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योशा गुप्ता का अनूठा बिजनेस, विदेश में दिला रही भारतीय कला को नई पहचान

  • Edited By khushboo aggarwal,
  • Updated: 05 Oct, 2019 11:14 AM
योशा गुप्ता का अनूठा बिजनेस, विदेश में दिला रही भारतीय कला को नई पहचान

हांगकांग में बसी बिजनैसवुमन 37 साल की योशा गुप्ता भारतीय लोक तथा हस्त कलाओं को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रही हैं। उन्होंने खत्म होने की कगार पर पहुंची भारतीय कलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए एक अनूठा बिजनेस मॉडल तैयार किया है। वह लोक कलाकारों से महंगे बैगों पर चित्र तैयार करवाती हैं जो हाथों-हाथ बिक रहे हैं।

 

मां से मिला आइडिया

उनका कहना है कि ऐसा करने का विचार अकस्मात उनके मन में आया। वह बताती है, 'कुछ साल पहले गुड़गांव में मेरे भाई के घर को मां डिजाइन कर रही थी उन्होंने 'विंडो ब्लाइंड्स' तथा मेहराबों पर मधुबनी पेटिंग बनाने के लिए मधुबनी कलाकार रंजीत झा को बुलाया था। इसी से प्रेरित होकर मैंने अपने कुछ कपड़ों गहनों और एक 'गुच्ची बैग' पर मधुबनी पेटिंग बनवाई।'

जब वह हांगकांग से लौटीं तो मधुबनी पेटिंग वाले उनके 'गुच्ची बैग' को देखकर हर कोई बेहद हैरान था। वहीं उनके जान-पहचान वाले तो यही समझने लगे कि उन्होंने किसी तरह से कोई 'लिमिटेड एडीशनल' हैंगबैग हासिल कर लिया है।

अपने बैग को मिले उत्साह तथा आकर्षण को देख उन्होंने फैसला किया कि वह उन्होंने चीन से हाई क्वालिटी के 30-40 लैदर बैग खरीदकर 'मधुबानी', 'पटचित्र', 'पिछवाई', 'वर्ली', और 'गोंड' कलाकारों को भिजवाए। इन कलाकारों ने उन बैगों पर लोक कला चित्र बनाए जो हाथों-हाथ बिक गए।

 

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योशा को अहसास हुआ कि ये कलाएं खत्म हो रही हैं लेकिन इसकी वजह यह नहीं है कि लोग उन्हें पसंद नहीं करते बल्कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि वह उन तक आधुनिक रंग-रूप में नहीं पहुंच रही है। आज उनके बैग कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैले भारतीय लोक कलाकारों के पास पहुंच रहे हैं जो उन्हें अपनी कला से नया रूप दे रहे हैं। उनमें तिब्बत की बौद्ध चित्रकला 'थांगका' तक शामिल है, जिनमें वह लकड़ी पर कलाकारी करवाकर बैग तैयार करवा रही हैं। उनकी कंपनी लग्जरी बैग्स शानदार क्रिएशन्स का रूप दे रही है। इनमें सिल्क पर्स से लेकर लैदर बैग शामिल हैं।

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बनाया है 'लोक कला नक्शा' 

वह इन कलाओं तथा इनके इतिहास के बारे में लोगों को जागरूक करना चाहती हैं। वह चाहती हैं कि लोक कलाकारों को वह सम्मान तथा धन मिले जिसके वे हकदार हैं। इसके लिए बीते साल उन्होंने एक 'लोक कला नक्शा' भी तैयार करवाया था जो उन गावों के बारे में बताता हैं जहां आज भी विभिन्न प्रकार की लोक कलाएं जिंदा है। वह विभिन्न कलाकारों के पास जाकर उनकी कला के बारे में आलेख भी तैयार कर रही हैं। भारत में एक आर्ट स्कूल शुरू करने के लिए भी वह कोशिश कर रही हैं, जिसके लिए हांगकांग में वह एक 'क्राऊडफंडिंग प्रोग्राम' भी शुरू कर चुकी हैं।

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बचपन से था कला से लगाव

योशा ने यह काम शुरू करने से पहले 14 साल फाइनांस टैक्नॉलोजी इंडस्ट्री में काम किया है। वह कहती हैं, 'मेरी फैशन या आर्ट्स की पृष्ठभूमि नहीं है। मैं अलीगढ़ में पली-बढ़ी हूं जहां कलाओं के लिए हमेशा से गहरा लगाव रहा है। कला से मेरा लगाव इसलिए भी है क्योंकि मेरी मां एक पेंटर है। मां मुझे बताती हैं किस तरह एक बार मधुबनी पेटिंग खरीदने के लिए किसी कलाकार के साथ जब उन्हें मालभाव करना शुरू किया तो मैं रोने लगी थी क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि मां उससे मोल-बाव करें। तब मैं केवल 7 साल की थी। लगता है कि कला प्रेम बचपन से ही मेरे दिल में था।'

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कई चुनौतियों का भी करना पड़ा सामना

अन्य बड़े डिजाइनरों के विपरीत उनका अपनी स्टूडियो नहीं है। उन्हें बैगों को 'कश्मीरी चिनार', 'कश्मीरी पेपर मैश', 'थांगका', 'फड़', 'माता नी पछेदी', 'मधुबनी', 'कमलकारी', 'सौरा', 'वर्ली', 'कांगड़ा' से लेकर 'केरल के भित्तिचित्र', 'असम की कागज पर चित्रकारी' आदि विभिन्न लोक कलाओं में माहिर कलाकारों के पास भिजवाना पड़ता है। वह कहती हैं कि यहां व्हाट्सएप उनके बड़ा काम आता है, जिसकी मदद से वे आसानी से इन कलाकारों से संपर्क में रहती है।

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