्रोदय समट रात के 11:55 तक रहेगा। 


अहोई अष्टमी का महत्व

इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र, सुख और समृद्धि की कामना करते हुए अहोई माता की पूजा करती हैं। यह व्रत उन महिलाओं द्वारा भी रखा जाता है जो संतान की प्राप्ति की इच्छा रखती हैं। यह व्रत खासतौर से पुत्रों की सुरक्षा और भलाई के लिए रखा जाता है, लेकिन वर्तमान समय में इसे सभी बच्चों की लंबी आयु और भलाई के लिए रखा जाता है, चाहे वे पुत्र हों या पुत्री।

PunjabKesari

तारे देखकर व्रत खोलने  का कारण

अहोई अष्टमी का व्रत तारे देखकर ही खोला जाता है। इसका कारण यह है कि तारा, विशेष रूप से सप्तर्षि तारा, संतान की रक्षा और उनकी दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है। तारे के दर्शन को शुभ और फलदायी माना जाता है, इसलिए महिलाएं तारा देखने के बाद ही व्रत का समापन करती हैं।

 

अहोई अष्टमी की पूजा विधि

व्रतधारी महिलाएं प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं और संकल्प लेती हैं कि वे संतान की सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत रखेंगी। अहोई माता की तस्वीर या मूर्ति को एक साफ जगह पर स्थापित किया जाता है। दीवार पर अहोई माता और स्याहु (साही) की तस्वीर बनाई जाती है या फिर छपे हुए चित्र का उपयोग किया जाता है। पूजा के लिए रोली, चावल, दूध, जल, फूल, मिठाई, फल, धूप, दीपक आदि की व्यवस्था की जाती है। विशेष रूप से अहोई माता की पूजा में चांदी की अहोई का उपयोग किया जाता है। अगर चांदी की अहोई न हो तो मिट्टी से भी अहोई माता की प्रतिमा बनाई जा सकती है।

PunjabKesari

तारा देखकर जल करते हैं अर्पित 

माता अहोई की पूजा करते समय महिलाएं हाथों में चावल लेकर अहोई माता की आराधना करती हैं। उन्हें दूध, चावल और मिठाई अर्पित करती हैं। इसके बाद अहोई माता की कथा सुनी जाती है। महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। शाम के समय महिलाएं आसमान में तारे निकलने की प्रतीक्षा करती हैं। तारे देखकर उन्हें जल अर्पित करती हैं और तारा दर्शन के बाद ही व्रत खोलती हैं। इस प्रक्रिया के दौरान महिलाएं अपनी संतान की कुशलता के लिए प्रार्थना करती हैं। तारे देखकर और पूजा समाप्त करने के बाद ही व्रत खोलने के लिए भोजन किया जाता है। अधिकांश महिलाएं इस दिन फलाहार करती हैं और सादा भोजन करती हैं।

अहोई अष्टमी व्रत कथा

अहोई अष्टमी व्रत से जुड़ी एक प्रमुख कथा के अनुसार, एक बार एक स्त्री अपने बच्चों के लिए जंगल से मिट्टी लेने गई थी। खुदाई करते समय गलती से उसकी कुदाल से एक साही के बच्चे की मृत्यु हो गई। इस घटना के कारण वह स्त्री अत्यंत दुखी हो गई और उस पर पाप का बोझ महसूस करने लगी। बाद में उसने अपने इस पाप के प्रायश्चित के लिए सच्चे मन से अहोई माता की आराधना की। माता अहोई ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे क्षमा किया और उसकी संतान की रक्षा का वचन दिया। तब से अहोई अष्टमी का व्रत संतान की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए रखा जाता है।
 

Related News