नारी डेस्क: घर में लकड़ी का मंदिर रखने से पहले वास्तु शास्त्र के कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। ये नियम न केवल धार्मिक या आध्यात्मिक लाभ के लिए होते हैं, बल्कि आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी सुनिश्चित करते हैं। यहाँ लकड़ी के मंदिर को सही तरीके से स्थापित करने के लिए पाँच महत्वपूर्ण वास्तु नियम दिए गए हैं:
मंदिर की दिशा
उत्तर-पूर्व दिशा: वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर के मंदिर को उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) में स्थापित करना सबसे उपयुक्त होता है। यह दिशा धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए शुभ मानी जाती है।
दक्षिण-पश्चिम से बचें: दक्षिण-पश्चिम दिशा में मंदिर रखना शुभ नहीं माना जाता क्योंकि यह आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकता है।
मंदिर का आकार और स्थान
मंदिर का आकार: मंदिर का आकार सामान्य और उचित होना चाहिए। इसे बहुत बड़ा या बहुत छोटा नहीं बनाना चाहिए। सामान्यतः एक छोटे और सुव्यवस्थित मंदिर को प्राथमिकता दी जाती है।
साफ-सुथरा स्थान: मंदिर को ऐसे स्थान पर रखें जहां साफ-सफाई और पवित्रता बनी रहे। मंदिर के आसपास भी कोई अव्यवस्था या गंदगी नहीं होनी चाहिए।
मंदिर की ऊंचाई
निचले स्तर पर न रखें: मंदिर को जमीन से ऊंचा रखना चाहिए, यानी इसे जमीन पर सीधा न रखें। एक छोटी सी चौकी या मंच पर स्थापित करना अच्छा रहता है।
उचित ऊंचाई: मंदिर की ऊंचाई आपके घर के अन्य फर्नीचर और सजावट से मेल खानी चाहिए ताकि यह स्थान का हिस्सा दिखे लेकिन बहुत ऊँचा या बहुत नीचा न लगे।
मंदिर की सजावट
सादगी और पवित्रता: मंदिर की सजावट सरल और पवित्र होनी चाहिए। इसमें अधिक रंगीन और चमकदार सजावट से बचना चाहिए। मंदिर में केवल आवश्यक पूजा सामग्री और देवी-देवताओं की मूर्तियाँ रखें।
प्राकृतिक सामग्री: लकड़ी का मंदिर बनाने के लिए प्राकृतिक और उच्च गुणवत्ता वाली लकड़ी का उपयोग करें। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
पूजा के समय और नियम
नियमित पूजा: मंदिर में नियमित पूजा और आराधना के लिए समय निकालें। नियमित पूजा से घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
स्वच्छता: पूजा से पहले और बाद में मंदिर की साफ-सफाई पर ध्यान दें। पूजा के स्थान को हमेशा स्वच्छ और पवित्र रखें।
इन नियमों का पालन करके आप अपने घर में एक सुंदर और वास्तु-संहिता के अनुसार लकड़ी का मंदिर स्थापित कर सकते हैं, जिससे घर में सुख-शांति और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे।
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