
जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए अपने प्राणों की आहूति देने वाले शहीद मेजर आशीष ढोचक को पूर्ण सैन्य सम्मान के साथ पानीपत के उनके पैतृक गांव में हजारों लोगों ने नम आंखों के साथ अंतिम विदाई दी। शहीद मेजर ढोचक की अंतिम यात्रा में उनके शोक संतप्त परिवार के साथ-साथ सेना के अधिकारी भी मौजूद थे।

शहीद मेजर ढोचक के पार्थिव शरीर को शुक्रवार सुबह पानीपत में उनके घर लाया गया, जहां से पार्थिव शरीर को सेना के एक वाहन में उनके पैतृक गांव बिंझोल लाया गया। शहीद मेजर ढोचक के शहर स्थित घर से उनके पैतृक गांव बिंझोल के बीच की आठ किलोमीटर की दूरी को पूरा करने में अंतिम यात्रा को करीब तीन घंटे लगे क्योंकि इस दौरान नम आंखों के साथ बड़ी संख्या में लोग सड़क के किनारे खड़े हुए थे।

मेजर ढोचक का परिवार अक्टूबर में पानीपत स्थित अपने नए घर में जाने वाला था। उनका परिवार किराए के मकान में रह रहा था। पड़ोसियों ने कहा कि उन्हें नहीं पता था कि वह (मेजर ढोचक) तिरंगा में लिपटे ताबूत में लौटेंगे। पानीपत में उनके घर से जब गांव के लिए अंतिम यात्रा शुरू हुई तो सड़क के दोनों ओर तिरंगा लिए स्कूली बच्चे बड़ी संख्या में खड़े थे।

'भारत माता की जय', 'जब तक सूरज चांद रहेगा, आशीष तेरा नाम रहेगा' जैसे नारों की गूंज दूर-दूर तक सुनाई दे रही थी। उनके गांव के एक बुजुर्ग ने कहा, ''हमें उनके जाने का बहुत दुख है लेकिन देश के लिए शहादत देने वाले मेजर आशीष पर गर्व भी है।'' वहीं बेटे की शहादत से गमगीन मेजर की मां दो लाइनें दोहराती रहीं। मेरा बेटा देश की शान, मेरी पोती बदला लेगी..।

शहीद की मां कमला ने बेटे को खाेने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी है। उन्होंने कहा- वह चाहती है कि उनकी पोती भी अपने पिता की तरह सेना में अधिकारी बने और आतंकियों को सबक सिखाए। उनकी आंखों से आंसू छलक रहे थे और वह हरियाणवी बोली में कह रही थी, मैं क्यों रोऊं, मैं सैल्यूट करूंगी क्योंकि मैंने शेर को जन्म दिया है।