हंसा जीवराज मेहता वो नाम है कि जिन्हें वैश्विक संस्था यूएन में मानव अधिकारों के लिए कई काम किए। 'All Humans Are Equal and Born Free,' यह लाइन आपने कभी ना कभी सुनी या पढ़ी होगी। संयुक्त राष्ट्र में इस वाक्य को पहले 'All Men Are Equal and Born Free' लिखा गया था? मगर, मानवीय अधिकारों के लिए लड़ने वाली भारत की पहली महिला चांसलर हंसा जीवराज मेहता ने इसे 'All Men' से बदलवाकर 'All Humans' किया। चलिए आपको बताते हैं कि कौन है हंसा जीवराज मेहता....
भारतीय स्त्रियों की ओर से पहले राष्ट्रपति को दिया तिरंगा झंडा
3 जुलाई, गुजरात के सूरत शहर में जन्मीं हंसा मेहता ही वह पहली शख्सियत है, जिन्होंने आजाद भारत की महिलाओं की तरफ से देश के पहले राष्ट्रपति, राजेंद्र प्रसाद को तिरंगा झंडा दिया। वही, तिरंगा झंडा रात के 12 बजे फहराया गया।
संविधान सभा में शामिल 15 महिलाओं में से एक
उस समय सविधान में 389 सदस्य नियुक्त किए गए थे, जिसमें से 15 महिलाएं थी। उन महिलाओं में एक नाम हंसा मेहता का भी था। हंसा ने भरी सभा में कहा थी कि देश की हर महिला को बराबर का हक मिलता चाहिए, फिर चाहे वो किसी भी समुदाय से ताल्लुक क्यों ना रखती हो। बता दें कि संविधान सभा में Gender Issues उठाने का श्रेय हंसा मेहता को ही जाता है। उन्होंने 1948 में संसद में जब हिन्दू कोड बिल पर बहस हो रही थी तब उन्होंने ही "महिलाओं को तलाक लेने के अधिकार" पर बल दिया। इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी किताब Indian Woman में भी किया है।
सरोजिनी नायडू ने जगाई देश सेवा की भावना
जब हंसा इंग्लैंड में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों से मिली तो उनके अंदर भी देशप्रेम की भावना ने जन्म लिया। इसके बाद सरोजिनी नायडू, हंसा और कुछ महिलाएं बंबई, साबरमती जेल में बंद गांधी जी से मिली, जिसके बाद उनकी जिंदगी में नया मोड़ आया।
उस जमाने में किया अपनी इच्छा से अंतर्जातीय विवाह
बता दें कि हंसा के पिता प्रोफेसर और बड़ोदा, बिकानेर राज्यों में दीवान रह चुके थे इसलिए उन्होंने हंसा की पढ़ाई पर भी जोर दिया। उन्होंने इंग्लैंड से ही जर्नलिज्म की और इसी सिलसिले में वह अमेरिका भी गईं। इसके बाद उनकी मुलाकात गांधी जी के डॉक्टर रह चुके डॉ. जीवराज मेहता से हुई। उन्होंने परिवार के सामने शादी की इच्छी जाहिर लेकिन कोई नहीं माना क्योंकि हंसा नागर ब्राह्मण थी और जीवराज वैश्य। मगर, उन्होंने किसी की नहीं मानी और उनसे विवाह कर लिया।
सत्याग्रह में लिया हिस्सा, जेल भी गईं
1 मई, 1930 को हंसा ने गांधी जी के कहने पर देश सेविका संघ की अगुवाई में सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया। धीरे-धीरे हंसा के कंधों पर जिम्मेदारियां बढ़ी और वो बॉम्बे कांग्रेस कमिटी की प्रमुख बन गई। उनके नाम से वह 'डिक्टेटर ऑफ बॉम्बे' के नाम से मशहूर हो गई और उन्होंने अंग्रेजों को भी परेशान कर दिया। इसके कारण उन्हें 3 महीने की जेल भी हुई।
भारत की पहली महिला वाईस चांसलर
1949 में हंसा को बड़ौदा विश्वविद्यालय का वाईस चांसलर बनाया गया। उन्होंने यूनिवर्सिटी में होम साइंस, सोशल वर्क, फाइन आर्ट्स फैसिलिटी की स्थापना की, ताकि शिक्षा क्षेत्र में बदलाव हो। अपनी एक रिपोर्ट में उन्होंने लिखा था, "चाहे महिलाओं को कितनी भी आजादी मिल जाए लेकिन पति और पत्नी के रोल अलग हैं। घर को सजाना-संवारना, संभालना महिलाओं के लिए High Art है लेकिन बिना शिक्षा के लिए ये कर पाना कई महिलाओं के लिए मुश्किल है।"
अपने जीवनकाल में लिखी कई किताबें
स्वंत्रता सेनानी , शिक्षा के साथ-साथ हंसा एक बेहतरीन लेखिका भी थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में करीब 15 किताबें लिखी। देश के लिए अतुल्य योगदान देने के लिए उन्हें 1959 में पद्म भूषण सम्मान भी दिया गया। इसके बाद 1964 में वह भारत की हाई कमिशनर बन लंदन गई। आखिरकार देश के लिए अपना फर्ज निभाते हुए उन्होंने 4 अप्रैल, 1995 में दुनिया को अलविदा कह दिया।